''आरोपी ने तीन साल की बच्ची के दिमाग और शरीर पर विनाश की अमिट छाप छोड़ी है'': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा बरकरार रखी

Update: 2022-05-15 12:15 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (इंदौर बेंच) ने हाल ही में तीन साल की बच्ची से बलात्कार करने के आरोप में एक व्यक्ति को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि आरोपी ने पीड़िता के दिमाग और शरीर पर तबाही/विनाश की अमिट छाप छोड़ी है।

जस्टिस सत्येंद्र कुमार सिंह और जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने कहा कि पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों के अधिकारों और हालात को देखते हुए, अपीलकर्ता को दी गई उम्रकैद की सजा किसी भी तरह से गंभीर या अत्यधिक नहीं है।

संक्षेप में तथ्य

आरोपी पप्पू को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(एफ) के तहत दंडनीय अपराध के लिए दोषी ठहराया था और उसे उम्रकैद व 25,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। जुर्माना अदा न करने पर एक साल के अतिरिक्त कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है।

उसने अपनी सजा को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने के अलावा, अभियुक्त ने प्रस्तुत किया कि वह पिछले लगभग 10 वर्षों से जेल में है और उसके खिलाफ उपलब्ध साक्ष्य की उपरोक्त गुणवत्ता को देखते हुए, उसकी सजा को घटाकर 10 वर्ष (पहले से ही जेल में बिताई गई अवधि) किया जा सकता है जो कि आईपीसी की धारा 376(2)(एफ) के तहत न्यूनतम सजा है।

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार पीड़िता की मां ने पीड़िता को अपीलकर्ता (जिसके साथ उसके सौहार्दपूर्ण संबंध थे) के बगल में सुला दिया था, जो जमीन पर सो रहा था। जब वह आधे घंटे के बाद उसे लेने के लिए वापस आई, तो उसने पाया कि अपीलकर्ता अपना चेहरा चद्दर से ढककर लेटा हुआ था,लेकिन जब उसने अपनी बेटी को गोद में लिया, तो उसके हाथों पर खून लगा क्योंकि उसकी बेटी के गुप्तांगों से बहुत खून बह रहा था।

अपीलकर्ता के परिवार ने पीड़िता की मां से कहा कि वह इस घटना के बारे में किसी को कुछ न बताए, हालांकि, लगभग 4-5 दिनों के बाद, पीड़िता की मां ने इस घटना के बारे में अपनी भाभी को बता दिया,जिसके बाद उसके भाई और पति को भी इसकी जानकारी हो गई और एफआईआर दर्ज करवाई गई।

न्यायालय की टिप्पणियां

अदालत ने कहा कि पीड़िता की जांच करने वाले डॉक्टर ने अपनी राय दी है कि पीड़िता का आंतरिक दर्द पेनिट्रेशन का संकेत दे रहा था। कोर्ट ने पाया कि इस सबूत का समर्थन पीड़िता की मां की गवाही से भी होता है।

डॉक्टर की गवाही से संतुष्ट होकर कोर्ट ने कहा कि उनके पास पीड़िता की मां के बयान और सीधे थाने जाने के उसके असमंजस पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है।

ऐसी परिस्थितियों में, अदालत ने कहा, हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई हिचक नहीं है कि पीड़िता का बलात्कार वर्तमान अपीलकर्ता द्वारा किया गया था, जो घटना के समय केवल तीन वर्ष की थी।

हाईकोर्ट ने कहा,

''...इस न्यायालय ने पाया कि वर्तमान मामले में पीड़िता घटना के समय केवल 3 वर्ष की आयु की एक लड़की थी, जिसका अपीलकर्ता ने बलात्कार किया है। जबकि पीड़िता की मां ने अपनी बेटी को उसके पास सुलाते समय पूरा विश्वास दिखाया था क्योंकि उसका मानना था कि उसकी बेटी 22 वर्षीय अपीलकर्ता की कस्टडी में पूरी तरह सुरक्षित रहेगी। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि अपीलकर्ता न केवल उसका विश्वास तोड़ देगा, बल्कि पीड़िता के मन और शरीर पर भी विनाश की एक अमिट छाप छोड़ देगा। ऐसी परिस्थितियों में पीड़िता और उसके परिवार के सदस्यों के अधिकारों और हालात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, हम पाते हैं कि अपीलकर्ता को दी गई उम्रकैद की सजा किसी भी तरह से गंभीर या अत्यधिक नहीं है।''

इस प्रकार, वर्तमान अपील को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

केस टाइटल - पप्पू बनाम मध्य प्रदेश का राज्य,आपराधिक अपील नंबर- 1132/2012

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