बिहार सरकार द्वारा अनुचित आचरण के लिए 3 न्यायिक अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त किया गया

Update: 2020-12-24 10:20 GMT

बिहार राज्य सरकार ने सोमवार (21 दिसंबर) को एक अधिसूचना जारी कर निचली न्यायपालिका के तीन न्यायिक अधिकारियों को अत्यधिक आपत्तिजनक और अनुचित आचरण के लिए सेवा से बर्खास्त किया।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, तीनों को कथित तौर पर जनवरी, 2013 में नेपाल के एक होटल के अंदर महिलाओं के साथ कोम्प्रोमिसिंग पोजीशन में पकड़ा गया था।

नेपाली दैनिक ' उद्घोष' ने पिछले साल 29 जनवरी को एक रिपोर्ट में कहा था कि बिराटनगर के मेट्रो होटल में पुलिस के छापे में इन अधिकारियों को कई नेपाली महिलाओं के साथ ' आपतिजनक स्थिति ' में पाया गया था।

जिन 3 न्यायाधीशों को सेवा से बर्खास्त किया गया है, वे हैं:-

1.हरि निवास गुप्ता - फिर समस्तीपुर की एक फॅमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश

2.कोमल राम - अररिया में तत्कालीन मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और

3.जितेंद्र नाथ सिंह - अररिया में तदर्थ अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश

उल्लेखनीय है कि उनकी सेवा से बर्खास्तगी 12 फरवरी, 2014 से प्रभावी होगी और वे अपना वेतन, किसी भी प्रकार के भत्ते या पेंशन पाने के पात्र नहीं होंगे।

12 फरवरी, 2014 वह तारीख है जब राज्य सरकार ने बिना किसी अनुशासनात्मक जांच के पटना हाईकोर्ट की सिफारिश पर पहली बार उनके खिलाफ कार्रवाई की थी।

घटनाओं का कालक्रम

इस मामले को नेपाल स्थित एक अखबार ने 29 जनवरी, 2013 को उजागर किया था और इसमें उल्लेख किया गया था कि तीनों न्यायाधीशों को नेपाल पुलिस द्वारा महिलाओं के साथ कोम्प्रोमिसिंग पोजीशन में एक होटल के अंदर पकड़ा गया था, लेकिन बाद में किसी तरह रिहा कर दिया गया था ।

न्यूज पेपर की रिपोर्ट के आधार पर पटना हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और मामले की जांच पूर्णिया जिला एवं सत्र न्यायाधीश से कराई गई।

हाईकोर्ट में सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाली अखबार ने (अपनी रिपोर्ट के लिए माफी) प्रकाशित की, हालांकि, हाईकोर्ट ने आगे बढ़कर इस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय की सहायता मांगी ।

गृह मंत्रालय की जांच में यह निष्कर्ष निकला कि तीनों न्यायाधीश अपनी पोस्टिंग के स्थानों के बजाय फारबिसगंज में मौजूद थे, जो नेपाल सीमा के पास भारत की ओर से है ।

जांच में यह भी पाया गया कि फारबिसगंज में लोकेशन ट्रेस करने से पहले 26-27 जनवरी 2013 को उनके सेल फोन काफी देर तक स्विच ऑफ रहे।

यह भी प्रकाश में आया कि न्यायाधीश कोमल राम ने 26-27 जनवरी को पूर्णिया में ठहरने के लिए एक होटल का फर्जी बिल पेश किया था।

इसके बाद हाईकोर्ट ने इन्हें बर्खास्त करने के लिए सरकार से सिफारिश की और 12 फरवरी, 2014 को कार्रवाई की गई।

उनकी बर्खास्तगी के बाद उन्होंने पटना उच्च न्यायालय के समक्ष अपनी बर्खास्तगी को इस आधार पर चुनौती दी कि उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू नहीं की गई बल्कि उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

उनकी बर्खास्तगी को दरकिनार करते हुए पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि उच्च न्यायालय को भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के लिए द्वितीय परंतुक के उप खंड (बी) के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करना है, तो उचित चरण में कारणों को रिकॉर्ड करना और निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य होगा ।

इसके बाद पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने 5 न्यायाधीशों की समिति का गठन किया जिसने 03 अगस्त 2015 को अपनी रिपोर्ट सौंपी और इस रिपोर्ट के आलोक में 07 अगस्त 2015 को सेवा से उनके बर्खास्तगी की सिफारिश की।

इस दौरान न्यायिक अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दलील दी कि अनुशासनात्मक जांच कराए बिना उन्हें सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राज्य सरकार को सिफारिश पर कार्रवाई करने से रोकने के लिए उनके खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

हालांकि पिछले साल न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने उनकी याचिका खारिज करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।

इस फैसले ने राज्य सरकार को उच्च न्यायालय की सिफारिश पर निर्णय लेने की अनुमति दी और यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि राज्य सरकार द्वारा एक आदेश पारित होने के बाद 3 न्यायाधीश बर्खास्तगी के आदेशों को चुनौती दे सकते हैं।

अंत में गुरुवार (17 दिसंबर) को बिहार सरकार ने उन्हें सेवा से बर्खास्त करते हुए यह अधिसूचना जारी की।

['द टाइम्स ऑफ इंडिया' रिपोर्ट के इनपुट के साथ]

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