अंबेडकर जयंती पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का संदेश: "सांप्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद और लैंगिक पक्षपात हमारे संवैधानिक आदर्शों के विपरीत"
इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता डॉ बी.आर अंबेडकर की 129 वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक संदेश भेजा है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा है कि साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, लैंगिक पक्षपात और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के प्रति छोटे या दमघोटू विचार हमारे संवैधानिक आदर्शों के विरोधी हैं।
उन्होंने कहा कि संवैधानिक मूल्यों का पालन करना केवल राज्य का काम नहीं है , बल्कि ये मूल्य हमारे जीवन का तरीका और हर नागरिक की दिन-प्रतिदिन की गतिविधि होने चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोविंद माथुर ने कहा कि-
''अपने दैनिक जीवन में और साथ ही साथ अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, हमें अपने उन संवैधानिक मूल्यों के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए,जिनको हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आकार प्राप्त हुआ था। और बाद में जिनको डॉ बी.आर अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमेटी ने शब्दों का रूप दिया था।''
'' 15 अगस्त, 1947 को, भारत की स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर, आधी रात के समय जब दुनिया सो रही थी, पंडित जवाहर लाल नेहरू भारतीय संविधान सभा को संबोधित करते हुए कह रहे थे कि-
'' भविष्य आसान या आराम करने का नहीं है, बल्कि लगातार प्रयास करने का है ताकि हम अपने उन वादों को पूरा कर सकें ,जो हमने किए हैं और जो हम आज करेंगे। भारत की सेवा का अर्थ लाखों पीड़ितों की सेवा है। इसका अर्थ है गरीबी और अज्ञानता और बीमारी और अवसर की असमानता का अंत करना।"
संसद भवन के सेंट्रल हॉल से गूंजने वाली भारतीय लोगों की महत्वाकांक्षा को विकास के गतिशील और दूरदर्शी मार्ग से ही महसूस किया जा सकता था और ऐसा रास्ता एक संविधान के माध्यम से ही दिया जा सकता था। इसके लिए 29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने एक ''ड्राफ्टिंग कमेटी'' नियुक्ति की।
भारतीय मिट्टी के महान पुत्र, भारत रत्न, डॉ बी. आर अंबेडकर 30 अगस्त, 1949 को समिति के अध्यक्ष बने। बहुत जल्द इस समिति ने संविधान सभा के समक्ष संविधान का ड्राफ्ट पेश किया। जिस पर विचार-विमर्श के बाद 26 नवंबर, 1949 को हम भारत के लोगों ने इसे अपनाया, अधिनियमित किया और सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक दस्तावेज ''संविधान'' को अपने आप को सौंप दिया।
यह सच है कि संविधान का निर्माण ड्राफ्टिंग कमेटी और संविधान सभा के सदस्यों का एक संयुक्त प्रयास था, परंतु डॉ. अम्बेडकर के ज्ञान का प्रतिबिंब इसमें स्पष्ट है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद के शब्दों में, ''हमने जो सबसे बेहतर काम किया है वो यह है कि डॉ.अंबेडकर इस ड्राफ्टिंग कमेटी में शामिल थे और उन्हें इसके अध्यक्ष के रूप में चुना गया।''
कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अपने विशेष दीक्षांत समारोह में डॉ. अंबेडकर को एलएलडी की उपाधि से सम्मानित किया था। जिसमें लिखा था कि-'
'भारतीय संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने के संबंध में उनके द्वारा किए गए कार्यों को मान्यता देते हुए यह डिग्री उनको दी जा रही है''। डॉ .अम्बेडकर को विश्वविद्यालय ने ''भारत के अग्रणी नागरिक, एक महान समाज सुधारक और मानवाधिकारों के प्रति जागरूक रहने वाले'' के रूप में भी सम्मानित किया था।''
भारत का संविधान क्या करना है ओर क्या नहीं,इस पर कोई एक साधारण कानून की किताब या वसीयतनामा नहीं है, बल्कि एक राष्ट्र के रूप में और अपने नागरिकों के संघीय समाज के रूप में भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के लिए एक अच्छी तरह से तैयार मार्ग है। जिसमें सभी हितधारकों को पर्याप्त स्वतंत्रता दी गई है ताकि उनकी स्वस्थ परंपराओं और मूल्यों की रक्षा की जा सके और उन्हें बढ़ावा दिया जा सके।
इस महान दस्तावेज को हमें सौंपते हुए, डॉ बी.आर. अंबेडकर को रास्ते में पड़े कांटों की भी जानकारी थी। उनके शब्दों में -
"26 जनवरी, 1950 को, हम विरोधाभासों के जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी और सामाजिक और आर्थिक जीवन में हमारे पास असमानता होगी। राजनीति में हम एक आदमी एक वोट और एक वोट एक मूल्य के सिद्धांत को मान्यता देंगे। हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में, हम अपनी सामाजिक और आर्थिक संरचना के कारण, एक आदमी एक मूल्य के सिद्धांत को अस्वीकार करना जारी रखेंगे या स्वीकार नहीं कर पाएंगे।
कब तक हम विरोधाभासों के इस जीवन को जीना जारी रखेंगे? कब तक हम अपने सामाजिक और आर्थिक जीवन में समानता को नकारते रहेंगे? अगर हम इसे लंबे समय तक नकारते रहे ,तो हम अपने राजनीतिक लोकतंत्र को संकट में डालकर ही ऐसा कर पाएंगे। हमें जल्द से जल्द इस विरोधाभास को दूर करना चाहिए अन्यथा असमानता से पीड़ित होने वाले लोग उस राजनीतिक लोकतंत्र की संरचना को उड़ा देंगे, जिसे इस विधानसभा ने इतने मजबूती से बनाया है।''
संविधान के मूल्यों की रक्षा करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए वह हमेशा खुले और स्वतंत्र मन के वांछित थे जैसा कि वह खुद भी अपने कामों में थे। उनके द्वारा वर्णित उनकी दृष्टि -
''मन की स्वतंत्रता ही वास्तविक स्वतंत्रता है। एक व्यक्ति जिसका मन स्वतंत्र नहीं है, भले ही वह जंजीरों में न बंधा हो परंतु वह एक गुलाम है, स्वतंत्र व्यक्ति नहीं है। जिसका मन आजाद नहीं है, भले वह जेल में न हो परंतु वह कैदी है और आजाद आदमी नहीं है। जिसका दिमाग जिंदा नहीं है, वह मृत के समान है। मन की स्वतंत्रता किसी के अस्तित्व का प्रमाण है।"
आज हम डॉ बी. आर की 129 वीं जयंती मना रहे हैं। यह उत्सव उनके मूल्यों के लिए एक योग्य श्रद्धांजलि है जिनको हमने अपने संविधान में अपनाया है।
हमारी शासन प्रणाली के गहने हैं-संप्रभुता, समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और राज्य का गणतंत्र रूप हैं जो न्याय-सामाजिक-आर्थिक और राजनीति के लिए प्रतिबद्ध हैं, विचार की स्वतंत्रता,विचार, अभिव्यक्ति, धारणा, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता, स्थिति और अवसर की समानता और सभी नागरिकों के बीच बंधुत्व या भाईचारा जो हर व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता का आश्वासन देती है।
भारत का नागरिक होने के नाते, संविधान का पालन करना और उसके आदर्शों का सम्मान करना हमारा मौलिक कर्तव्य है।
न्यायिक बिरादरी का सदस्य होने के नाते, सभी संवैधानिक आदर्शों और मूल्यों के बढ़ावा देने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हमारे कंधों पर सबसे ज्यादा है। इन मूल्यों का पालन केवल राज्य द्वारा नहीं किया जाना चाहिए बल्कि ये मूल्य हमारे जीवन का तरीका और प्रत्येक नागरिक की दिन-प्रतिदिन की गतिविधि होने चाहिए।
हमारे बहुवर्गीय समाज में समानता की अवधारणा एक खजाना है। यद्यपि एक उचित वर्गीकरण अनुमेय है या उसकी अनुमति प्राप्त है। लेकिन हमारे संविधान के निर्माता को एक सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए भारतीय नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीति जीवन के हर क्षेत्र में वास्तविक समानता लानी होगी।
सांप्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, लैंगिक पक्षपात और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों के प्रति दमघोटू या छोटे विचार हमारे संवैधानिक आदर्शों के विरोधी हैं और हमें निडर, निष्पक्ष और बिना किसी हिचकिचाहट के इनके खिलाफ लड़ना चाहिए।अपने दैनिक जीवन में और साथ ही साथ अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए, हमें अपने उन संवैधानिक मूल्यों के लिए खुद को प्रतिबद्ध करना चाहिए,जिनको हमारे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आकार प्राप्त हुआ था। और बाद में जिनको डॉ बी.आर अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमेटी ने शब्दों का रूप दिया था।
14 अप्रैल के इस पुण्य दिन पर, हम सभी को अपने संविधान को सफल बनाने के लिए सुधारात्मक उपाय करने के लिए स्वयं की तरफ देखना चाहिए। चूंकि यही संविधान के निर्माता को सच्ची श्रद्धांजलि देने और भारतीय संघ को लंबे समय तक जीवित रखने का एकमात्र तरीका होगा।
जय हिन्द