इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कथित तौर पर 'खुदा में विश्वास रखने वाले अगर बीजेपी को वोट देते हैं तो 'खुदा' उन्हें माफ नहीं करेगा’ टिप्पणी के मामले में अरविंद केजरीवाल को राहत देने से इनकार किया

Update: 2023-01-17 07:58 GMT

Arvind Kejriwal

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने सोमवार को सुल्तानपुर कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ 2014 में दर्ज एक मामले में डिस्चार्ज करने की याचिका को खारिज कर दिया गया था।

केजरीवाल ने कथित तौर पर कहा गया था कि जो लोग 'खुदा' में विश्वास रखते हैं, अगर वे बीजेपी को वोट देते हैं तो 'खुदा' उन्हें माफ नहीं करेगा।

जस्टिस राजेश सिंह चौहान की पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि केजरीवाल ‘खुदा’ के नाम पर मतदाताओं को यह अच्छी तरह जानते हुए भी धमका रहे हैं कि अगर वह 'खुदा' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो विभिन्न धर्मों के मतदाताओं के कुछ समूह गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।

पीठ ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया एक व्यक्ति के लिए, जो एक राज्य का मुख्यमंत्री है, किसी भी ऐसे वाक्य या शब्द का उच्चारण करना सभ्य नहीं है जिसका कोई छिपा अर्थ हो।

क्या है पूरा मामला?

मामला 2014 का है। जिसमें केजरीवाल के खिलाफ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत कथित रूप से आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने के आरोप में एफआईआर दर्ज की गई थी।

कथित तौर पर केजरीवाल ने कहा था,

“जो कांग्रेस को वोट देगा, मेरा मानना है, देश के साथ गद्दारी होगी। जो भाजपा को वोट देगा उसे खुदा भी माफ नहीं करेगा, देश के साथ गद्दारी होगी।"

निचली अदालत ने छह सितंबर 2014 को उनके खिलाफ अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत संज्ञान लेते हुए समन जारी किया था। इसके बाद, केजरीवाल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट इस मामले में विभिन्न राहतों की मांग करने के लिए चले गए। हालांकि, उन्हें अपनी शिकायतों के निवारण के लिए निचली अदालत में वापस भेज दिया गया था।

नतीजतन, उन्होंने एसीजेएम (विशेष न्यायाधीश एमपी / एमएलए), सुल्तानपुर की अदालत के समक्ष एक निर्वहन आवेदन दायर किया, जिससे अगस्त 2022 में उनका आवेदन खारिज कर दिया गया।

सत्र न्यायाधीश के समक्ष एसीजेएम के आदेश को चुनौती देने वाली एक पुनरीक्षण याचिका भी अक्टूबर 2022 में खारिज कर दी गई। नतीजतन, उन्होंने धारा 482 के तहत याचिका के साथ हाईकोर्ट का रूख किया था।

दिए गए तर्क

कोर्ट के समक्ष केजरीवाल ने तर्क दिया कि अपने कथित भाषण में उन्होंने धर्म आदि के आधार पर वोट के लिए कोई अपील नहीं की थी और उन्होंने विभिन्न वर्गों के लोगों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा नहीं दिया था। इसलिए उन्हें अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत अपराध के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

आगे कहा कि उनका बयान केवल उनकी व्यक्तिगत राय पर आधारित था और इस तरह, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 यानी बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत संरक्षित है।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सरकारी वकील आलोक सरन ने तर्क दिया कि केजरीवाल 'भगवान' शब्द का इस्तेमाल कर सकते थे, लेकिन उन्होंने जानबूझकर उन मतदाताओं के लिए 'खुदा' शब्द का इस्तेमाल किया, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था।

यह आगे प्रस्तुत किया गया कि जांच के दौरान, जांच अधिकारी द्वारा पर्याप्त सामग्री एकत्र की गई है। इसलिए, उनका इरादा उन मतदाताओं के लिए 'खुदा' शब्द का उपयोग करने का था, जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था और साथ ही कांग्रेस के मतदाताओं को 'देश के गद्दार' के रूप में क्यों ब्रांडेड किया गया।

कोर्ट की टिप्पणियां

शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 19 के दायरे के तहत बोलने की स्वतंत्रता की सीमा इस बात पर निर्भर करेगी कि क्या इस तरह के भाषण से विचारों का प्रचार होगा या इसका कोई सामाजिक मूल्य होगा। हालांकि, न्यायालय ने कहा कि यह समझने में असमर्थ है कि कैसे केजरीवाल के भाषण से विचारों का प्रचार होगा या उसका कोई सामाजिक मूल्य होगा।

"जहां तक आवेदक के वकील का कहना है कि आवेदक का भाषण उसकी व्यक्तिगत राय पर आधारित है, इसलिए, अधिनियम, 1951 की धारा 125 के तहत कोई अपराध गठित नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसमें मनःस्थिति का अभाव है, इसलिए वह ट्रायल कोर्ट के सामने अपनी राय स्पष्ट करनी होगी कि उनके ज्ञान का स्रोत क्या है कि अगर कोई 'खुदा' को मानने वाला भारतीय जनता पार्टी को वोट देता है, तो उसे 'खुदा' माफ नहीं करेगा और क्या ये उन मतदाताओं पर लागू नहीं होगा, जिन्होंने कांग्रेस को वोट दिया है।"

न्यायालय ने यह भी कहा कि चूंकि उस आशय के विश्वसनीय साक्ष्य को जांच के दौरान एकत्र किया गया है और आरोप पत्र दायर किया गया है, इसलिए आरोप की सत्यता की जांच या ट्रायल इस न्यायालय द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्ति का उपयोग करके नहीं किया जा सकता है।

इसके अलावा, इस बात पर जोर देते हुए कि किसी व्यक्ति के लिए, जो एक राज्य का मुख्यमंत्री है, किसी भी वाक्य या शब्द का उच्चारण करना सभ्य नहीं है, जिसका कोई छिपा अर्थ है।

कोर्ट ने भाषण पर विचार करते हुए इस प्रकार टिप्पणी की,

"उनके भाषण की सामग्री के अनुसार, कांग्रेस के मतदाताओं को 'देश का गद्दार' कहा गया, जबकि भारतीय जनता पार्टी के मतदाताओं को 'खुदा' माफ नहीं करेगा, कहा गया है। यह सच है कि खुदा और भगवान एक ही हैं, लेकिन एक हिंदू नेता द्वारा 'खुदा' शब्द का उपयोग केवल उन मतदाताओं के लिए किया जाता है, जिन्होंने अपना वोट भारतीय जनता पार्टी को दिया।

इसके अलावा, अधिनियम, 1951 की धारा 125 का अवलोकन करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा दिया जाता है, तो उसे अधिनियम, 1951 के तहत अपराध माना जाएगा और धारा 125 के तहत दंडनीय होगा।

उक्त प्रावधान के आलोक में उनके भाषण को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने इस प्रकार कहा,

"आवेदक द्वारा दिया गया बयान इतना सादा और सरल नहीं है क्योंकि मतदाताओं के एक समूह के लिए वह 'देश का गदर' शब्द का उच्चारण कर रहा है और मतदाताओं के दूसरे समूह के लिए वह कह रहा है कि 'खुदा माफ नहीं करेगा'। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि वह खुदा के नाम पर बाद के मतदाताओं को पूरी तरह से यह जानते हुए भी धमका रहे हैं कि अगर वह 'खुदा' शब्द का प्रयोग करते हैं, तो विभिन्न धर्मों के मतदाताओं के कुछ समूह गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।"

नतीजतन, सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों को बहुत संयम से और सावधानी से लागू किया जाना चाहिए (हरियाणा राज्य बनाम भजन लाल, 1992 पूरक (1) एससीसी 335 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए), अदालत ने एसीजेएम अदालत के फैसले के साथ-साथ पुनरीक्षण अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और उसकी याचिका को खारिज कर दिया।

आवेदक के वकील: एडवोकेट महमूद आलम, अंजनी कुमार मिश्रा, मनमोहन सिंह, नदीम मुर्तजा, शीरन मोहिउद्दीन अलवी

विरोधी पक्ष के वकील: जी.ए.

केस टाइटल - अरविंद केजरीवाल बनाम यूपी राज्य और अन्य [Application U/S 482 No.42 of 2023]

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:





Tags:    

Similar News