अनुच्छेद 311 | हर दोषसिद्धी पर दोषी कर्मचारी को स्वचालित और यांत्रिक रूप से हटाया नहीं जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2023-03-08 02:30 GMT

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311 के खंड (2) के प्रोविसो(ए) में शामिल प्रावधान, सीसीएस (सीसीए) नियम 1965 के नियम 19 (i) के साथ पढ़ने पर निश्चित रूप से यह प्रावधान करते हैं कि सजा पर कर्मचारी को बिना किसी जांच के पद से बर्खास्त किया जा सकता है/ हटाया जा सकता है / घटाया जा सकता है, लेकिन यह नहीं माना जा सकता है कि इस तरह की हर सजा के बाद दोषी कर्मचारी को स्वत: और यांत्रिक रूप से हटा दिया जाएगा।

जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए इस आशय की टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने सेवाओं से हटाने के अपने आदेश को चुनौती दी थी।

याचिकाकर्ता ने अपनी चुनौती को इस आधार पर रखा कि एक ही अपराध के लिए एक बार सजा सुनाए जाने के बावजूद, उसी अपराध के लिए उसे सेवा से हटाना अवैध, मनमाना, भेदभावपूर्ण, अनुचित, असंवैधानिक और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है।

याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि उसे नौकरी पर बने रहने का अधिकार है क्योंकि एक आपराधिक मामले में दोषसिद्धि सेवा से स्वत: बर्खास्तगी का वारंट नहीं करती है और प्रतिवादियों के अवैध और मनमाने कृत्य के परिणामस्वरूप, याचिकाकर्ता को आर्थिक और सामाजिक रूप से पीड़ित किया गया है।

इसके विपरीत, प्रतिवादियों ने सीसीएस (सीसीए) नियमावली, 1965 के नियम 19 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए अधिनियम को उचित ठहराया, कि किसी कर्मचारी को दोषी ठहराए जाने और सजा दिए जाने के बाद, नियोक्ता को उसे सेवा से हटाने का अधिकार है, जैसा कि सीसीएस (सीसीए) नियम, 1965 के नियम 19 केखंड (i) के तहत प्रदान किया गया है।

दोनों पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद अदालत ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम पीडी यादव, (2002) का हवाला दिया और देखा कि याचिकाकर्ता की और से ली गई दलील कि चूंकि वह पहले ही उक्त अपराध के लिए सजा काट चुका था, उस पर नियोक्ता द्वारा सीसीएस (सीसीए) नियमों के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा सकता था, टिकाऊ नहीं है।

हालाँकि, उसी का अवलोकन करते हुए पीठ ने स्पष्ट किया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 और सीसीएस (सीसीए) नियमों के नियम 19 (i) में प्रावधान है कि दोषी पाए जाने पर किसी कर्मचारी को बर्खास्त या हटाया जा सकता है या रैंक में कमी की जा सकती है...लेकिन उसे स्वत: हटाया नहीं जाना चाहिए।

पीठ ने आगे कहा कि कर्मचारी को बिना पूछताछ के सेवा से हटाने का अधिकार रखने वाले नियोक्ता को सभी प्रासंगिक कारकों पर विचार करना होगा, जैसे अपराध की प्रकृति और गंभीरता, सेवा पर सजा का प्रभाव, सजा के बाद सेवा में कर्मचारी की उपयुक्तता। सक्षम प्राधिकारी से इन प्रावधानों के तहत उचित सावधानी और काफी दिमाग लगाने के बाद अपनी शक्ति का प्रयोग करने की उम्मीद है।

याचिकाकर्ता को उसके हटाने के आदेश को चुनौती देने के लिए उपलब्ध वैकल्पिक उपाय की ओर इशारा करते हुए अदालत ने कहा कि यह न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत क़ानून के तहत उपलब्ध वैकल्पिक उपाय को समाप्त किए बिना सीधे याचिका पर विचार करने से मना करता है और हिचकिचाता है, लेकिन इस न्यायालय ‌को असाधारण परिस्थितियों में वैकल्पिक उपाय का लाभ नहीं उठाने के लिए स‌ंविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका पर विचार करने से नहीं रोका गया है।

चूंकि वैकल्पिक वैधानिक उपाय को समाप्त नहीं करने के लिए याचिका में कोई असाधारण परिस्थिति नहीं निकाली गई थी, इसलिए पीठ ने पक्षकारों की दलीलों से निपटते हुए गुण-दोष के आधार पर मामले का फैसला करने के बजाय, याचिकाकर्ता को अपीलीय अधिकारी से संपर्क करने की स्वतंत्रता और अनुमति के साथ याचिका का निस्तारण किया।

पीठ ने कहा, इस तरह की अपील, अगर याचिकाकर्ता द्वारा की जाती है, तो अपीलीय प्राधिकारी द्वारा 15 मई, 2023 को या उससे पहले फैसला किया जाएगा।

केस टाइटल: मोहिंदर सिंह बनाम हिमाचल प्रदेश परिवहन निगम।

साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एचपी) 12

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