प्राइवेट डिटेक्टिव की गतिविधियां अनियंत्रित और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन: दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

Update: 2022-01-10 12:42 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट में प्राइवेट डिटेक्टिव और उनकी एजेंसियों की गतिविधियों के नियमन की मांग करते हुए एक जनहित याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि प्राइवेट डिटेक्टिव, जांचकर्ताओं और उनकी एजेंसियों का काम किसी भी मौजूदा वैधानिक ढांचे के दायरे से बाहर रहता है।

चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की खंडपीठ के समक्ष सोमवार को यह मामला सूचीबद्ध किया गया।

एडवोकेट प्रीति सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया कि 2007 का प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसीज (रेगुलेशन) बिल पिछले 13 साल से संसद में लंबित है और बाद में यह खत्म हो गया। इसे देखते हुए प्राइवेट डिटेक्टिव और उनकी एजेंसियों की गतिविधियों का कोई कानूनी शासन नहीं है। कानून की ऐसी अनुपस्थिति के कारण कई पीड़ितों के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है; निजता का उल्लंघन हो रहा है और लोगों को धोखा दिया जा रहा है। इसके अलावा, प्राइवेट डिटेक्टिव को उत्तरदायी बनाने के लिए कोई वैधानिक कानून लागू नहीं किया जा सकता।

आगे यह तर्क दिया गया कि जवाबदेही के बिना किया गया एक प्राइवेट डिटेक्टिव का काम भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत नागरिक के मौलिक अधिकारों के लिए खतरा बन जाता है।

याचिकाकर्ता ने अपने पति के साथ तनावपूर्ण संबंध होने के कारण घरेलू हिंसा का शिकार होने का दावा किया है। उसके पति ने कथित तौर पर याचिकाकर्ता का पीछा करने और गुंडों को उसका पीछा करने के लिए एक प्राइवेट डिटेक्टिव नियुक्त किया। कहा गया कि मामला प्राइवेट डिटेक्टिव की अनियमित गतिविधियां उसकी निजता का उल्लंघन कर रही हैं और उसे सार्वजनिक रूप से बदनाम कर रही हैं।

याचिका में इस व्यवसाय को अपनी संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग से विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की गई। यह 2007 के विधेयक में उल्लिखित कार्यों को पूरा करने के लिए एक राज्य बोर्ड के गठन की भी मांग करता है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने इसी तरह के एक मामले में पिछले साल संहिताबद्ध अधिनियम के अस्तित्व में आने तक प्राइवेट डिटेक्टिव के काम को विनियमित करने के लिए दिशा-निर्देश मांगने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा।

मामले की सुनवाई 21 फरवरी, 2022 को होनी है।

केस शीर्षक: राधा बिष्ट बनाम भारत संघ और अन्य।

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