कलकत्ता हाईकोर्ट ने 52 साल पहले सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि के मुआवजे और कब्जे दोनों की मांग वाली 'विरोधाभासी' याचिका खारिज की

Update: 2023-09-06 09:54 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 (LARR) में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के तहत 52 साल पहले अधिग्रहित भूमि के मुआवजे और कब्जे की बहाली की मांग को लेकर दायर याचिका को 'पूरी तरह से अवैध' बताते हुए खारिज कर दिया है।

जस्टिस शेखर बी सराफ की एकल पीठ ने रिट याचिका खारिज करते हुए कहा:

मैं आश्चर्यचकित हूं कि इतनी तुच्छ और परेशान करने वाली याचिका दायर की गई है। वह भी 50 साल से अधिक समय के बाद। सरकार द्वारा अधिग्रहण विवाद में नहीं है। वर्तमान याचिका और कुछ नहीं बल्कि अन्यायपूर्ण संवर्धन पाने की कोशिश का एक घुमावदार तरीका है। याचिकाकर्ता भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के तहत मुआवजे की मांग नहीं कर सकता और न ही ऐसी भूमि को अपने कब्जे में लेने की प्रार्थना कर सकता है। मेरा मानना है कि 52 साल की अत्यधिक देरी के बाद दायर की गई यह याचिका पूरी तरह से आधारहीन और बिना किसी योग्यता के है। प्रार्थनाएं स्वयं विरोधाभासी (Contradictory) हैं और याचिकाकर्ता द्वारा किसी भी तरह की राहत नहीं मांगी जा सकती है।

याचिकाकर्ता के दादा विचाराधीन भूमि के मूल मालिक थे। उन्होंने प्रस्तुत किया कि 1962 में रजिस्टर्ड डीड द्वारा उनके दादा ने उक्त संपत्ति बैद्यनाथ माझी को बेच दी थी। इसके बाद उन्होंने 1966 में याचिकाकर्ता के पिता को ज़मीन वापस बेच दी, जिनसे याचिकाकर्ता को 1993 में यह विरासत में मिली थी।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि 2013 में उन्हें पता चला कि उक्त संपत्ति का एक हिस्सा आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकरण (ADDA) के नाम पर दर्ज किया गया था। यह तर्क दिया गया कि ADDA को केवल 2.41 एकड़ ज़मीन दी गई थी। शेष भूमि अभी भी उसके कब्जे में थी, जो उसे मुआवजे का हकदार बनाती थी।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके पिता को कोई मुआवजा नहीं दिया गया था। तदनुसार LARR के तहत मुआवजे के लिए वर्तमान रिट याचिका दायर की। साथ ही प्रतिवादी अधिकारियों को उसके शांतिपूर्ण आनंद और भूमि के कब्जे को सुनिश्चित करने, सुरक्षा और सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा।

याचिकाकर्ता की प्रार्थनाओं पर गौर करने पर न्यायालय ने पाया कि वे न केवल समयबाधित हैं बल्कि प्रकृति में विरोधाभासी भी हैं।

यह माना गया कि ADDA को हस्तांतरित भूमि की मात्रा महत्वहीन होगी, क्योंकि सवाल यह होगा कि जब अधिग्रहण हुआ तो क्या याचिकाकर्ता और उसके पिता ने संपत्ति पर अपना सारा दावा खो दिया था।

अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया कि अधिग्रहण के समय याचिकाकर्ता के दादा ने जमीन का प्लॉट बैद्यनाथ माधी को बेच दिया था। इससे संपत्ति पर उनका अधिकार समाप्त हो गया।

आगे यह माना गया कि एलएआरआर के तहत मुआवजे की मांग और बाद में भूमि के उसी भूखंड पर शांतिपूर्ण आनंद और कब्जे की मांग करना प्रकृति में विरोधाभासी होगा। इसे मंजूर नहीं किया जा सकता।

अंत में न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के लिए यह दावा करना स्पष्ट रूप से अवैध होगा कि यह प्रतिवादी/राज्य अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे 50 साल से अधिक पुराने रिकॉर्ड पेश करें, जिससे यह दिखाया जा सके कि पूर्ववर्ती याचिकाकर्ता को मुआवजा दिया गया था।

तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई, लेकिन याचिकाकर्ता की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने बिना किसी सुनवाई योग्यता के 52 साल की अत्यधिक देरी के बाद दायर निराधार याचिका पर जुर्माना लगाने से रोक दिया।

कोरम: जस्टिस शेखर बी सराफ

केस टाइटल: बिस्वजीत मुखर्जी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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