महीने की 31 तारीख को सेवानिवृत्त हुआ कर्मचारी, अगले महीने की पहली तारीख को देय वेतन वृद्धि का दावा नहीं कर सकताः हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना है कि महीने की 31 तारीख को सेवानिवृत्त हुआ कर्मचारी, अगले महीने की पहली तारीख को देय वेतन वृद्धि का दावा नहीं कर सकता है, क्योंकि उस दिन, उसकी स्थिति कर्मचारी की नहीं, बल्कि पेंशनभोगी की है।
उद्योग विभाग (भूगर्भीय स्कंध) के एक वरिष्ठ जलविज्ञानी की ओर से दायर रिट याचिका पर जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने कहा, "सेवानिवृत्ति के बाद के अगले महीने की पहली तारीख को वेतन वृद्धि देय है। याचिकाकर्ता 31 मार्च, 2003 को आहरित मूल वेतन पर सेवानिवृत्त हो गए। उनकी पेंशन उसी के अनुसार निर्धारित की जाएगी। याचिकाकर्ता एक अप्रैल, 2003 को पेंशनभोगी हो चुके थे। वह सेवानिवृत्ति के बाद देय किसी भी वेतन वृद्धि के हकदार नहीं हो सकते। वह केवल उन्हीं वेतन वृद्धि के हकदार हैं, जो उनकी सेवा अवधि के दौरान आते हैं।"
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी स्थिति का निस्तारण किया है कि सेवानिवृत्ति के दिन के तुरंत बाद जो वेतन वृद्धि होती है, वह उस कर्मचारी को इस आधार पर दी जानी चाहिए कि उसने सेवानिवृत्ति की तारीख से पहले 12 महीने की सेवा पूरी की थी।
मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पी अय्यमपेरुमल बनाम रजिस्ट्रार में निर्धारित सिद्धांत पर भरोसा रखा किया गया, जहां यह माना गया था कि एक जुलाई, 2012 से 30 जून, 2013 तक एक वर्ष की सर्विस पूरा करने पर याचिकाकर्ता वेतन वृद्धि हकदार होगा, जिसे उसने 'उक्त अवधि में' अर्जित किया, हालांकि वेतन वृद्धि एक जुलाई, 2013 को हुई है जब वह सेवानिवृत्त हो चुका था।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में इस फैसले के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका को रद्द कर दिया था। इसलिए, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कानून तय किया है, जिसे इस मामले में लागू किया जाना चाहिए।
डिवीजन बेंच ने हालांकि, इस सिद्धांत को लागू करने से इनकार कर दिया। पीठ ने स्पष्ट किया कि एक आदेश, जिससे अपील की विशेष अनुमति से इनकार किया गया है, वह सकारण आदेश हो या अकारण आदेश, (स्पीकिंग या नॉन स्पीकिंग ऑर्डर) विलय के सिद्धांत को आकर्षित नहीं करेगा। पीठ ने कहा, "मौजूदा मामले में, अपील की विशेष अनुमति से इनकार का आदेश अकारण है, इसलिए, यह चुनौती अधीन आदेश के स्थान पर प्रतिस्थापित नहीं होता है।"
खोडे डिस्टिलरीज लिमिटेड और अन्य बनाम श्री महादेश्वरा सहकार सक्करे करखाने लिमिटेड, कोल्लेगल, 2019) 4 एससीसी 376 पर भरोसा रखा गया। उड़ीसा राज्य और अन्य बनाम धीरेंद्र सुंदर दास व और अन्य (2019) 6 एससीसी 270 का संदर्भ भी दिया गया, जहां दोहराया गया था कि किसी भी विस्तृत कारण के बिना किसी सीमा में एक एसएलपी को खारिज करना कानून की कोई घोषणा या अनुच्छेद 141 के तहत बाध्यकारी प्रस्ताव का गठन नहीं करता है।
मामले के तथ्यों पर आते हुए, न्यायालय ने मौलिक नियमों (FR) का उल्लेख किया, जो कर्मचारियों की सेवा की सभी सामान्य स्थितियों को नियंत्रित करता है। यह नोट किया गया कि FR 56(a) के संदर्भ में, जिस दिन सरकारी कर्मचारी सेवानिवृत्त होता है, वह उसका अंतिम कार्य दिवस माना जाता है। इसके अलावा, FR 17 (1) प्रदान करता है कि एक अधिकारी पद से संबंधित वेतन और भत्ते को पोस्ट, उसी तिथि से आहरित करना शुरु कर देता है, जब वह उस पद की जिम्मेदारी ग्रहण करता है, और जैसे ही वह उन जिम्मेदारियों का निर्वहन करना बंद करता है, सभी लाभ का आहरण बंद कर देता है।
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालयों द्वारा पारित आदेशों पर भरोसा करते हुए तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की सेवा शर्तों को संचालित करने वाले मौलिक नियमों को ध्यान में रखते हुए, सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद अगले वार्षिक वेतन वृद्धि का दावा करने वाली रिट याचिका को अनुमति नहीं दी जा सकती है।
इसके मद्देनजर, न्यायालय ने कहा, "याचिकाकर्ता एक अप्रैल, 2003 को ड्यूटी पर नहीं था। वेतन वृद्धि केवल तभी की जा सकती है जब कोई कर्मचारी ड्यूटी पर हो। FR 24 और 26 के संदर्भ में वेतन वृद्धि याचिकाकर्ता की सेवा की अवधि के दौरान नहीं हुई थी। इसलिए एक अप्रैल, 2003 की वेतन वृद्धि उस याचिकाकर्ता के पक्ष में मंजूर नहीं की जा सकती, जिस आधार पर उसने बारह महीने की निरंतर सेवा पूरी की थी। "
केस टाइटल: हरि प्रकाश बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य
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