बीबीए ने बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया, फिजिकल हियरिंग फिर से शुरू करने के आदेश पर पुनर्विचार करें

Update: 2020-11-30 09:46 GMT

बॉम्बे हाईकोर्ट के दिनांक 27 नवम्बर 2020 के कार्यालय आदेश(जिसके तहत अदालतों में शारीरिक तौर पर पेश होना अनिवार्य किया गया है) का हवाला देते हुए, बॉम्बे बार एसोसिएशन (''बीबीए'') ने रविवार (29 नवंबर) को मुख्य न्यायाधीश को एक प्रतिनिधित्व या ज्ञापन भेजा है,जिसमें उनसे 27 नवम्बर 2020 के आदेश में संशोधन करने का अनुरोध किया गया है।

प्रतिनिधित्व में, यह कहा गया है कि बॉम्बे बार एसोसिएशन (''बीबीए'') को बड़ी संख्या में अपने सदस्यों से फीडबैक और प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं,जिसमें ''COVID19 महामारी के दौरान इतने सारे न्यायालयों में फिजिकल या शारीरिक रूप पेश होने को अनिवार्य किए जाने के प्रति गंभीर चिंता व्यक्त की गई है।''

मुख्य न्यायाधीश को भेजे गए प्रतिनिधित्व में बार के सदस्यों से प्राप्त इनपुट पर विचार किया गया है क्योंकि बीबीए की स्थायी समिति की एक बैठक 29 नवंबर 2020 को आयोजित की गई थी। जिसके बाद,उक्त बैठक में पारित प्रस्ताव के अनुसार तत्काल यह प्रतिनिधित्व भेजा गया है।

बीबीए ने कहा है कि वह  ''फिजिकल कोर्ट के क्रमिक प्रारंभ की आवश्यकता को समझते हैं और उसकी सराहना भी करते हैं। बीबीए ने यह भी माना कि फिजिकल कोर्ट में कामकाज न होने के कारण विभिन्न वकीलों के सामने काफी कठिनाइयां आई हैं और वह उनको समझते हैं।''

हालांकि, प्रतिनिधित्व में आगे कहा गया है कि बीबीए की स्थायी समिति ''को लगता है कि COVID19 की वर्तमान स्थिति में, भौतिक न्यायालयों या फिजिकल कोर्ट को फिर से शुरू करने का काम धीरे-धीरे और चरण-वार तरीके से किया जाना चाहिए - शुरू में यह काम मिश्रित या हाइब्रिड रूप में किया जाना चाहिए,जिसमें यह विकल्प दिया जाना चाहिए कि अगर कोई सदस्य फिजिकल तौर पर पेश होने में सक्षम नहीं है तो वह वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से पेश हो सकता है।''

महत्वपूर्ण रूप से, यह कहा गया है कि,

''वर्चुअल प्लेटफॉर्म के जरिए पेश होने का विकल्प दिए बिना फिजिकल हियरिंग को शुरू करना और इतनी सारी अदालतों में फिजिकल तौर पर पेश होने को अनिवार्य किए जाने से वकीलों, उनके कर्मचारियों, मुविक्कलों और उनके परिजनों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा पैदा होने की पूरी संभावना है।''

बीबीए द्वारा उठाई गई चिंताएं (जैसा कि प्रतिनिधित्व में कहा गया है)

-न्यायालयों में न्यायाधीशों, वकीलों, अदालत के कर्मचारियों, रजिस्ट्री के सदस्यों, क्लर्कों, आदि में वायरस के संचरण का जोखिम, एक वास्तविक खतरा है। जैसा कि इस वायरस की प्रकृति है, अदालतों में आने वाले व्यक्ति इस वायरस से अपने परिवार के सदस्यों को भी संक्रमित कर सकते हैं।

-इस न्यायालय में प्रैक्टिस करने वाले अधिकांश न्यायाधीश और वरिष्ठ वकील 50 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, जिनके साथ कई तरह का अस्वस्थता जुड़ी हैं। यह सब घातक जोखिम वाले कमजोर रोगियों की श्रेणी में आते हैं और इन सभी को COVID19 से संक्रमित होने पर बहुत ज्यादा खतरा हो सकता है।

-यहां तक कि यंग वकील और अदालत के कर्मचारी ,जिनको खुद ज्यादा जोखिम नहीं हैं,परंतु उनके घरों में बुजुर्ग माता-पिता और 10 साल से कम उम्र के बच्चों को तो ज्यादा खतरा रहेगा ही,अगर कोई भी इस बीमारी से प्रभावित हो जाता है तो।

-न्यायालयों में व्यक्तियों की आपसी मुलाकात को नियंत्रित करना मुश्किल काम है। वर्तमान कार्यालय आदेश के संदर्भ में, एक सीमित तरीके से फिजिकल हियरिंग शुरू करने पर भी तेजी से मानव संपर्क बढ़ेगा और उसका परिणाम वायरस का संचरण होगा।

-आदेश में कहा गया है कि केवल बहस करने वाले पक्षों को ही कोर्टरूम में आने दिया जाएगा और अन्य लोगों को न्यायालय कक्ष/ बार के कमरे के बाहर इंतजार करना होगा। इससे कोर्ट रूम के अंदर लोगों की संख्या सीमित हो सकती है।

-परंतु इसके परिणामस्वरूप उन मामलों में युवा जूनियर वकील ब्रीफ नहीं ले पाएंगे ,जिनमें वे एक वरिष्ठ वकील के साथ पेश होने वाले थे। इन परिस्थितियों में जूनियर वकीलों को काफी परेशानी होगी।

-प्रत्येक न्यायालय द्वारा उठाए जा रहे मामलों के इतने भारी बोझ के साथ, स्वच्छता और स्वच्छता की प्रक्रियाओं का पालन करना असंभव हो जाएगा।

महत्वपूर्ण रूप से, प्रतिनिधित्व में दिल्ली हाईकोर्ट, राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर खंडपीठ, कर्नाटक हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट की चेन्नई पीठ, पटना हाईकोर्ट , इलाहाबाद हाईकोर्ट, झारखंड हाईकोर्ट, मेघालय हाईकोर्ट, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के उदाहरणों का उल्लेख किया गया है और बताया गया है कि इन सभी हाईकोर्ट ने फिजिकल हियरिंग फिर से शुरू करने का फैसला किया था,जिसके बाद इनको किस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।

प्रतिनिधित्व में कहा गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने वीएम सिंह बनाम मदम लाल मंगोत्रा व अन्य के मामले में एक आदेश दिनांक 24.11.2020 पारित किया था, जिसमें निर्देश दिया गया कि ''फिजिकल हियरिंग का प्रयास किया जा सकता है, परंतु यह वैकल्पिक होनी चाहिए और किसी को भी शारीरिक रूप से उपस्थित होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।''

इसके अलावा बीबीए ने बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि दिनांक 27 नवम्बर 2020 को जारी कार्यालय आदेश को निम्न तरीके से संशोधित किया जाएः

(1) वर्तमान में, तीन अतिरिक्त फिजिकल कोर्ट को उन फिजिकल कोर्ट के साथ जोड़ा जा जाता है जो 27 नवंबर 2020 तक चल रही हैं। इन अतिरिक्त अदालतों में उन मामलों की सुनवाई हो सकती है,जिनमें न्यायालय के समक्ष सुनवाई के लिए कई वकीलों को पेश होने की जरूरत नहीं होती हैं, जैसे कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत दायर सिंगल जज रिट याचिका पर फाइनल हियरिंग, विभिन्न आदेशों के खिलाफ दायर अपील पर अंतिम सुनवाई,फस्ट अपील, सैकेंड अपील आदि।

(2) 27 नवम्बर 2020 के आदेश के तहत शुरू की जाने वाली फिजिकल कोर्ट के मामले में विकल्प के तौर पर,फिजिकल और वर्चुअल कोर्ट की एक हाइब्रिड प्रणाली (जैसा कि माननीय मुख्य न्यायाधीश के न्यायालय में संचालित किया जा रहा है) को उपलब्ध कराया जा सकता है,ताकि जो वकील फिजिकल तौर पर पेश नहीं होना चाहते हैं,वह वुर्चअल तौर पर पेश हो सकें। ऐसे हाइब्रिड सुनवाई के लिए जब तक तकनीकी व्यवस्था नहीं हो पाती है,तब तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा पहले से ही मौजूद है और कई महीनों से सफलतापूर्वक इसका उपयोग किया जा रहा है, जिसे कम से कम 31 दिसंबर 2020 तक जारी रखा जा सकता है, जिसके बाद इस पर पुनर्विचार किया जा सकता है। ।

इसके अलावा, बीबीए ने अपने प्रतिनिधित्व में कहा है कि हाइब्रिड सुनवाई के संचालन में आने वाली तकनीकी कठिनाइयों को ''दिल्ली और राजस्थान जैसे कई हाईकोर्ट में सफलतापूर्वक दूर किया गया है।''

इस संबंध में, बीबीए ने प्रस्ताव दिया है कि वह तकनीकी एजेंसियों की सहायता लेंगे ताकि हाइब्रिड सुनवाई के लिए इस तरह की व्यवस्था स्थापित करने के लिए न्यायालय की तकनीकी टीम की सहायता कर सकें ताकि अदालतों को निर्बाध रूप से संचालित किया जा सके।

अंत में, बीबीए ने अपने इरादे को स्पष्ट किया और बताया कि ''बार एसोसिएशन रूम व बार लाइब्रेरी में कुछ पोर्टल्स प्रदान किए जा रहे हैं ताकि उन वकीलों को वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपस्थित होने में सक्षम बनाया जा सकें,जिनके पास इस तरह की तकनीक नहीं हैं।''

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