क्या जांच अधिकारी ट्रांसजेंडर का जैविक तरीके से लिंग निर्धारण कर सकता है ? उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य से पूछा
क्या कोई जांच अधिकारी डीएनए परीक्षण करके लिंग परिवर्तन करने वाले ट्रांसजेंडर व्यक्ति के लिंग का निर्धारण कर सकता है और बदले हुए लिंग को स्वीकार करने से मना कर सकता है? उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर राज्य सरकार से अपना जवाब देने के लिए कहा है।
यह कहते हुए पीड़िता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि उसकी कोई गलती नहीं है लेकिन फिर भी जांच एजेंसियों द्वारा उसे परेशान किया जा रहा है। अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया कि जब उसने पुलिस से शिकायत की तो उसने आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय धारा 377 (अप्राकृतिक यौनाचार ) के तहत शिकायत दर्ज की।
अपनी रिपोर्ट में जांच अधिकारी ने जैविक रूप से (डीएनए परीक्षण करके) घोषित किया कि याचिकाकर्ता महिला नहीं बल्कि पुरुष है। उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार व्यक्त किया कि क्या याचिकाकर्ता के लिंग की पहचान करने के लिए जांच अधिकारी को विवेक दिया जा सकता है।
अदालत ने तब राज्य को इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा:-
• मामले के जांच अधिकारी को याचिकाकर्ता के लिंग निर्धारण का अधिकार कैसे दिया जा सकता है?
• मामले का जांच अधिकारी कुछ डीएनए विश्लेषण और "जैविक परीक्षण" के आधार पर याचिकाकर्ता के लिंग का निर्धारण कैसे कर सकता है?
• जांच अधिकारी कॉर्बेट सिद्धांत को लागू कैसे कर सकते हैं जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था?