नियोक्ता देरी से अपना हिस्सा देता है या रिटर्न भरता है इस आधार पर ईएसआईसी किसी योग्य बीमित व्यक्ति को डब्ल्यूआईपी प्रमाणपत्र देने से मना नहीं कर सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-07-20 15:12 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने शिवानी बनाम ईएसआईसी मामले में कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) को निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता की बेटी आशी को "बीमित व्यक्ति की बेटी" का प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश दिया है ताकि वह ऐसे संस्थान में अकादमिक सत्र 2019-20 men एमबीबीएस में प्रवेश ले सके जो ईएसआईसी से अंगीभूत है। इस मामले की सुनवाई के लंबित रहने के दौरान आशी 2018-19 सत्र में प्रवेश नहीं ले पाई थी और उसका एक सत्र बेकार चला गया था।

न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने यह आदेश देते हुए कहा कि ईएसआईसी किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता। अगर नियोक्ता रिटर्न भरने में देरी करता है तो ऐसे नियोक्ता से निपटने के लिए पूरी प्रक्रिया मौजूद है। नियोक्त ने रिटर्न दाख़िल नहीं किया इसकी सज़ा कर्मचारी को नहीं दी जा सकती और निगम के लिए ऐसा करना उचित नहीं है।

"अगर कोई नियोक्ता विनियमन 31 के तहत निर्दिष्ट अवधि में अपना हिस्सा देने से चूक जाता है, तो निगम उससे ब्याज वसूलने के अलावा, 31-C के तहत हर्ज़ाने भी वसूल सकता है। निगम के निरीक्षक के पास व्यापक दीवानी और पुलिस अधिकार है जिसका प्रयोग वह इस तरह के नियोक्ताओं के ख़िलाफ़ कर सकता है…अगर निगम निगरानी के काम में विफल रहता है तो इसकी ज़िम्मेदारी कर्मचारी के कंधे पर लादकर वह बच नहीं सकता…"

पृष्ठभूमि

ईएसआईसी ने याचिकाकर्ता (जो कि ईएसआईसी अधिनियम की धारा 2 के उपबंध 14 के तहत बीमित है) और उसकी दो बेटियों को "ई-पहचान" कार्ड जारी किया था। याचिकाकर्ता की बेटी ने 12वीं की परीक्षा पास की और एमबीबीएस में प्रवेश के लिए उसने NEET 2018 की परीक्षा (UG-NEET) दी जिसमें वह पास हो गई। यह प्रावधान है कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण छात्र ईएसआईसी से संबद्ध मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में भी प्रवेश ले सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने 26 मई 2018 को ईएसआईसी में डब्ल्यूआईपी प्रमाणपत्र के लिए आवेदन दिया। 6 जून 2018 को दुबारा आवेदन दिया गया और इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं होने पर उसने 8 जून 2018 को आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदन दिया। 12 जून 2018 को ईएसआईसी ने इसका जवाब दिया कि नियोक्ता ने अपनी हिस्सेदारी जमा नहीं कराई है इसलिए डब्ल्यूआईपी प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा सकता। इसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में इसके ख़िलाफ़ अपील की।

निर्देश

अदालत ने याचिका का निस्तारन करते हुए अपने निर्देशों में कहा,

(i) ईएसआईसी द्वारा डब्ल्यूआईपी प्रमाणपत्र नहीं जारी करने के निर्णय को अदालत ख़ारिज करती है।

(ii) अदालत यह घोषित करती है कि याचिकाकर्ता को डब्ल्यूआईपी जारी किया जा सकता जो उसे तत्काल जारी किया जाए।

(iii) याचिकाकर्ता को 2019-20 अकादमिक सत्र में प्रेवेश दिया जाएगा और इसके लिए ऐसे किसी छात्र की जगह नहीं छीनी जाएगी जिसे प्रवेश की अनुमति दी गई है। जिस कॉलेज में याचिकाकर्ता की बेटी को प्रवेश मिलता है और अगर उस कॉलेज में जगह ख़ाली नहीं है तो ईएसआईसी उसे अपने अधीन किसी अन्य कॉलेज में जगह देगा जिसमें सीट ख़ाली है और उसको अपना कॉलेज चुनने का अधिकार होगा।

(iv) अगर सभी उम्मीदवारों ने सभी कॉलेजों में प्रवेश ले लिया है और कोई सीट ख़ाली नहीं है तो तो वर्ष 2018 के काउन्सलिंग के आधार पर उसको प्रवेश दी जाएगी और अगर ज़रूरी हुआ तो उसके लिए एक जगह बनाई जाएगी।

(v) हर हाल में, ईएसआईसी यह सुनिश्चित करेगा कि याचिकाकर्ता की बेटी को उसके किसी कॉलेज में एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश मिले। 


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