उद्देश्य साबित नहीं होना आरोपी को अपराध से जोड़ने वाली 'परिस्थितियों की कड़ी को नहीं तोड़ता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दहेज हत्या के मामले में दोषसिद्धि बरकरार रखी

Update: 2022-03-14 15:04 GMT

Punjab & Haryana High court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि भले ही परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मामलों में 'उद्देश्य' का महत्व है, हालांकि, इसे साबित करने में विफलता अभियोजन के मामले के लिए घातक नहीं हो सकती, यदि आरोपी को कथित अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला स्थापित हो जाती है।

जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस अशोक कुमार वर्मा की पीठ ने कहा,

''किसी अपराध के मकसद का पता लगाने में विफलता उसके गैर-अस्तित्व का संकेत नहीं देती। उद्देश्य साबित करने में विफलता कानून के मामले में घातक नहीं है। सजा के लिए मकसद कभी भी अनिवार्य नहीं है। उद्देश्य साबित नहीं होना,अभियुक्त को अपराध से जोड़ने वाली परिस्थितियों की श्रृंखला की कड़ी को नहीं तोड़ता है, न ही यह अभियोजन के मामले के प्रतिकूल है।''

न्यायालय ने यह टिप्पणी एक पति की तरफ से दायर अपील पर सुनवाई के दौरान की है,जिसे दहेज की मांग के सिलसिले में अपनी पत्नी की हत्या करने के लिए दोषी ठहराया गया था।

शिकायतकर्ता की बेटी की शादी अपीलकर्ता से हुई थी। आरोप लगाया गया कि शादी के कुछ समय बाद ही अपीलकर्ता दहेज की मांग करने लगा था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि वह मृतका पर अधिक दहेज लाने का दबाव बनाता था अन्यथा उसे मारने की धमकी देता था।

आगे यह भी कहा गया कि एक दिन, शिकायतकर्ता को अपीलकर्ता का फोन आया और उसे सूचित किया कि उसकी बेटी प्रीति की मौत हो गई है और उसका शव सरकारी अस्पताल में पड़ा हुआ है। यह सूचना मिलने के बाद शिकायतकर्ता अपने पति के साथ सरकारी अस्पताल पहुंची तो उन्होंने देखा कि मृतका के पूरे शरीर पर चोट के निशान बने हुए थे। जब उन्होंने पूछताछ की तो पता चला कि अपीलकर्ता/आरोपी ने दहेज के लालच में उनकी बेटी को पीट-पीट कर और जहर देकर मार डाला।

इसके बाद आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 498-ए के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच के बाद आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया और अपीलकर्ता-अभियुक्त को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास और 25000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई।

इसी आदेश के खिलाफ यह अपील आरोपी/अपीलकर्ता द्वारा दायर की गई थी।

अपीलकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि अभियोजन का मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है, मामले का कोई चश्मदीद गवाह नहीं है और अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में महत्वपूर्ण विरोधाभास और विसंगतियां थीं। वकील ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट अपीलकर्ता द्वारा हत्या करने के पीछे के मकसद को स्थापित करने में विफल रहा है। इसलिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए या 302 के तहत अपराध नहीं बनता है।

इसके विपरीत, प्रतिवादी-राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर ठोस सबूत हैं कि अपीलकर्ता अपराध में शामिल था।

निष्कर्ष

वर्तमान मामले के तथ्यात्मक मैट्रिक्स और घटित परिस्थितियों को देखते हुए, पीठ ने अपीलकर्ता के तर्क को नकार दिया। यह नोट किया गया कि केवल इसलिए कि वर्तमान मामले में कोई चश्मदीद गवाह नहीं है, इस निष्कर्ष पर आने के लिए पर्याप्त नहीं है कि अपीलकर्ता अपराध का दोषी नहीं है। कोर्ट ने माना कि गवाहों की गवाही के माध्यम से अभियोजन का मामला उचित संदेह से परे स्थापित हुआ है।

''यह अच्छी तरह से साबित हो गया है कि अपीलकर्ता/अभियुक्त ने दहेज के लालच में मृतका को मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया और अंततः जहर देकर उसकी हत्या कर दी गई, जिसकी पुष्टि चिकित्सा साक्ष्य से होती है। अपीलकर्ता पीडब्ल्यू-4 और पीडब्ल्यू-8 के बयानों को गलत साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा है... अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने के लिए ठोस सबूत पेश किए हैं। वास्तव में, अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए विभिन्न गवाहों की गवाही से लिंक साक्ष्य की पूरी श्रृंखला स्थापित होती है।''

कोर्ट ने आगे कहा कि भले ही कोई चश्मदीद गवाह नहीं है, लेकिन तथ्य यह है कि हत्या अपीलकर्ता के घर में हुई है।

''सवाल यह है कि हत्या का लेखक कौन है? अपीलकर्ता के वकील का तर्क है कि अपीलकर्ता का इस हत्या को करने के पीछे कोई मकसद नहीं था और निचली अदालत के सामने पेश किए गए सबूत मकसद को स्थापित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। जैसा कि ऊपर देखा गया है, यह अच्छी तरह से स्थापित हो गया है कि अपीलकर्ता द्वारा मृतका की हत्या करने के पीछे दहेज की मांग का मकसद था। भले ही यह मान लिया जाए कि हत्या का कोई मकसद स्थापित नहीं हुआ है, लेकिन तथ्य यह है कि मामला परिस्थिति सबूत पर आधारित है (जो अदालत के अनुसार स्थापित हुए हैं)।''

कोर्ट ने यह भी माना कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य किसी भी तरह से प्रत्यक्ष साक्ष्य से कमतर नहीं है और परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी दोषसिद्धि का एकमात्र आधार हो सकते हैं।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान के संबंध में, जिसमें कहा गया है कि जब कोई तथ्य विशेष रूप से किसी व्यक्ति की जानकारी में होता है, तो उस तथ्य को साबित करने का भार उस व्यक्ति पर होता है, कोर्ट ने कहा,

''अपीलकर्ता/अभियुक्त का यह अनिवार्य कर्तव्य है कि वह यह बताए कि उसकी पत्नी प्रीति की मृत्यु कैसे हुई, क्योंकि वह उसके साथ अपने ससुराल में रह रही थी... अपीलकर्ता/आरोपी द्वारा इस संबंध में कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि किन परिस्थितियों में ,उसकी पत्नी प्रीति ने जहर खा लिया था या मामले के अजीबोगरीब तथ्यों में उसकी हत्या के लिए उसे जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए?''

इसलिए अदालत ने माना कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि व सजा के आदेश में कोई अवैधता नहीं है और अपील को खारिज कर दिया गया।

केस का शीर्षक-विनीत बनाम हरियाणा राज्य

साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (पीएच) 37

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