34 साल बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छोटी बच्ची के प्राइवेट पार्ट को काटने के आरोपी की 3 साल की कैद की सज़ा बरकरार रखी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुक्रवार को उस व्यक्ति की दोषसिद्धि और 3 साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा, जिसने वर्ष 1988 में एक 4 साल की बच्ची के निजी अंग को क्षत-विक्षत कर दिया था और सत्र न्यायालय ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 324 और 354 के तहत दोषी ठहराया था।
जस्टिस कृष्ण पहल की पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि नाबालिग लड़की के निजी अंग को क्षत-विक्षत करने को सामान्य गुणों के व्यक्ति का कार्य नहीं कहा जा सकता है और आरोपी ने गंभीर यौन वासना और एक परपीड़क दृष्टिकोण से यह कार्य किया था।
अदालत ने आरोपी-अपीलकर्ता के जमानत बांड को रद्द कर दिया और उसे अपनी शेष सजा काटने के लिए तत्काल निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा कि,''यह चार साल की नाबालिग लड़की के खिलाफ किया गया सबसे गंभीर और क्रूर अपराध है।''
गौरतलब है कि कोर्ट ने इसे 'दुखद स्थिति' बताया कि क्योंकि राज्य ने दोषी की 'इतनी छोटी अवधि' की सजा के खिलाफ अपील दायर नहीं की थी। यह ध्यान दिया जा सकता है कि जहां आईपीसी की धारा 324 में अधिकतम 3 साल की कैद है, वहीं धारा 354 में अधिकतम 2 साल की कैद है।
संक्षेप में मामला
ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को वर्ष 1988 में 4 साल की बच्ची के निजी अंगों को ब्लेड से काटने और बलात्कार करने व पीड़िता की शील भंग करने का प्रयास करने का दोषी पाया था।
अक्टूबर 1992 में, उसे आईपीसी की धारा 324 के तहत दोषी ठहराया गया और तीन साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। उसे आईपीसी की धारा 354 के तहत भी दोषी ठहराया गया और दो साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। फैसले और आदेश को चुनौती देते हुए, आरोपी-अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।
कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों यानी पीडब्ल्यू-1 (शिकायतकर्ता), पीडब्ल्यू-2 (पीड़िता), पीडब्ल्यू-3 (डॉ सुषमा सिंह), पीडब्ल्य-5 (डॉ एच.एन.बहादुर), पीडब्ल्य-6 (डॉ. अशोक उपाध्याय) और पीडब्ल्यू-9 (पीड़ित की मां) के बयानों से यह उचित संदेह से परे साबित हुआ है कि अपीलकर्ता ने अपराध किया था।
अदालत ने यह भी नोट किया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान से तारीख, समय और अपराध के मकसद की पुष्टि की गई और पीडब्ल्यू-2 पीड़िता ने अपीलकर्ता की पहचान कठघरे में की थी।
इसके अलावा, अदालत ने यह भी पाया कि आरोपी के खिलाफ आरोप आईपीसी की धारा 376/511 के तहत तय किए गए थे,लेकिन आरोप केवल आईपीसी की धारा 354 के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में साबित हुए थे, इसलिए, अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 354 के तहत सही दोषी ठहराया गया था।
नतीजतन, मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों, गवाहों के बयान, प्रासंगिक कानूनों और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि अपीलकर्ता द्वारा नाबालिग लड़की के निजी अंग को काटकर किए गए अपराध को सामान्य व्यक्ति का कार्य नहीं कहा जा सकता है, अदालत ने उसकी सजा को बरकरार रखा है।
अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता किसी भी तरह की नरमी के लायक नहीं है क्योंकि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान और पेश किए गए चिकित्सा साक्ष्य से उक्त मामला किसी भी उचित संदेह से परे साबित होता है।
गौरतलब है कि अदालत ने इस तथ्य पर अपनी निराशा व्यक्त की है कि केवल आईपीसी की धारा 324 और 354 के तहत आरोपी को सजा देने के खिलाफ कोई अपील दायर नहीं की गई थी।
कोर्ट ने आरोपी द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए कहा कि,
''यह बहुत ही खेदजनक स्थिति है कि राज्य ने अपीलकर्ता को इतनी कम अवधि के लिए सजा देने में ट्रायल कोर्ट द्वारा बरती गई नरमी के खिलाफ कोई भी अपील दायर नहीं की। लोक अभियोजक की सुस्ती अत्यधिक निंदनीय है।''
केस टाइटल -इशरत बनाम राज्य,आपराधिक अपील संख्या -1935/1992
साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 396
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