इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कृषि कानून के खिलाफ विरोध के दौरान प्रदर्शनकारी की मौत की रिपोर्ट पर 'द वायर' के सिद्धार्थ वरदराजन और इस्मत आरा के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी में अंतिरम सुरक्षा प्रदान की
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में 'द वायर' के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और रिपोर्टर इस्मत आरा को गणतंत्र दिवस की घटनाओं के दौरान नई दिल्ली में एक प्रदर्शनकारी की मौत पर एक रिपोर्ट ट्वीट करने के मामले में उनके खिलाफ दर्ज केस के संबंध में गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा प्रदान किया था।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य से तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है।
मामले की पृष्ठभूमि
कोर्ट सिद्धार्थ वरदराजन और आरा द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था।
नवरीत सिंह दिब्दिबिया (दिल्ली में कृषि कानून विरोध के दौरान मौत) पर एक स्टोरी ट्वीट करने के लिए आईपीसी की धारा 153 बी (राष्ट्रीय एकता के लिए पूर्वाग्रह का आरोप) और 505 (2) (धर्मों के बीच दुश्मनी पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान) के तहत उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई थी।
उनके द्वारा ट्वीट की गई स्टोरी (इस्मत आरा द्वारा लिखित) में दावा किया गया था कि प्रदर्शनकारी के दादा हरदीप सिंह दिब्दिबिया ने कहा था कि उन्हें पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के पैनल में से एक डॉक्टर ने बताया था कि युवक की गोली लगने से मौत हो गई थी और उसके (डॉक्टर के) हाथ बंधे होने के कारण वह कुछ नहीं कर पा रहा था।
हालांकि, बाद में रामपुर पुलिस ने एक बयान ट्वीट कर कहा कि नवरीत सिंह के पोस्टमार्टम में शामिल डॉक्टरों ने इस बात से इनकार किया है कि उन्होंने "मीडिया या किसी अन्य व्यक्ति से" बात की है या ऐसी कोई जानकारी प्रदान की है जैसा कि मीडिया में उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
इसके अलावा, रामपुर निवासी संजू तुरैहा की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई। अपनी शिकायत में उन्होंने दावा किया कि द वायर ने लोगों को गुमराह करने के लिए डॉक्टर के हवाले से कहा और इस स्टोरी से रामपुर में आम लोगों में गुस्सा है और तनाव भी है।
यह ध्यान दिया जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2021 में, "द वायर" और उसके तीन पत्रकारों को उनके द्वारा प्रकाशित / लिखित समाचार रिपोर्टों ( सिद्धार्थ वरदराजन और आरा द्वारा किए गए वर्तमान ट्वीट सहित) पर उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा था।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उन्हें दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा प्रदान करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के 8 सितंबर, 2021 के उस आदेश को भी ध्यान में रखा। इसमें पोर्टल द्वारा प्रकाशित कुछ रिपोर्टों पर उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा "द वायर" और उसके तीन पत्रकारों के खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकी में दो महीने की सुरक्षा प्रदान की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीधे मामले पर विचार करने पर "भानुपति का पिटारा" खुलेगा और उन्हें प्राथमिकी रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा।
पीठासीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने कहा था,
"हम मौलिक अधिकारों के बारे में जानते हैं और नहीं चाहते कि प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया जाए।" जबकि पत्रकारों को सीधे सर्वोच्च न्यायालय में आने से पहले उच्च न्यायालय का रुख करना चाहिए था।
जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की एक पीठ फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म (कंपनी जो "द वायर" की मालिक है) और पत्रकार सिराज अली, मुकुल सिंह चौहान और इस्मत आरा द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
हाईकोर्ट 24 नवंबर को दोनों मामलों की अलग-अलग सुनवाई करेगा।