इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2004 में एक परिवार के 4 व्यक्तियों को जहर देकर मारने के आरोपी को बरी किया

Update: 2023-01-25 15:30 GMT

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में वर्ष 2004 में दोषी ठहराए गए उस व्यक्ति को बरी कर दिया है,जिस पर मांस में जहर मिलाकर एक परिवार के 4 व्यक्तियों की कथित रूप से हत्या करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के खिलाफ विश्वसनीय सबूत नहीं मिले हैं।

जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने मोहम्मद असलम नामक आरोपी को बरी करते हुए कहा कि हालांकि यह दर्दनाक था कि परिवार के चार लोगों को जहर देकर मार दिया गया था और अपराध के असली अपराधी को सजा नहीं दी जा सकी।

अदालत ने निचली अदालत के उस आदेश और फैसले को खारिज कर दिया,जिसमें आरोपी को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने कहा,

‘‘जहां तक अपीलकर्ता-आरोपी मोहम्मद असलम का संबंध है तो अभियोजन पक्ष पुख्ता सबूतों से निर्णायक रूप से यह स्थापित करने में विफल रहा है कि अभियुक्त/अपीलकर्ता ने ही चार मृतकों की हत्या की थी।’’

न्यायालय ने पाया कि अभियोजन पक्ष उन परिस्थितियों को साबित नहीं कर सका जिसके कारण आरोपी को दोषी ठहराया गया और परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी नहीं हुई थी।

संक्षेप में मामला

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार अभियुक्त/अपीलकर्ता का अपने सगे भाई (मोहम्मद सालिस/मृतक नंबर 1) के साथ विवाद था और वह हमेशा मृतक नंबर 1 को 10000 रुपये की राशि वापस करने से इनकार करता था।

13 जनवरी 2001 को आरोपी भैंस का मांस लाया और चोरी-छिपे उसमें जहर मिला दिया। उसने यह मांस खैरुन्निसम (मृतक नंबर 1 की पत्नी) को पकाने के लिए दे दिया और कुछ जरूरी काम का बहाना करके स्वयं घर से बाहर चला गया।

उस मांस को खाने के बाद मोहम्मद सालिस, उसकी पत्नी खैरुन्निसम और उनके दो बच्चों (अजमेरी और गुलशन) की मौत हो गई। मामले में एफआईआर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हरदोई के आदेश के अनुसार दर्ज की गई थी क्योंकि खैरुन्निसम के भाई ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक याचिका दायर कर एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने की मांग की थी।

मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, फास्ट ट्रैक कोर्ट संख्या 5, जिला हरदोई ने अभियुक्त को दोषी करार दिया था।

इससे व्यथित होकर अभियुक्त ने यह तर्क देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों में से दो अपने बयान से मुकर गए थे और केवल अब्दुल सत्तार (शिकायतकर्ता, खैरुन्निसम के भाई) ने घटना के बारे में बताया था और वह भी विरोधाभासी तरीके से जो कि भरोसेमंद नहीं है।

यह भी कहा गया कि मृतक व्यक्तियों के पास शिकायतकर्ता को घटना के बारे में बताने का कोई मौका नहीं था क्योंकि वह घटना स्थल पर उस समय पहुंचा था,जब चारों की मौत हो चुकी थी। यह भी दृढ़ता से कहा गया कि अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला को एक उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।

न्यायालय की टिप्पणियां

अभियोजन पक्ष के मामले और आरोपी के वकील द्वारा दी गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है कि मोहम्मद असलम के पास जहर था।

अदालत ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं था जो यह साबित कर सके कि अभियुक्त ने मांस के टुकड़े खैरुन्निसम को सौंपे थे और उसने उस खांसी की दवाई (जिसे वह कथित तौर पर पीडब्लू 1 के अनुसार अपने साथ लाया था) को मांस में मिलाया था।

न्यायालय ने कहा कि आरोपी के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला है। कोर्ट ने यह भी कहा कि,

‘‘अभियोजन इस निष्कर्ष की ओर ले जाने वाली परिस्थितियों को साबित करने में विफल रहा है कि अपीलकर्ता/दोषी ने मांस में जहर देकर सभी चार मृतक व्यक्तियों को मार डाला था। यह स्थापित करने के लिए कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि मोहम्मद असलम मांस और मसाले लाया था और यह सब उसने मृतक महिला को पकाने के लिए दिए थे। इस बात का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है कि मोहम्मद असलम के पास जहर था और यह साबित करने के लिए कोई भरोसेमंद और ठोस सबूत नहीं है कि मोहम्मद असलम ने मांस पकाते समय उस मांस में कुछ जहर मिला दिया था।’’

इसके अलावा अदालत ने शिकायतकर्ता के बयानों में विसंगतियां पाईं क्योंकि उसने अपने बयानों में सुधार किया था।

नतीजतन, अदालत ने सजा को रद्द कर दिया और आरोपी को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।

प्रतिनिधित्व-

अपीलकर्ता के वकील-श्री आर.बी.एस. राठौर (एमिकस क्यूरी)

प्रतिवादी के वकील-अतिरिक्त सरकारी वकील

केस टाइटल-मो. असलम बनाम यूपी राज्य,आपराधिक अपील संख्या- 530/2004

साइटेशन-2023 लाइव लॉ (एबी) 33

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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