'प्रथम दृष्टया महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी में गरीब नवाज मस्जिद के विध्वंस के खिलाफ याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2021-06-23 05:27 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड द्वारा दायर एक रिट याचिका पर नोटिस जारी किया है। इस याचिका में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले (राम सनेही घाट क्षेत्र) में गरीब नवाज मस्जिद के विध्वंस को चुनौती दी गई है।

जस्टिस सौरभ लावानिया और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने कहा कि याचिकाएं प्रथम दृष्टया सार्वजनिक उपयोगिता भूमि पर एक मस्जिद के अस्तित्व के बारे में महत्वपूर्ण सवाल उठाती हैं।

इसने कहा कि याचिका सीआरपीसी की धारा 133 के तहत राज्य के अधिकारियों द्वारा शक्ति के प्रयोग के संबंध में भी सवाल उठाती है। साथ ही अन्य संबंधित प्रावधान, इसका मस्जिद को जिस तरह से गिराया गया है, उस पर याचिका के दायरा को विशेष रूप से सत्ता के दुर्भावनापूर्ण प्रयोग के आरोप तक बढ़ाया गया है।

सभी विपक्षी दलों को इस मामले में अपना जवाबी हलफनामा तीन सप्ताह के भीतर सकारात्मक रूप से दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

मामले की सुनवाई 23 जुलाई को तय की गई है।

सुनवाई के दौरान, पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर से पूछा कि जिस प्रकार की भूमि पर कथित रूप से मस्जिद मौजूद थी, उसकी प्रकृति या श्रेणी क्या थी; इसका मालिक कौन था?

इस संबंध में बेंच को 1960 के कुछ चकबंदी रिकॉर्ड के बारे में बताया गया था, जिसमें उक्त भूमि का उल्लेख 'आबादी' के रूप में किया गया था। हालांकि उसमें मस्जिद का भी उल्लेख है।

यह पूछे जाने पर कि आबादी की जमीन पर मस्जिद कैसे बनी, इस पर बताया गया कि मस्जिद का निर्माण 100 साल पहले हुआ था।

हालांकि, बेंच ने कहा कि वकील अब तक इस संबंध में कोई दस्तावेजी सबूत दिखाने में असमर्थ रहा है, चाहे वह यूपीजेडएएलआर अधिनियम, 1950 के अनुसार निहित होने की तारीख से पहले की अवधि जैसे 1356 एफ का राजस्व रिकॉर्ड हो या उसके बाद (1359 एफ का राजस्व रिकॉर्ड, चकबंदी का मूल वर्ष खतौनी) या उस मामले के लिए कोई अन्य दस्तावेज हो।

उत्तर प्रदेश सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड द्वारा गरीब नवाज मस्जिद के हालिया विध्वंस के खिलाफ याचिका एडवोकेट सैयद आफताब अहमद के माध्यम से दायर की गई है। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने एडवोकेट सऊद रईस के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख किया है।

यह ध्यान दिया जा सकता है कि इस महीने की शुरुआत में बाराबंकी में जिला प्रशासन द्वारा मस्जिद को "अवैध संरचना" होने का दावा करते हुए ध्वस्त कर दिया गया था। इसलिए याचिकाकर्ताओं ने मस्जिद के पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापित करने के निर्देश मांगे हैं।

याचिकाकर्ताओं द्वारा यह प्रस्तुत किया गया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 133 (1) के तहत स्थानीय अधिकारियों द्वारा मस्जिद विध्वंस की कार्यवाही पूरी तरह से शत्रुता और दुर्भावना से और बेहद जल्दबाजी से की गई थी।

दलीलों में यह भी कहा गया है कि विध्वंस हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश का घोर उल्लंघन था, जिसमें राज्य सरकार, नगरपालिका प्राधिकरणों और अन्य स्थानीय निकायों और राज्य सरकार की एजेंसियों और उपकरणों को विध्वंस और बेदखली की कार्रवाई में 31 मई, 2021 तक धीमी गति से करने का निर्देश दिया गया था।

याचिकाओं में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार कुछ नई संरचना बनाकर ध्वस्त मस्जिद की जगह की प्रकृति को बदलने की कोशिश कर रही है और यदि याचिकाकर्ताओं को तत्काल नहीं सुना जाता है, तो उन्हें एक अपूरणीय क्षति होगी।

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