मजिस्ट्रेट ने अमूल्या लिओना की डिफॉल्ट ज़मानत स्वीकार की, पुलिस, तय समय सीमा में नहीं कर पाई चार्जशीट दाखिल

Update: 2020-06-12 06:46 GMT

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन स्थल पर पाकिस्तान समर्थित नारे लगाने के आरोप में 20 फरवरी से हिरासत में ली गई 19 वर्षीय छात्रा अमूल्या लिओना को पुलिस के तय समय सीमा में चार्जशीट दाखिल न कर पाने के कारण डिफॉल्ट ( स्वतः) ज़मानत मिल गई।

पुलिस द्वारा 90 दिनों की अवधि के भीतर आरोप पत्र दायर करने में विफल रहने के बाद 20 फरवरी से न्यायिक हिरासत में  रही लियोना को स्वतः जमानत मिली।

एडवोकेट बीटी वेंकटेश और एडवोकेट आर प्रसन्ना ने आरोपी का प्रतिनिधित्व किया। 

अधिवक्ता बीटी वेंकटेश ने कहा,

" 20 मई को आरोप पत्र दायर करने के लिए 90 दिनों की अवधि समाप्त हुई। हमने सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत की मांग करने के लिए जल्द ही अदालत का रुख किया।

हालांकि, लॉकडाउन के कारण ट्रायल कोर्ट बंद थे, इसलिए मामला सुनवाई के लिए नहीं लिया गया। 2 जून को, हमने फिर से आवेदन दिया और 10 जून को एक आदेश पारित किया गया, जब अमूल्या की नियमित जमानत अर्जी को सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया।"

मजिस्ट्रेट के आदेश को अभी तक अदालत की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं कराया गया है।

सत्र न्यायालय ने नियमित जमानत के लिए उसके आवेदन को अस्वीकार करते हुए कहा था, 

"आईओ ने जांच पूरी नहीं की है और आरोप पत्र दायर नहीं किया है। यदि याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह फरार हो सकती है या वह ऐसे ही अपराध में शामिल हो सकती है।"

जैसा कि आवेदक की ओर से तर्क दिया जाता है कि केवल नारे लगाना अपराध नहीं हो सकता, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विद्याधर शिरहट्टी ने कहा, 

" यह मेरी राय है कि यह दिखाने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि पाकिस्तान दुश्मन देश है या नहीं, लेकिन याचिकाकर्ता ने जिन नारों का इस्तेमाल किया है, वे निश्चित रूप से सार्वजनिक, कानून व्यवस्था और सार्वजनिक शांति की भावनाओं को प्रभावित करेंगे।"

अमूल्य को 20 फरवरी को भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए, 153 (ए), 153-बी, 505 (2) के तहत गिरफ्तार किया गया था। पाँच दिनों तक पुलिस हिरासत में रहने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया और तब से वह जेल में है।

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