बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट्स की अपर्याप्त संख्या को लेकर महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाई
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने राज्य सरकार को समय बर्बाद करने और राज्य में पर्याप्त फैमिली कोर्ट्स स्थापित करने के लिए कदम नहीं उठाने को लेकर फटकार लगाई।
एक्टिंग चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस संतोष चपलगांवकर की खंडपीठ ने कहा,
"जब कदम नहीं उठाना होता है तो पत्राचार किया जाता है।"
अदालत ने यह टिप्पणी सरकारी वकील पीपी काकड़े द्वारा सूचित किए जाने के बाद की कि राज्य में और अधिक फैमिली कोर्ट्स स्थापित करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों और हाईकोर्ट के बीच कई पत्राचार हुए हैं।
अदालत राज्य में फैमिली कोर्ट्स की कमी के संबंध में एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। फैमिली कोर्ट एक्ट, 1994 की धारा 3(1) में प्रावधान है कि दस लाख से अधिक जनसंख्या वाले शहर/कस्बे में एक फैमिली कोर्ट होना चाहिए।
राज्य ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट द्वारा 30 फैमिली कोर्ट्स की स्थापना के प्रस्ताव प्रक्रियाधीन हैं। अदालत ने आज राज्य को 12 जनवरी, 2022 तक इनमें से प्रत्येक प्रस्ताव के लिए स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा।
पीठ ने कहा,
"हम जानना चाहते हैं कि सरकार ने कौन से वास्तविक कदम उठाए हैं।"
एक हलफनामे में, राज्य ने हाईकोर्ट से मुंबई (17 अदालतों) और नागपुर (5 अदालतों) में प्रस्तावित परिवार अदालतों के लिए आवास के बारे में जानकारी मांगी।
कोर्ट ने इस सवाल पर आपत्ति जताई।
कोर्ट ने कहा,
"आप चाहते हैं कि हाईकोर्ट यह कहे? यह दूसरे तरीके से होना चाहिए। आपको बुनियादी ढांचा प्रदान करना चाहिए।"
राज्य के हलफनामे के अनुसार, फैमिली कोर्ट्स की स्थापना में हाईकोर्ट द्वारा प्रस्ताव प्रस्तुत करना, कानून विभाग द्वारा प्राथमिक जांच, वित्त विभाग द्वारा जांच और अनुमोदन, और अन्य विभागों द्वारा एग्जामिनेशन और अनुमोदन शामिल है।
याचिकाकर्ता ने वकील मीनाज काकालिया के माध्यम से कहा कि मुंबई में सात फैमिली कोर्ट जज हैं और 2011 की जनगणना के अनुसार कम से कम छह और जजों की आवश्यकता है। इसके अलावा, जनसंख्या में वृद्धि के कारण संख्या बढ़ाई जानी चाहिए।
केस टाइटल- तुषार गुप्ता बनाम महाराष्ट्र राज्य