इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित तौर पर दो रिश्तेदारों को आग लगाकर मारने के लिए मौत की सजा पाने वाले व्यक्ति को बरी किया

Update: 2023-08-24 11:25 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में अपनी सास और साले को जलाकर मारने के आरोपी एक व्यक्ति की मौत की सजा को रद्द कर दिया क्योंकि अदालत ने कहा कि उसका अपराध उचित संदेह से परे स्थापित नहीं हो सका।

जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिजवी की पीठ ने कहा,

“ हम मामले के तथ्यों में पाते हैं कि निचली अदालत ने गवाहों की गवाही की सावधानीपूर्वक जांच नहीं की है और अभियोजन पक्ष के मामले को उसके आधार पर स्वीकार कर लिया है। मृत्यु पूर्व बयान के मूल्यांकन के संबंध में कानून को भी वर्तमान मामले के तथ्यों में सही ढंग से लागू नहीं किया गया है , क्योंकि इससे आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है।"

संक्षेप में मामला

मूल रूप से आरोपी के खिलाफ केस यह था कि 17 जून, 2003 को वह अपनी पत्नी और बेटी के बारे में पूछताछ करने के लिए मृत लोगों (पत्नी की मां और पत्नी का भाई) के घर आया था।

जब परिवार के सदस्यों ने उसे बताया कि उनमें से कोई घर नहीं आए हैं तो उसने उनके साथ गाली-गलौज करना शुरू कर दिया और रात में लगभग 1.00 बजे उसने मृतक व्यक्तियों पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा दी। दोनों लोगों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया जहां आरोपी की सास की मौके पर ही मौत हो गई और उसके साले की इलाज के दौरान मौत हुई।

ट्रायल कोर्ट मामले में दिए गए सबूतों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंची कि इस कृत्य को करने के पीछे का मकसद आरोपी की अपनी बेटी को अपनी रखैल के रूप में अपने पास रखने की इच्छा थी जिसका विरोध परिवार के सदस्यों ने किया। आखिरकार, आरोपी ने अपनी सास और और साले की हत्या कर दी।

महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने मृतक/दीपचंद (आरोपी के साले) के मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर बहुत अधिक भरोसा किया।

अदालत ने कहा था कि चूंकि आरोपी की पत्नी ने घटना की तारीख को अपनी बेटी की शादी की थी और जाहिर तौर पर आरोपी इस तरह के कृत्य से क्रोधित था और उसने भयानक कृत्य किया जिसके परिणामस्वरूप दो लोग मारे गए।

ट्रायल कोर्ट ने आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 504 के तहत आरोप साबित पाया और उसे मौत की सजा सुनाई।

अभियोजन पक्ष के पूरे मामले, उसके द्वारा पेश किए गए सबूतों और वकीलों द्वारा दी गई दलीलों का विश्लेषण करने के बाद हाईकोर्ट ने शुरुआत में पाया कि गवाहों की गवाही आरोपी के घर आने के तथ्य के बयान तक ही सीमित थी। मृतक के बारे में और उसकी पत्नी और बेटी के बारे में पूछताछ करने पर गवाहों और अभियुक्तों के बीच क्या बातें हुईं या क्या-क्या बातें हुईं, इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया गया, जिससे वह इस हद तक क्रोधित हो गया कि उसने बाद में अपने दो ससुराल वालों की हत्या कर दी।

अदालत ने एमिकस क्यूरी राजर्षि गुप्ता द्वारा दी गई दलीलों में भी दम पाया कि उद्देश्य (कि आरोपी अपनी बेटी को अपने साथ रखना चाहता था) को बाद में पेश किया गया, जिससे आरोपी की एक भयावह इमेज को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में चित्रित किया जा सके जो यह दिखा सके कि वह क्रूर और बर्बरतापूर्ण काम करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

इसके अलावा न्यायालय को पीडब्लू1 और पीडब्लू2 की गवाही में उनके द्वारा बताए गए तथ्यों के संबंध में अधिक सत्यता नहीं मिली। इसी तरह, पीडब्लू3 और पीडब्लू4 की गवाही भी अदालत ने खारिज कर दी।

दीपचंद/मृतक के मृत्यु पूर्व दिए गए बयान के साक्ष्य के संबंध में न्यायालय ने उसमें (जैसा कि मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया था) जांच अधिकारी द्वारा दर्ज किए गए बयान में कई भौतिक विरोधाभास पाए।

कोर्ट ने कहा,

“ इसलिए, मजिस्ट्रेट को दिया गया मृत्यु पूर्व बयान हमें पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं लगता है, क्योंकि दीप चंद के टीवी देखने के लिए अपनी मां के कमरे में जाने और अन्य तथ्यों के संबंध में दिए गए तथ्यात्मक दावे का खंडन किया। ''

अदालत ने यह पाते हुए कि मृत्यु पूर्व बयान के मूल्यांकन के संबंध में कानून को वर्तमान मामले के तथ्यों में सही ढंग से लागू नहीं किया गया, उसे संदेह का लाभ दिया और उसकी अपील को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि वह पहले ही 10 साल की सजा काट चुका है, इसलिए उसकी रिहाई का मार्ग प्रशस्त हो गया है।

अपीयरेंस

आवेदक के वकील: जेल से, ए.के.द्विवेदी (अमी. क्यूरी), राजर्षि गुप्ता ए.सी

विपक्षी पक्ष के वकील: सरकारी वकील

केस टाइटल : जुगल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 2023

लाइव लॉ (एबी) 283

केस नंबर - 3809/2015

निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें


Tags:    

Similar News