बॉम्बे हाईकोर्ट ने वकालतनामा पर अंगूठे का जाली निशान लगाने के मामले में वादियों पर दस हजार रुपए का जुर्माना लगाया

Update: 2019-12-12 09:44 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक एडीशनल कलेक्टर (अतिक्रमण/ एविक्शन) द्वारा पारित एक आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए दायर एक मामले में तीन याचिकाकर्ताओं पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया है क्योंकि वे 'जाली' अंगूठे के निशान के बारे में बताने में असमर्थ रहे। जबकि यह अंगूठे का निशान वकालतनामा पर चौथे याचिकाकर्ता की तरफ से लगाया गया था, जिसमें उनकी रिट याचिका को वापस लेने के लिए प्रार्थना की गई थी।

न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की खंडपीठ 15 अप्रैल, 2019 को रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जब प्रतिवादी नंबर 5 के वकील डॉ.अभिनव चंद्रचूड़ ने कहा कि याचिकाकर्ता नंबर 4 भारत का निवासी नहीं है और उसने अपनी ओर से वर्तमान रिट याचिका दायर करने के निर्देश नहीं दिए थे। उसके बावजूद उसका नाम याचिकाकर्ताओं की सूची में शामिल किया गया था और इसके समर्थन में एक अंगूठे का निशान वकालतनामा पर लगाया गया था, जिसे याचिकाकर्ता नंबर चार का बताया गया था। 

वकील चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता नंबर 4 ने 23 मई, 2009 को बांद्रा पुलिस स्टेशन के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी। उक्त शिकायत में उन्होंने अपने हस्ताक्षर किए थे।

वकील ने कहा-

''अगर याचिकाकर्ता नंबर 4 पुलिस के समक्ष अपनी शिकायत पर हस्ताक्षर कर सकता है, तो उसके द्वारा वकालतनामा पर अंगूठे का निशान लगाने का कोई सवाल या मतलब ही नहीं था। इसलिए, याचिकाकर्ता नंबर 4 का बताया गया अंगूठे का निशान जाली था।''

इस प्रकार, उसी दिन कोर्ट प्रथम दृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुंची कि याचिकाकर्ता नंबर 4 की ओर से रिट याचिका या तो उसके निर्देशों के बिना दायर की गई थी या वकालतनामा पर उसके अंगूठे का जाली या फर्जी निशान लगाया गया था। इसलिए, रिट याचिका को वापस लेने की प्रार्थना को खारिज कर दिया गया।

तीनों याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादी नंबर 5 की ओर से लगाए गए आरोपों पर अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने के लिए निर्देशित किया गया था।  विशेष रूप से यह बताने के लिए कहा गया था कि कैसे याचिकाकर्ता नंबर 4 के अंगूठे का निशान वकालतनामा पर लगाया गया। जबकि उसने पुलिस शिकायत में अपने हस्ताक्षर किए थे, जिससे यह संकेत मिलता कि वह एक अनपढ़ व्यक्ति नहीं है, दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने में सक्षम है।

याचिकाकर्ता की ओर से (नंबर.1,2,3) एक हलफनामा दायर किया गया था जिसमें कहा गया था कि याचिका दायर करते समय केवल तीन याचिकाकर्ताओं के हस्ताक्षर लिए गए थे और अंगूठे के निशान नहीं लिए गए थे।  हलफनामे में कहा गया था कि तीनों याचिकाकर्ता यह बता नहीं पा रहे है कि कैसे वकालतनामा पर अंगूठे के निशान लगाए गए थे और उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।

तीनों याचिकाकर्ताओं ने ''अदालत को हुई असुविधा के लिए'' माफी मांगी और अदालत से अनुरोध किया कि वे एक उदार दृष्टिकोण रखें और उन्हें रिट याचिका वापस लेने की अनुमति दें।

डॉ.चंद्रचूड़ ने आगे दलील दी कि याचिकाकर्ता अदालत के समक्ष गलत बयान देने के दोषी हैं, इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 191, 193, 205 के प्रावधान और ऐसे अन्य प्रावधान के तहत मामला बनता है। उन्होंने तर्क दिया कि,इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं पर आपराधिक अवमानना का मामला भी बनता है क्योंकि यह न्यायिक कार्यवाही के दौरान हस्तक्षेप करने का एक प्रयास भी है। 

यह निष्कर्ष निकालने के बाद कि उक्त अंगूठे के निशान के लिए कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं था।

कोर्ट ने कहा कि

 ''यह तय है कि न्यायालय से समान रूप से राहत की मांग करने वाले व्यक्ति को पवित्र तरीके से न्यायालय का दरवाजा खटखटाना चाहिए। यदि न्यायालय को यह पता चलता है कि ऐसे व्यक्ति ने अदालत से साफ तरीके से संपर्क नहीं किया है और उस तरीके या कार्रवाई का सहारा लिया है, जो अत्यधिक संदिग्ध हैं, यह अन्य कार्रवाई कानून में निंदनीय है, विशेष रूप से भारतीय दंड संहिता के तहत।''

कोर्ट ने दस हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए चार सप्ताह के भीतर महाराष्ट्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने के लिए कहा है। साथ ही न्यायालय ने रजिस्ट्री को इस मामले में आपराधिक शिकायत दर्ज कराने के लिए आवश्यक कदम उठाने का भी निर्देश दिया है। 


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