बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत गलत तरीके से गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को मुआवजा देने का निर्देश दिया

Update: 2023-01-06 10:32 GMT

Bombay High Court

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लोग शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस थानों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं और अंदर की तस्वीरें लेना ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत नहीं आएगा। इसके साथ ही कोर्ट ने पुलिस स्टेशन के अंदर शिकायत की तस्वीरें लेने के लिए व्यक्ति के खिलाफ एफआईआईर रद्द कर दी।

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस आर.एन. लड्डा ने हाल के फैसले में कहा,

"पुलिस स्टेशन ऐसे स्थान हैं, जहां लोग जाने/चलने, शिकायत/एफआईआर दर्ज करने, अपने साथ हुए गलत/अन्याय को दूर करने के लिए स्वतंत्र हैं। पुलिस के लिए फोटोग्राफी को प्रतिबंधित करने वाला बोर्ड लगाना हमेशा खुला रहता है, लेकिन अगर कोई फोटो/वीडियो लेता है तो निश्चित रूप से उक्त कृत्य ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के दायरे में नहीं आएगा।

अदालत ने मुंबई के मीरा रोड पुलिस स्टेशन में 33 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ शिकायत की तस्वीरें लेने के लिए ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1923 की धारा 3 के तहत दर्ज एफआईआर के खिलाफ दायर रिट याचिका की अनुमति दी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ शिकायत के संबंध में पुलिस स्टेशन बुलाया गया। उसे शिकायत की फोटोकॉपी और मोबाइल पर फोटो लेने की अनुमति नहीं दी गई। याचिकाकर्ता ने इसका फोटो और वीडियो बना लिया, जिसके बाद पुलिस अधिकारी ने अपराध दर्ज किया।

ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1923 की धारा 3 अधिनियम की धारा 2(8) के तहत 'निषिद्ध स्थान' पर जासूसी करने के लिए सजा का प्रावधान करती है। यह राज्य की सुरक्षा या हित के खिलाफ कार्य करता है।

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया एक्ट की धारा 3 को पुलिस ने दुर्भावनापूर्ण तरीके से लागू किया। अदालत ने दोहराया कि एक्ट की धारा 2(8) के तहत 'निषिद्ध स्थान' की परिभाषा विस्तृत है, लेकिन इसमें पुलिस स्टेशन शामिल नहीं है।

अदालत ने कहा,

"प्रथम दृष्टया, यह हमें प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता को ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत दुर्भावना से और जानबूझकर कार्यवाही की गई, जबकि याचिकाकर्ता के खिलाफ ऐसा कोई अपराध नहीं बनाया गया। लोगों को प्रताड़ित करने और परेशान करने के लिए कानून को उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कानून का संरक्षक होने के नाते पुलिस इसे बनाए रखने और इसका दुरुपयोग न करने के लिए बाध्य है।"

अदालत ने रवींद्र शीतलराव उपाध्याय बनाम महाराष्ट्र राज्य पर भरोसा किया, जिसमें यह कहा गया कि पुलिस स्टेशन के भीतर मोबाइल फोन पर बनाई गई वीडियो रिकॉर्डिंग भी एक्ट की धारा 3 के दायरे में नहीं आएगी।

इसके अलावा, जासूसी शब्द के गंभीर अर्थ हैं और पुलिस को इसके प्रति सचेत रहना होगा। अदालत ने कहा कि इसे हल्के ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए।

इसलिए कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर और आरोप पत्र रद्द कर दिया। अदालत ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 25000 रूपए देने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि जुर्माना की राशि को एफआईआर दर्ज करने और चार्जशीट दाखिल करने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के वेतन से वसूल करें।

जस्टिस डेरे की अगुवाई वाली समन्वय पीठ ने विशेष रूप से पिछले महीने पुलिस स्टेशन के बाहर तस्वीरें लेने वाले व्यक्ति के खिलाफ ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट, 1923 की धारा 3 लागू करने के लिए महाराष्ट्र पुलिस की खिंचाई की थी।

एडवोकेट अनीस शेख ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व किया और अतिरिक्त लोक अभियोजक जयेश याग्निक ने राज्य का प्रतिनिधित्व किया।

केस नंबर- क्रिमिनल रिट पिटीशन नंबर 3894/2022

केस टाइटल- जीशान मुख्तार हुसैन सिद्दीकी बनाम महाराष्ट्र राज्य

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