निष्पादन से पहले राज्य सरकार का पूर्व अनुमोदन नहीं होने से बिक्री विलेख अमान्य और निष्प्रभावी ‌हो जाता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2021-12-30 11:57 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि बिक्री विलेख के निष्पादन से पहले कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड (केएचबी) द्वारा राज्य सरकार से पिछला/ पूर्व अनुमोदन प्राप्त नहीं करने से उक्त दस्तावेज अमान्य और निष्प्रभावी हो जाता है।

जस्टिस एसआर कृष्ण कुमार की एकल पीठ ने याचिकाकर्ता कडाइस‌िद्देश्वरा पुत्र गुरुनाथ बायकोडी द्वारा बोर्ड के साथ 23 अगस्त 2006 को निष्पादित को बिक्री विलेख को खारिज कर दिया।

मामला

याचिकाकर्ता के पिता ने दावा किया था कि केएचबी द्वारा रियल एस्टेट ब्रोकर्स के साथ मिलीभगत कर धोखाधड़ी और गलत बयानी के कारण, केएचबी ने याचिकाकर्ता के पिता से 23.08.2006 को एक बिक्री विलेख प्राप्त किया था, जिसमें उसका झूठा प्रतिनिधित्व किया गया था कि विषयगत भूमि केएचबी द्वारा अधिग्रहण की योजना में शामिल की गई थी और केएचबी ने राज्य सरकार से पूर्व अनुमति प्राप्त की थी।

हालांकि, याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में उक्त बिक्री विलेख की वैधता और शुद्धता की जांच हाईकोर्ट द्वारा नहीं की जा सकती है। आदेश के खिलाफ दायर अपील भी खारिज हो गई। हालांकि, इस न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पिता के पक्ष में स्वतंत्रता सुरक्षित रखी कि वे या तो सक्षम सिविल कोर्ट के समक्ष बिक्री विलेख को चुनौती दें या वे अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करें और उन सभी राहतों की मांग करें जिनके वह हकदार हैं और याचिका और अपील को खारिज करने से याचिकाकर्ता को लाभ नहीं मिलेगा, यदि कानून में उपलब्ध है।

उक्त आदेश से व्यथित याचिकाकर्ता के पिता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे वर्ष 2014 में खारिज कर दिया गया। याचिकाकर्ता के पिता ने उसके और केएचबी के बीच दर्ज बिक्री विलेख को रद्द करने के लिए दीवानी अदालत के समक्ष एक मुकदमा दायर किया। इसे 2015 में खारिज कर दिया गया था और अस्वीकृति आदेश के खिलाफ अपील हाईकोर्ट के समक्ष लंबित है। वर्तमान याचिका में बिक्री विलेख को रद्द करने की मांग की गई थी। याचिका लंबित रहने तक पिता की मृत्यु हो गई और कानूनी उत्तराधिकारी (याचिकाकर्ता) को याचिकाकर्ता के रूप में जोड़ा गया।

इस बीच बेटे (याचिकाकर्ता) ने पिता के खिलाफ उक्त संपत्ति के बंटवारे के लिए वाद दायर किया था। इसे खारिज कर दिया गया और पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण समझौते के बाद एक पुनरीक्षण प्रथम अपील भी खारिज कर दी गई। वर्तमान याचिका में केएचबी के साथ याचिका के मृत पिता द्वारा दर्ज बिक्री विलेख को रद्द करने की मांग की गई थी।

याचिकाकर्ताओं की प्रस्तुतियां

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुदास कन्नूर ने तर्क दिया कि चूंकि राज्य सरकार से पूर्व अनुमोदन प्राप्त करना केएचबी अधिनियम की धारा 33 (1) के तहत एक अनिवार्य पूर्व शर्त/मिसाल/ वैधानिक आवश्यकता है, याचिकाकर्ता के पिता से 23.08.2006 को बिक्री विलेख प्राप्त करने से पहले केएचबी द्वारा ऐसे किसी भी पूर्व अनुमोदन के अभाव में उक्त बिक्री विलेख अवैध और अमान्य है और परिणामस्वरूप, आक्षेपित बिक्री विलेख भी रद्द किए जाने योग्य है।"

केएचबी ने याचिका का विरोध किया

केएचबी की ओर से कहा गया, "बिक्री विलेख से पहले भी, याचिकाकर्ता के पिता ने केएचबी के पक्ष में विषय भूमि बेचने के लिए अपनी सहमति दी थी और उसके अनुसरण में, याचिकाकर्ता के पिता ने केएचबी के पक्ष में एक उचित और वैध बिक्री विलेख निष्पादित किया था।"

इसके अलावा यह तर्क दिया गया कि "मुकदमे के पहले दौर को देखते हुए, जो याचिकाकर्ता के खिलाफ और केएचबी के पक्ष में समाप्त हुआ, वर्तमान याचिका को न्यायिकता और रोक के सिद्धांतों से प्रभावित किया गया है।"

न्यायालय के निष्कर्ष

अदालत ने कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड अधिनियम 1962 की धारा 33 का विश्लेषण किया और कहा, "उपरोक्त प्रावधान को सामन्य ढंग से पढ़ने से स्पष्ट रूप से संकेत मिलेगा कि किसी व्यक्ति द्वारा केएचबी के पक्ष में किसी भी संपत्ति के संबंध में, जिसका 10 लाख रुपये से अधिक का मूल्य हो, किसी भी बिक्री विलेख को निष्पादित करने से पहले, राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है। 23.08.2006 के उक्त विलेख का अवलोकन यह संकेत करता है कि उक्त बिक्री विलेख में वर्णित बिक्री प्रतिफल का कुल मूल्य 2,07,64,000, है। यह स्पष्ट है कि बिक्री विलेख निष्पादित होने से पहले, केएचबी अधिनियम की धारा 33(1) के संदर्भ में राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति आवश्यक थी।"

अदालत ने याचिकाकर्ता की इस दलील पर भी विचार किया कि वह केवल धारा 33(1) के उल्लंघन के आधार पर बिक्री विलेख को चुनौती देने और धोखाधड़ी और गलत बयानी के आधार पर बिक्री विलेख को रद्द करने के याचिकाकर्ता के दावे को वापस लेने/छोड़ने के उपाय का लाभ उठाएगा। अदालत ने कहा कि, "मेरा सुविचारित मत है कि वर्तमान याचिका को न्यायिक निर्णय द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया गया है।"

जिसके बाद अदालत ने कहा कि, "याचिकाकर्ता के पिता द्वारा प्रतिवादी के पक्ष में 23.08.2006 को निष्पादित बिक्री विलेख को शून्य घोषित किया जाता है और इसे रद्द करने का निर्देश दिया जाता है..."

केस शीर्षक: कडाइस‌िद्देश्वरा पुत्र गुरुनाथ बायकोडी बनाम प्रधान सचिव

Case No: Writ Petition No.101046 of 2021

आदेश की तिथि: 8 अक्टूबर 2021

उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुदास कन्नूर साथ में एडवोकेट सीएस पाटील; आर1 के लिए एडवोकेट वीएस कलासुरमथ; एडवोकेट बसवराज सबरद, एडवोकेट एचएमपीटिल एडवोकेट एचआरगुंडप्पा, आर2 से आर4  के लिए

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