कोरोना महामारी के कारण आर्थिक तनाव झेल रहे पेरेंट्स के लिए स्कूल फ़ीस में 50% की कटौती की मांग करने वाली याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट ने खारिज की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर जनहित याचिका ख़ारिज कर दी, जिसमें उन पेरेंट्स के बच्चों की स्कूल फ़ीस में 50% कटौती का आदेश दिए जाने की मांग की गई थी, जो कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी की वजह से आर्थिक परेशानी में हैं।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपंकर दत्ता और न्यायमूर्ति केके ताटेड की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर बीनू वर्गीज़ की इस जनहित याचिका को ख़ारिज कर दिया।
इस याचिका में मांग की गई थी कि -
a. स्कूलों को वर्तमान अकादमिक वर्ष में 50% से अधिक फ़ीस नहीं लेने का निर्देश जारी किया जाए;
b. महामारी के कारण लागू लॉकडाउन की अवधि के लिए फ़ीस माफ़ी 23 मार्च 2020 से प्रभावी हो;
c. पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक कक्षाओं नर्सरी से चौथी तक ऑनलाइन सत्र के लिए फ़ीस नहीं ली जाए;
d. स्कूल इस अकादमिक वर्ष में कम प्रोजेक्ट दे ताकि अनावश्यक खर्च न हो;
e. राज्य सरकार को निर्देश दिया जाए कि स्कूल किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करें और अगर ऐसा करते हैं तो उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए और जब तक कोविड-19 की दवा नहीं आ जाती या टीका नहीं खोज लिया जाता तब तक स्कूल नहीं खोले जाएं।
वक़ील पद्म शेलत्कर ने याचिकाकर्ता की पैरवी की जबकि एजीपी एमएम पबाले ने राज्य की पैरवी की।
अदालत ने कहा,
"यद्यपि स्कूलों से राहत का दावा किया गया है लेकिन किसी भी स्कूल प्रबंधन को इसमें पक्षकार नहीं बनाया गया है…किसी स्कूल के बिना पीआईएल को स्वीकार करना प्राकृतिक न्याय के ख़िलाफ़ होगा…याचिका में इस बात का कोई ज़िक्र नहीं किया गया है कि याचिककर्ता ने इनमें से कुछ को प्रतिवादी क्यों नहीं बनाया है। इस मामले में हस्तक्षेप से इनकार करने का यह एक कारण है।"
पीठ ने कहा,
"पीआईएल में हस्तक्षेप नहीं करने का दूसरा कारण यह है कि …पीआईएल में याचिककर्ता ने एक आम बयान दिया है कि जिन पेरेंट्स के बच्चे स्कूल जा रहे हैं, वे आर्थिक परेशानी झेल रहे हैं। अगर यह बयान सही है, तो इन पेरेंट्स को समूह में सरकार के पास जाने और लॉकडाउन की अवधि के दौरान फ़ीस में कमी करने और अन्य राहतों के लिए दिशानिर्देश जारी करने की मांग करने से कोई नहीं रोकता है…इस बारे में नीतिगत निर्णय लिए जाने की ज़रूरत है …अकादमिक नीति के मुद्दे पर अदालत दूरी बनाकर रखना चाहती है।"
यह कहते हुए अदालत ने याचिका ख़ारिज कर दी लेकिन कहा कि इस आदेश का मतलब यह नहीं है कि पीड़ित व्यक्ति राहत के लिए क़ानून के तहत किसी अन्य विकल्प की तलाश नहीं करें।
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