पक्षकार को बिना उपचार छोड़ा नहीं जा सकता : SC ने HC के बिना प्रावधान देखे दिए गए फैसले पर पुनर्विचार को बरकरार रखा [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-07-10 08:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कि किसी भी पक्षकार को उपचार के बिना नहीं छोड़ा जा सकता, कलकत्ता हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें वैधानिक प्रावधान पर ध्यान दिए बिना दिए गए अपने पहले के फैसले पर पुनर्विचार किया था।

क्या था यह मामला?

दरअसल आयकर अधिनियम 1961 की धारा 293 राजस्व/आयकर प्राधिकरण के खिलाफ किसी भी दीवानी न्यायालय में मुकदमा दायर करने पर पूरी तरह से रोक लगाती है। इस प्रावधान पर ध्यान दिए बिना एकल पीठ ने पक्षकारों (जिसमें आयकर अधिकारी शामिल हैं) को जिला अदालत में फिर से भेज दिया। वहीं उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उक्त संपत्ति के संबंध में एक नया दीवानी मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान की।

बाद में उच्च न्यायालय ने पुनर्विचार याचिका पर विचार किया और फाइल पर रिट याचिका बहाल कर दी। इस आदेश को सुनील वासुदेव बनाम सुंदर गुप्ता के मामले में शीर्ष अदालत के समक्ष चुनौती दी गई थी। अपील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा :

"यदि आरोपों के मद्दनेजर आयकर अधिनियम की धारा 293 के तहत सिविल मुकदमा मामला नहीं बनता है तो यह उत्तरदाताओं और आयकर विभाग को सरंक्षण देगा और 21 सितंबर, 1965 के आदेश के परिणाम के तहत, जिसमें से एक संदर्भ हमारे द्वारा बनाया गया है, किसी भी पक्षकार को बिना उपाय के छोड़ा नहीं जा सकता और अदालत के समक्ष पक्षकार ने जो भी शिकायत की है, उसकी कानून की योग्यता के आधार पर जांच की जानी चाहिए।"

पीठ ने कमलेश वर्मा बनाम मायावती के मामले में निहित सिद्धांतों का भी उल्लेख किया जिसमें यह आयोजित किया गया था:

जब पुनर्विचार याचिका बनाए रखने योग्य होगी:

(i) नए एवं महत्वपूर्ण मामले या सबूतों की खोज, जो उचित परिश्रम के अभ्यास के बाद, याचिकाकर्ता के ज्ञान के दायरे में नहीं था या उसके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था; (ii) गलती या रिकॉर्ड पर त्रुटि; (iii) कोई अन्य पर्याप्त कारण।


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