असम रायफ़ल्स के सदस्यों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम के तहत जनरल असम रायफ़ल्स कोर्ट मामलों की जाँच कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-07-14 05:28 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनरल असम रायफ़ल्स कोर्ट (जीएआरसी) असम रायफ़ल्स के सदस्यों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम के तहत कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में गौहाटी हाईकोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया जिसमें इस मत के विपरीत फ़ैसला दिया गया था। हाईकोर्ट का कहना था कि पीसी अधिनियम की धारा 4 के तहत भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध की सुनवाई सिर्फ़ विशेष जज ही कर सकता है।

असम रायफ़ल्स में भ्रष्टाचार को लेकर हुए एक स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण मातृभूमि और तहलका डॉटकॉम ने 24/25 सितम्बर 2014 को किया जिसकी अदालती जाँच के आदेश दिए गए थे। जाँच के बाद कन्वेनिंग अथॉरिटी ने नायाब सूबेदार और सूबेदार के ख़िलाफ़ असम रायफ़ल्स अधिनियम, 2006 की धारा 55 और भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम, 1988 के तहत चार्ज शीट दाख़िल किया। पीसी अधिनियम के तहत इस मामले के टिकने को लेकर उठाई गई आपत्तियों को जीएआरसी ने ख़ारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने इस आदेश को ख़ारिज कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचारणीय मुद्दा यह था कि चूँकि असम रायफ़ल्स अधिनियम, 2006 के बाद में आया अधिनियम है, क्या यह पीसी अधिनियम के प्रावधानों को ख़त्म करता है या ये दोनों ही प्रावधान सामंजस्य के साथ लागू होंगे।

अदालत ने सदरलैंड के वैधानिक संरचना की बात को लागू करते हुए कहा कि दोनों ही क़ानून के प्रावधानों में कोई विरोध नहीं है और वे समानांतर चल सकते हैं। अदालत ने कहा,

"पीसी अधिनियम की धारा 4 का वर्ष 2006 के अधिनियम की धारा 55 से इस हद तक विरोध कोई विरोध नहीं है कि दोनों एक साथ खड़े नहीं हो सकते। इसलिए, जीएआरसी ने 2006 अधिनियम की जिस धारा 55 के तहत अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया है उसे पीसी अधिनियम का अपवाद माना जा सकता है"।

सदरलैंड की वैधानिक संरचना

पीठ ने इस संदर्भ में सदरलैंड के वैधानिक संरचना से निम्नलिखित पंक्तियाँ उद्धृत की :

"एक आम क़ानून उसके क्षेत्राधिकार में आने वाले सभी इलाक़े के सभी लोगों पर लागू होता है बशर्ते कोई विशेष क़ानून मौजूद है जो विषय को ज़्यादा बारीकी से ग़ौर करता है या किसी विशेष इलाक़े के लिए अलग क़ानून बताता है। इसी तरह, जब कोई बाद का क़ानून किसी इलाक़े के विवाद के लिए अपनाया जाता है और इस क़ानून का राज्य भर में लागू होने वाले क़ानून के साथ टकराव होता है तो विशेष या स्थानीय क़ानून को तरजीह मिलेगा। जहाँ विशेष या स्थानीय क़ानून आम क़ानून के साथ इस हद तक विरोध में खड़ा नहीं है दोनों क़ानून एक साथ लागू नहीं हो सकते, तो उस स्थिति में आम क़ानून को हटाया नहीं जाएगा पर स्थानीय या विशेष क़ानून इसके प्रावधानों के अपवाद के रूप में मौजूद रहेगा"।


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