''वहशी और बर्बरतापूर्ण कृत्य; पीड़िता को हर दिन मरना पड़ा होगा'': 14 साल की अपनी ही बेटी के साथ लगातार बलात्कार करने वाले व्यक्ति को यूपी कोर्ट ने मौत की सजा दी
उत्तर प्रदेश की एक अदालत (बहराइच जिला न्यायालय) ने मंगलवार को एक व्यक्ति को अपनी ही 14 साल की बेटी के साथ लगातार दो वर्षों तक बलात्कार करने का दोषी पाते हुए मृत्युदंड की सजा सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि यह कृत्य कानून, धर्म और मानवता द्वारा स्थापित सभी मानदंडों के विपरीत था और परिवार को नष्ट करने वाला है।
महत्वपूर्ण रूप से, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश नितिन पांडे (बलात्कार और पॉक्सो कोर्ट, बहराइच की अध्यक्षता करते हुए) ने 7 दिनों में ही इस केस की सुनवाई पूरी कर दी और यह देखते हुए कि यह मामला दुर्लभतम मामले की श्रेणी में आता है क्योंकि आरोपी ने वहशी और बर्बरतापूर्ण कृत्य किया है,इसलिए उसे मौत की सजा सुनाई है।
आरोपी के लिए मौत की सजा को एक उपयुक्त सजा मानते हुए कोर्ट ने कहा कि,
''एक बेटी का उसके ही पिता ने लगातार बलात्कार किया; उसकी बेटी हर दिन मरती होगी ... जिनके पास न तो ज्ञान है, न पछतावा है, न स्वतंत्रता है, न अच्छा आचरण है, न गुण है, न ही जो अपने कर्तव्यों का पालन करते है, वे नश्वर लोगों की इस दुनिया में मानव रूप में जानवरों की तरह अपना जीवन व्यतीत करते हैं और केवल इस ग्रह पर एक बोझ हैं।''
मामले की पृष्ठभूमि
पीड़िता की मां (दोषी की पत्नी) ने आरोप लगाया कि उसका पति उसकी नाबालिग बेटी (तब 15) के साथ बलात्कार कर रहा है। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसका पति (पीड़िता का पिता) पिछले दो साल से लगातार नाबालिग बेटी से जबरन दुष्कर्म कर रहा है।
पुलिस ने 25 अगस्त, 2021 को दोषी के खिलाफ मामला दर्ज किया और तुरंत जांच शुरू की और 11 दिनों में मामले की जांच पूरी कर ली।
मां की शिकायत पर नान्हूं खां (पीड़ित के पिता) के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (3), 323, 506 और पॉक्सो एक्ट की धारा 5 व 6 के तहत मामला दर्ज किया गया।
कोर्ट ने 7 सितंबर, 2021 को मामले पर संज्ञान लिया था और 27 सितंबर, 2021 को आरोप तय किए थे।
दोषी के बेटे (पीड़ित के भाई) ने अपने बयान में कहा था कि उसने खुद अपने पिता को अपनी बहन के साथ 3 या 4 बार बलात्कार करते हुए देखा था।
इसके अलावा, यह भी रिकॉर्ड पर आया है कि आरोपी पिता ने पीड़ित बेटी की नग्न तस्वीर क्लिक की थी और उसे ब्लैकमेल भी किया था। जब लड़की ने अपनी मां को इस अपराध के बारे में बताया था तो आरोपी ने मां-बेटी की पिटाई कर दी थी।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुरुआत में, अदालत ने कहा कि दोषी ने अपनी ही बेटी के साथ बलात्कार किया है, जिसके साथ उसका आपसी विश्वास या भरोसे का रिश्ता था और पीड़िता नाबालिग थी,इसलिए वह अपने पिता के कृत्यों का विरोध नहीं कर सकती थी।
अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता के पिता के कृत्यों ने निश्चित रूप से पीड़िता की मानसिक चेतना को झकझोर कर रख दिया होगा और अपनी ही बेटी के साथ लगातार बलात्कार करने का कृत्य उसकी क्रूरता को बयां कर रहा है।
अपनी हवस को पूरा करने के लिए आरोपी ने अपनी ही नाबालिग बेटी से बलात्कार किया है,जिससे मानवता शर्मसार हो रही है। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि,
''यह नाबालिग लड़की अपने ही पिता की हरकतों को झेलती रही और जब भी उसने अपनी मां से इस बारे में बात करने की सोची, तो उसे या तो धमकाया गया या पीटा गया। निस्संदेह, इस नाबालिग लड़की के लिए स्थिति ऐसी हो गई होगी कि वह खुद को मार डाले ... वह समझ नहीं पा रही थी कि एक पिता ऐसा कैसे हो सकता है और उसकी मां के मौजूद होने के बावजूद उसका पिता उसके साथ पर ऐसा अपराध क्यों कर रहा है?''
अदालत ने यह भी नोट किया कि दोषी ने अपनी बेटी की शादी कर दी थी, हालांकि, उसने अपनी बेटी को उसके ससुराल नहीं भेजा था। कोर्ट ने यह भी कहा कि एक विवाहित बेटी के लिए उस समय अपने पति के साथ फिर से संबंध बनाना असंभव होगा, जब उसके पति को यह पता चलेगा कि उसकी पत्नी के पिता ने ही उसका लगातार बलात्कार किया है।
इसके अलावा, यह देखते हुए कि पहली बार अपनी बेटी के साथ बलात्कार करने के बाद भी दोषी में अपराध की भावना नहीं आई और वह इस कृत्य को लगातार करता रहा,कोर्ट ने कहा कि,
''एक बेटी जब दर्द और दुःख में होती है तो वह अपने पिता की तरफ देखती है। वह अपने पिता को अपने पति से ऊपर रखती है। एक बेटी को अपने पिता पर अत्यधिक विश्वास होता है, लेकिन वर्तमान मामले में, सभी मानवीय मानदंडों को तोड़ते हुए, अपनी ही बेटी के खिलाफ ऐसा अपराध किया गया है, जिसने बेटियों के उस विश्वास को मार डाला है,जो वह अपने पिता के प्रति रखती हैं।''
कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि आम तौर पर इस तरह की हरकतें समाज में समाने नहीं आती हैं और अगर पीड़िता कुछ साहस दिखाती है और इस तरह के कृत्य को सामने लाती है और अपने किसी रिश्तेदार को इस बारे में बताती है, तो उसका रिश्तेदार भी उस पर विश्वास नहीं करेगा या संकोच करेगा या चुप रहेगा।
कोर्ट ने कहा कि,
''(पीड़िता) इस मामले में इतनी हिम्मत वाली थी कि उसने शुरू में ही अपनी मां को यह बात बता दी थी, लेकिन हालात ऐसे थे कि उसकी मां भी इस कृत्य को तब तक समाज के सामने नहीं ला सकी, जब तक उसने खुद अपने पति को अपनी बेटी के साथ ऐसा कृत्य करते हुए देख नहीं लिया।''
इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि जब एक पिता अपनी ही बेटी के लिए इतना हानिकारक हो गया है, तो इस बात की कल्पना की जा सकती है कि वह समाज के लिए कितना हानिकारक होगा, कोर्ट ने माना कि,
''यह निर्विवाद रूप से स्थापित है कि न्यायाधीशों को खून का प्यासा नहीं होना चाहिए, लेकिन जब कोई अपराध सिर्फ अपराध न रहे और पाप बन जाए, तो न्यायाधीशों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह दोषियों को इस तरह से दंडित करे जिससे समाज में संतुष्टि की भावना पैदा हो। क्षमा वीरों का आभूषण है, लेकिन चूंकि ऐसा पाप अपराधी द्वारा किया गया है, यह उसे क्षमा के योग्य नहीं बनाता है। इसलिए इस मामले में, उसे क्षमा करना कायरता होगी।''
मिटिगैटिंग बनाम ऐग्रावैटिंग परिस्थितियां
मुकेश व अन्य बनाम राज्य,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली व अन्य (निर्भया केस) के मामले में स्थापित सिद्धांत के अनुसार, कोर्ट ने वर्तमान मामले में, मिटिगैटिंग(अपराध की गंभीरता कम करने वाले) बनाम ऐग्रावैटिंग (अपराध की गंभीरता को बढ़ाने वाले) परिस्थितियों का तुलनात्मक विश्लेषण किया।
वर्तमान मामले में,कोर्ट ने कहा, अपराध की गंभीरता को कम करने वाली ऐसी कोई परिस्थिति नहीं हैं जो अपराधी के आचरण को दुर्लभ मामलों की श्रेणी के दायरे से बाहर ला सकती हो।
अदालत ने कहा, ''दोषी द्वारा लगातार अपराध करना और पीड़ित और समाज पर पड़ा इसका प्रभाव, दोषी द्वारा किए गए अपराध को दुर्लभ मामलों की श्रेणी के दायरे में लाता है।''
कोर्ट ने आगे कहा कि,
''यह सोचकर भी डर लग रहा है कि अगर परिवार में ही ऐसा हो गया है तो क्या समाज और देश सुरक्षित रहेगा और क्या ऐसी स्थिति में किसी समाज या सभ्य देश की कल्पना की जा सकती है?''
न्यायालय ने आरोपी को सभी आरोपों के लिए दोषी करार दिया और उसे फांसी की सजा सुनाते हुए कहा कि,
''दोषी नान्हूं खां को तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक वह मर न जाए''
कोर्ट ने आरोपी पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। हालांकि, अदालत ने अपने फैसले में जोर देकर कहा कि चूंकि जुर्माना पर्याप्त है परंतु यह पीड़ित बच्ची और उसकी मां की आजीवन वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसलिए, अदालत ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया है कि वह राज्य सरकार से पीड़िता को उपयुक्त मुआवजा दिलाने के लिए उचित कार्रवाई करे।
केस का शीर्षक- राज्य बनाम नान्हूं खां
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