जिला जज के रूप में नियुक्ति के लिए अधिवक्ता को आवेदन की तिथि पर सात साल तक 'लगातार प्रैक्टिस' जरूरी: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 233 (2) के अनुसार न्यायिक अधिकारी/जिला जज के रूप में नियुक्ति पाने के लिए एक अधिवक्ता को (बिना किसी रुकावट के) कम से कम 7 वर्षों तक निरंतर अभ्यास में रहना होगा...।
उल्लेखनीय है कि संविधान का अनुच्छेद 233 जिला जजों की नियुक्ति से संबंधित है और इसके उपखंड (2) में कहा गया है कि एक व्यक्ति, जो पहले से संघ या राज्य की सेवा में नहीं है, और यदि वह कम से कम सात साल से एक एडवोकेट या प्लीडर के रूप में अभ्यासरत है और नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट ने नियुक्ति के लिए उसकी सिफारिश की है, केवल वही नियुक्ति के लिए पात्र होगा।
जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ ने दीपक अग्रवाल बनाम केशव कौशिक और अन्य, (2013) 5 एससीसी 277 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि अनुच्छेद 233 ( 2) के अनुसार जिला जज के रूप में नियुक्ति पाने के लिए आवेदन की तिथि पर उम्मीदवार को 7 वर्षों तक निरंतर (बिना किसी रुकावट के) अधिवक्ता के रूप में अभ्यास करना चाहिए।
मामला
न्यायालय बिंदु नामक महिला की ओर से दायर याचिका पर विचार कर रहा था, जिसने न्यायिक अधिकारी/जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्त पाने के लिए राज्य उच्च न्यायिक सेवा में आवेदन किया गया था।
हालांकि, प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद, उसे प्रशासनिक पक्ष के आधार पर हाईकोर्ट ने अंतिम परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उसके पास परीक्षा/फॉर्म भरने की तिथि से वकील के रूप में निरंतर अभ्यास का 7 साल का अनुभव नहीं था।
इसलिए उसने अदालत से प्रार्थना की कि उसे अंतिम परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए।
अवलोकन
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को अगस्त 2017 में ट्रेडमार्क और जीआई परीक्षक के रूप में चुना गया, जिसके बाद एडवोकेट्स एक्ट, 1961 के तहत वह एडवोकेट नहीं रह गई थी। अगस्त 2017 में उसने अपना लाइसेंस सरेंडर कर दिया।
इसके बाद वर्ष 2019 में, उन्हें सीबीआई में लोक अभियोजक के रूप में चुना गया, जहां वह अभी भी काम कर रही हैं। कोर्ट ने कहा कि हालांकि वह वर्तमान में लोक अभियोजक हैं, मगर लोक अभियोजक के रूप में वह सात साल की निरंतर सेवा में नहीं रही हैं, जिससे कि वह अंतिम परीक्षा में बैठने के योग्य हो जातीं।
कोर्ट ने कहा,
"तथ्यात्मक आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता इस कैलेंडर वर्ष में न्यायिक अधिकारी/ जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की मांग नहीं कर सकती क्योंकि याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 233, 234 और 236 के प्रावधानों के अनुसार निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करती है। इस्तेमाल किया गया शब्द "रही है" [अनुच्छेद 233 (2) के तहत इस्तेमाल किया गया] का अर्थ सात साल है और यह प्रजेंट परफेक्ट कांटिनुअस टेंस में होना चाहिए और सात साल की अवधि किसी भी रूप में नहीं होनी चाहिए।"
उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जब याचिकाकर्ता ट्रेडमार्क और जीआई परीक्षक [2017 से 2019 के बीच ] के रूप में कार्यरत थी तो यह उसकी कानूनी प्रैक्टिस में एक विराम था और इस विराम को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इन तथ्यों को देखते हुए यह याचिका खारिज कर दी गई।
केस शीर्षक - बिन्दु बनाम इलाहाबाद हाईकोर्ट, आरजी और अन्य के माध्यम से
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (एबी) 137