आवेदक की वित्तीय क्षमता से परे जमानत के लिए भारी राशि चुकाने की शर्त नहीं लगाई जा सकती : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]

Update: 2019-06-12 15:20 GMT

आवेदक की वित्तीय क्षमता से परे जमानत के लिए भारी राशि चुकाने की शर्त नहीं लगाई जा सकती। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक आदेश को संशोधित किया है।

आवेदक तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले में एक मंदिर का मुख्य पुजारी एम. डी. धनपाल था जिसे 20 अप्रैल को हुई एक भगदड़ में 7 तीर्थयात्रियों की मौत के बाद पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। इस संबंध में हादसे को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी।

उसने मद्रास उच्च न्यायालय में जमानत पर रिहा करने के लिए आवेदन किया तो उच्च न्यायालय ने यह शर्त लगाई कि वह मृतक व्यक्तियों के परिवार को 10-10 लाख रुपये का भुगतान करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि उसे मृत तीर्थयात्रियों के वारिसों को 70 लाख रुपये की भारी राशि का भुगतान करना था।

यह आदेश उसके वकील द्वारा दी गई अंडरटेकिंग के आधार पर आया था जिसमें उसने यह कहा था कि आवेदक मृतक व्यक्तियों के परिवार में प्रत्येक को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने के लिए तैयार है।

लेकिन बाद में धनपाल ने यह कहते हुए शर्त हटाने के लिए अर्जी दायर की कि वह मंदिर में भक्ति सेवा देकर छोटी-मोटी आय अर्जित कर रहा है और यह शर्त उसकी वित्तीय क्षमता से ऊपर है। हालांकि उच्च न्यायालय ने इस अर्जी को 3 सप्ताह का समय देकर खारिज कर दिया। इस पृष्ठभूमि में आवेदक ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने याचिका को अनुमति देते हुए कहा, "यदि याचिकाकर्ता के पास धन की कमी है तो ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था। जैसा कि यह हो सकता है, यह अच्छी तरह से तय है कि जमानत के लिए आवेदक की वित्तीय क्षमता से परे भारी राशि चुकाने की शर्त नहीं लगाई जा सकती है।"

पीठ ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता का नाम FIR में नहीं था और यह बताने के लिए कुछ भी नहीं था कि वह इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है। भुगतान करने की शर्त को माफ करते हुए याचिका को अनुमति दी गई।


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