"ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मिली संरचना की प्रकृति का पता लगाने के लिए समिति नियुक्त करें": सात हिंदू भक्तों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया

Update: 2022-06-08 02:32 GMT

ज्ञानवापी (Gyanvapi) में मिली संरचना की प्रकृति का अध्ययन करने के लिए भगवान विश्वेश्वर के सात भक्तों ने हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट (वर्तमान / सेवानिवृत्त) के जज की अध्यक्षता में एक समिति / आयोग की नियुक्ति करने की मांग करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) का रुख किया है।

रिट याचिका में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है कि क्या हिंदुओं द्वारा दावा किया गया शिव लिंग मस्जिद के अंदर पाया गया है या जैसा कि कुछ मुसलमानों द्वारा दावा किया जा रहा है कि यह यह एक फव्वारा है।

याचिका में आगे यूओआई और यूपी राज्य को इस तरह की रिपोर्ट के अनुसार कार्य करने और मस्जिद के अंदर शिव लिंग पाए जाने की स्थिति में भक्तों को अनुष्ठान के अनुसार प्रार्थना करने की अनुमति देने का निर्देश देने की मांग की गई है।

यह रिट याचिका वाराणसी के पांच निवासियों सर्व श्री सुधीर सिंह, बाबा बालक दास, शिवेंद्र प्रताप सिंह, और मार्कंडे तिवारी, और राजन राय और लखनऊ में हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले दो अधिवक्ताओं, एडवोकेट अतुल कुमार और एडवोकेट रवि मिश्रा की ओर से एडवोकेट अशोक पांडे द्वारा दायर की गई है।

याचिका में आगे कहा गया है कि जब ज्ञानवापी परिसर में शिव लिंग की तरह दिखने वाली संरचना मिली, तो सरकार का यह कर्तव्य था कि वह एएसआई के विशेषज्ञों की एक टीम को संरचना की प्रकृति के बारे में पता लगाने के लिए हिंदू संतों और मुस्लिम मौलवियों के साथ तुरंत मौके पर जाने के लिए नियुक्त करें।

याचिका में आगे कहा गया है,

"यदि यह शिवलिंग पाया जाता है, तो इसे हिंदुओं को भगवान विश्वेश्वर की पूजा, आरती, प्रसाद और दर्शन के लिए सौंप दिया जाना चाहिए और यदि यह फव्वारा है, तो इसे कार्यात्मक बनाना चाहिए ताकि देश में व्याप्त सांप्रदायिक तनाव कम हो सके। इस याचिका को दायर करने की आवश्यकता तब पैदा हुई जब शिवलिंग को फव्वारा कहने पर भाजपा नेता नुपुर शर्मा ने प्रोफेट मुहम्मद पर कुछ टिप्पणी की, जिसने मुस्लिम देशों के साथ देश के संबंधों को बिगाड़ दिया है।"

अंत में, याचिका में कहा गया है कि यह इस कारण से दायर किया जा रहा है कि भगवान विश्वेश्वर की भोग, दर्शन, आरती वर्षों और वर्षों तक इंतजार नहीं कर सकती और इसे बिना किसी और देरी के शुरू किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का विचार है कि जब तक धार्मिक अनुष्ठानों की अनुमति नहीं दी जाती, सांप्रदायिक तनाव जारी रहेगा और आने वाले दिनों में सार्वजनिक व्यवस्था में गड़बड़ी की पूरी संभावना है।



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