बॉम्बे हाईकोर्ट ने कश्मीरी प्रोफेसर के खिलाफ व्हाट्सऐप स्टेटस के कारण दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार किया, धारा 370 रद्द करने को जम्मू-कश्मीर के लिए "काला दिन" कहा था

Update: 2023-04-14 15:04 GMT

Bombay High Court

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक कश्मीरी प्रोफेसर के खिलाफ व्हाट्सऐप स्टेटस के कारण दर्ज एफआईआर को खारिज करने से इनकार कर दिया है। उसने अपने स्टेटस में धारा 370 को को समाप्त करने को जम्मू-कश्मीर के लिए "काला दिन" करार दिया था।

जस्टिस सुनील शुकरे और जस्टिस एमएम सथाये की खंडपीठ ने पाया कि स्टेटस "बिना कोई कारण दिए और केंद्र सरकार की ओर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले का कोई महत्वपूर्ण विश्लेषण किए बिना" पोस्ट किया गया था।

बेंच ने कहा, इसलिए प्रथम दृष्टया प्रोफेसर ने आईपीसी की धारा 153ए (दो समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत दंडनीय अपराध किया है।

मामला

प्रोफेसर जावेद अहमद हाजम (26) कोल्हापुर स्थित संजय घोड़ावत कॉलेज में कार्यरत थे। वह अभिभावक-शिक्षक व्हाट्सएप ग्रुप पर भी थे। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि 13-15 अगस्त, 2022 के बीच उन्होंने दो व्हाट्सएप संदेश (1) 5 अगस्त काला दिवस जम्मू-कश्मीर और (2) 14 अगस्त हैप्पी इंडिपेंडेंस डे पाकिस्तान लिखा। पहले मैसेज के नीचे लिखा था, 'अनुच्छेद 370 हटा दिया गया, हम खुश नहीं हैं।'

इसके बाद प्रोफेसर के खिलाफ कोल्हापुर पुलिस ने आईपीसी की धारा 153ए के तहत मामला दर्ज किया। उन्होंने एफआईआर रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक याचिका में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता के वकील करीम पठान ने कहा कि प्रोफेसर ने धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, जाति या समुदाय के आधार पर किसी भी समूह के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के लिए कोई अपमानजनक संदेश प्रसारित नहीं किया है।

उन्होंने दावा किया कि उनका स्टेटस उनके विरोध करने और निर्णय से नाखुश दिखाने का उनका तरीका था। उन्होंने बलवंत सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के दिन "खालिस्तान जिंदाबाद" के नारे लगाने वाले व्यक्तियों को बरी कर दिया गया था।

एपीपी जेपी याग्निक ने प्रस्तुत किया कि व्हाट्सएप स्टेटस में वैमनस्य को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति या मंशा थी या नहीं, यह परीक्षण का विषय है। एजीपी ने कहा कि एक प्रोफेसर होने के नाते याचिकाकर्ता ने बिना किसी औचित्य के कुछ पसंद और नापसंद दिखाई इसलिए आईपीसी की धारा 153ए के तहत अपराध बनाया गया।

शुरुआत में अदालत ने कहा कि दूसरे संदेश के साथ कोई समस्या नहीं है और कोई भी दूसरे देश का स्वतंत्रता दिवस मना सकता है।

हालांकि, जैसा कि अदालत ने स्वीकार किया कि आलोचना का हर शब्द और असहमति का हर दृष्टिकोण लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है, उसने कहा कि संवेदनशील मामलों में उचित विश्लेषण के बाद असहमति व्यक्त की जानी चाहिए और कारण दिए जाने चाहिए।

अदालत ने कहा कि क्या व्हाट्सएप संदेश वास्तव में आईपीसी की धारा 153ए के तहत विचार किए गए परिणामों के बारे में बताता है, यह परीक्षण का विषय होगा।

कोर्ट ने कहा,

"प्रथम दृष्टया यह विभिन्न जनसमूहों को प्रभावित करता प्रतीत होता है...इसलिए आईपीसी की धारा 153-ए के तहत अपराध बनता है,।"


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