आरोपी से पुलिस थाने में हाजिरी दर्ज करने को कहना महज औपचारिकता नहीं, जांच अधिकारी के लिए जांच करने का मौका है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने कहा कि किसी आरोपी पर अदालत द्वारा लगाई गई "पुलिस उपस्थिति" की शर्त केवल औपचारिकता नहीं है। पुलिस द्वारा उचित जांच के लिए इसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
जस्टिस एस जी मेहरे ने आपराधिक धमकी और खतरनाक हथियारों से चोट के मामले में अग्रिम जमानत की मांग को लेकर दायर आवेदन की अनुमति देते हुए उक्त टिप्पणी की।
न्यायाधीश ने कहा कि अभियोजन यह समझाने में विफल रहा कि पुलिस ने हथियार क्यों नहीं बरामद किया जब आरोपी अदालत के अंतरिम संरक्षण के तहत पुलिस थाने में उपस्थित था।
अदालत ने कहा,
"उपस्थिति प्रदान करना केवल उपस्थिति के उद्देश्य के लिए नहीं है। यह जांच अधिकारी के लिए आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोपों के आधार पर जांच करने का अवसर है।"
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि आरोपी जबरन उसकी दुकान में घुस गया और उस पर एवं अन्य लोगों पर डंडे से हमला किया। इसके लिए उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323, 324, 294, 452, 143, 147, 148, 149 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया।
आवेदक सैयद अली ने एडवोकेट वाजिद शेख के माध्यम से दायर याचिका में अग्रिम जमानत मांग की।
अप्रैल 2022 में अदालत ने आवेदकों को अंतरिम राहत दी और निर्देश दिया कि वह अगले आदेश तक प्रत्येक सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को सुबह 10.00 बजे से दोपहर 12.00 बजे के बीच जांच अधिकारी के सामने उपस्थित रहें और जांच में सहयोग करें। प्रथम शिकायतकर्ता व आरोपी भी जमीन के लिए सिविल कोर्ट में लड़ रहे हैं।
आवेदकों ने प्रस्तुत किया कि उसने अंतरिम राहत के लिए अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों का कड़ाई से पालन किया और निर्धारित दिनों और समय पर पुलिस स्टेशन के समक्ष उपस्थित हुआ। हालांकि, पुलिस ने कभी भी हमले के हथियार की मांग नहीं की और जांच से संतुष्ट रही। दरअसल, अन्य सह आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उनके पास से वारदात में इस्तेमाल लाठी भी बरामद कर ली गई है। इसलिए, हिरासत में पूछताछ अनावश्यक है।
सहायक लोक अभियोजक ने तर्क दिया कि आवेदकों ने गंभीर अपराध किया है और हमले में इस्तेमाल की गई लाठी को बरामद करने के लिए हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है।
अदालत ने कहा कि ऐसा कोई कारण नहीं है कि जब आवेदक पुलिस थाने में उपस्थित हुए तो हथियार की बरामदगी नहीं की गई। इस प्रकार, यह माना गया कि अभियोजन पक्ष ने उचित जांच करने का अवसर खो दिया है। इसके अलावा, रिकॉर्ड से पता चलता है कि हथियार पहले ही बरामद किया जा चुका है। इसलिए, हथियार की वसूली की आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच दीवानी मुकदमेबाजी का भी जिक्र किया और कहा कि झूठे आरोप की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके आलोक में अदालत ने अर्जी को मंजूर करते हुए अंतरिम राहत की पुष्टि की। जमानत की शर्त को संशोधित किया गया और आवेदकों को निर्देश दिया गया कि जब भी जांच अधिकारी द्वारा लिखित सूचना के साथ बुलाया जाए तो वे पुलिस स्टेशन में उपस्थित हों।
केस टाइटल: सैयद अतहर अली और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य
केस नंबर: एबीए/509/2022
कोरम: जस्टिस एस. जी. महरे
हेडनोट्स (भारतीय दंड संहिता) –
धारा 143 - गैरकानूनी सभा के सदस्य को छह महीने तक की कैद या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 147 - दंगा करने पर दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकता है।
धारा 148 - दंगा करने के दोषी व्यक्ति के घातक हथियार से लैस होने पर तीन साल तक की कैद या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
धारा 149 - यदि गैर-कानूनी सभा का सदस्य सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपराध करता है तो गैर-कानूनी सभा का दोषी प्रत्येक सदस्य अपराध का दोषी होगा।
धारा 294 - जो व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थान पर या उसके आस-पास कोई अश्लील कार्य करता है या कोई अश्लील गाना गाता है, उसे तीन महीने तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 323 - स्वेच्छा से चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति को एक वर्ष तक की कैद या एक हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 324 - कोई व्यक्ति जो स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों या साधनों से चोट पहुँचाता है, उसे तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
धारा 452 - जो व्यक्ति किसी को चोट पहुंचाने या किसी पर हमला करने या किसी को गलत तरीके से रोकने या किसी को डरने की तैयारी के बाद घर में अतिचार करता है, उसे सात साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
धारा 506 - आपराधिक धमकी का अपराध करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।
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