बॉम्बे हाईकोर्ट ने कथित तौर पर दोस्त के इशारे पर उसकी ही पत्नी का बलात्कार करने के आरोपी को जमानत दी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक महिला के पति के कथित इशारे पति द्वारा किए गए इशारे पर एक महिला के बलात्कार के आरोपी को जमानत दी।
न्यायमूर्ति प्रकाश डी नाइक की खंडपीठ ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि उसने कब उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किया, क्योंकि यह कार्य कथित रूप से पति के संकेत पर किया गया था।
मामला न्यायालय के समक्ष
न्यायालय भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी), 377 और 120-बी आर / डब्ल्यू धारा 34 (आईपीसी) और आईटी एक्ट की धारा 66 (ई) के तहत दर्ज अपराध पर जमानत के आवेदन पर सुनवाई कर रहा था। इस आवेदक को 18 जून, 2019 को गिरफ्तार किया गया था और मामले की प्राथमिकी 23 फरवरी, 2019 को दर्ज की गई थी।
मामले में शिकायतकर्ता (महिला) की शादी 2009 में एक विशाल हिरेमठ (मर्चेंट नेवी में कार्यरत) से हुई थी। 2015 से शिकायतकर्ता और उसका पति अलग-अलग बोरिवली में रह रहे थे।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जब उसका पति जहाज से लौटा था, तो एक जोड़े ने उनके घर का दौरा किया और उन सभी ने शराब का सेवन किया था।
उसने आरोप लगाया कि उसके पति के दोस्त (मामले में आवेदक) ने उसका यौन उत्पीड़न किया और अगले दिन शिकायतकर्ता के पति ने उसे सूचित किया कि उसने उस घटना का वीडियो रिकॉर्ड कर लिया है और उसी ने उस व्यक्ति को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए बुलाया था।
इसके साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि इसी तरह की घटना इसके बाद भी हुई। उसके पति ने एक व्यक्ति को घर पर बुलाया और उसे शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करने के लिए कहा।
उसके पति ने उसे धमकी दी कि अगर उसने उस व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया तो उसका आपत्तिजनक वीडियो वायरल कर दिया जाएगा।
कोर्ट का आदेश
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि प्राथमिकी में पहली और दूसरी घटना की तारीख का उल्लेख नहीं किया गया था। 2015 में और उसके बाद 2016 और 2018 में कथित घटनाएं हुईं और 23 फरवरी, 2019 को एफआईआर दर्ज की गई।
न्यायालय ने यह भी देखा कि यद्यपि आवेदक की पहचान कर ली गई थी, लेकिन यह स्पष्ट नहीं था कि वह किस घटना में शामिल था और क्या उसकी शिकायत को दर्ज किया गया था।
इस पर कोर्ट ने कहा,
"प्रथम दृष्टया यह प्रतीत होता है कि धारा 376 आवेदक के खिलाफ लागू नहीं हो सकती है। चूंकि मुकदमा लंबित है, इसलिए इस तरह की जांच को मंजूरी नहीं दी गई है। आवेदक लगभग डेढ़ वर्ष की अवधि से हिरासत में है। इसलिए, मामले में जमानत दी जाती है। "
इस प्रकार, आवेदक को रुपये 25,000 की राशि का निजी बांड को भरने के बाद कस्तुरबा मार्ग पुलिस स्टेशन, मुंबई के C.R. No 2019 में पंजीकृत 2018 की C.R. No. 201 के संबंध में जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया गया।
केस का शीर्षक - हितेश रमेश परते @ राजकमल बनाम महाराष्ट्र राज्य [आपराधिक जमानत अर्जी नंबर 3355 ऑफ 2019]
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