भगोड़ा आरोपी अग्रिम जमानत का हकदार नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने POCSO के आरोपी को राहत देने से इनकार किया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की और उसकी मां के साथ कथित रूप से बलात्कार करने वाले एक आरोपी (पॉक्सो) को अग्रिम जमानत से इनकार करते हुए कहा कि यदि किसी आरोपी को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत भगोड़ा/ उद्घोषित अपराधी घोषित कर दिया गया है तो वह अग्रिम जमानत की राहत पाने का हकदार नहीं है।
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की खंडपीठ ने प्रेम शंकर प्रसाद बनाम बिहार राज्य एलएल 2021 एससी 579 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए यह टिप्पणी की है। इस मामले में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा था कि,
''मध्य प्रदेश राज्य बनाम प्रदीप शर्मा (सुप्रा) के मामले में इस अदालत द्वारा यह देखा और माना गया है कि यदि किसी को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत भगोड़ा/उद्घोषित अपराधी घोषित किया जाता है तो वह अग्रिम जमानत की राहत पाने का हकदार नहीं है।''
जमानत की मांग करने वाले आरोपी के खिलाफ केस
आवेदक-योगेंद्र कुमार मिश्रा को अतिरिक्त जिला एंव सत्र न्यायाधीश / विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो एक्ट), इलाहाबाद ने अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया था,जिसके बाद उसने अग्रिम जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 376, 506, 328, पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 और आई.टी एक्ट की धारा 67 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उस पर एक नाबालिग लड़की और उसकी मां/शिकायतकर्ता के साथ कथित रूप से बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है। आरोपी के मामले के अनुसार, उसके और शिकायतकर्ता/मां के बीच सहमति से संबंध थे, जबकि आरोपी एक विवाहित व्यक्ति है और शिकायतकर्ता अपने पति से अलग रह रही है।
आरोपी ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि शिकायतकर्ता उस स्कूल में शिक्षक है जहां आवेदक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के रूप में कार्यरत है और जब शिकायतकर्ता ने उससे शादी करने के लिए कहा, तो उसने मना कर दिया क्योंकि वह एक विवाहित व्यक्ति है। इसलिए, उसने झूठे आरोप लगाते हुए उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवा दी है।
दूसरी ओर राज्य ने, आवेदक को अग्रिम जमानत देने का विरोध करते हुए तर्क दिया कि शिकायतकर्ता व उसकी नाबालिग बेटी ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयानों में आवेदक के खिलाफ स्पष्ट बयान दिया है और बताया है कि उनके साथ कई बार रेप किया गया है।
अंत में यह भी तर्क दिया गया कि चूंकि आवेदक जांच प्रक्रिया में सहयोग नहीं कर रहा था, इसलिए उसके खिलाफ न केवल गैर जमानती वारंट जारी किया गया, बल्कि अब सीआरपीसी की धारा 82 और 83 के तहत कार्यवाही की जा रही है। इसलिए अग्रिम जमानत देने का कोई मामला नहीं बनता है।
न्यायालय की टिप्पणियां
प्रारंभ में, न्यायालय ने प्रेम शंकर प्रसाद मामले (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य बनाम प्रदीप शर्मा मामले (सुप्रा) में पारित निर्णय पर भरोसा करते हुए यह दोहराया था कि यदि किसी को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत भगोड़ा/उद्घोषित अपराधी घोषित कर दिया जाता है, तो वह अग्रिम जमानत की राहत पाने का हकदार नहीं है।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, आरोपी-आवेदक ने पहले पीड़ितों के विश्वास को प्रेरित किया और जब वह उस पर पूरा भरोसा करने लग गई, तो उसने न केवल शिकायतकर्ता के विश्वास का उल्लंघन किया बल्कि उसकी नाबालिग बेटी के भरोसे को भी तोड़ दिया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए बयानों में भी यह आरोप लगाया गया है कि आवेदक ने न केवल शिकायतकर्ता के साथ बलात्कार किया है, बल्कि उसकी नाबालिग बेटी के साथ भी बलात्कार किया है। यह भी आरोप लगाया गया है कि आवेदक के पास कुछ अवांछित वीडियो क्लिप भी हैं और उसने उनको वायरल करने की धमकी दी थी और नाबालिग पीड़िता व उसकी मां को ब्लैकमेल किया था।
अदालत ने माना कि आवेदक इस आधार पर अग्रिम जमानत पाने का हकदार नहीं है कि आवेदक को सीआरपीसी की धारा 82 के तहत न केवल उद्घोषित अपराधी घोषित किया गया है,बल्कि सीआरपीसी की धारा 83 के तहत उसकी संपत्ति की कुर्की की घोषणा भी जारी की गई है।
कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि,''अगर मामले को इसकी मैरिट के आधार पर भी देखा जाए तो यह पाया गया है कि शिकायतकर्ता के साथ-साथ उसकी नाबालिग बेटी ने भी सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराए गए विशिष्ट बयानों में आवेदक के खिलाफ बहुत गंभीर आरोप लगाए हैं। इसलिए, मैरिट के आधार पर भी अग्रिम जमानत के लिए कोई मामला नहीं बनता है।''
केस का शीर्षक -योगेंद्र कुमार मिश्रा बनाम यू.पी. राज्य व अन्य
साइटेशन- 2022 लाइव कानून (ऑल) 162
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