मजिस्ट्रेट आरोपी को बरी करने के बाद ख़ुद इस मामले की आगे की जाँच का आदेश नहीं दे सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-04-19 14:29 GMT

संज्ञान लेने से पूर्व मजिस्ट्रे के पास मामले में आगे की जाँच का आदेश देने का अध्दिकार है पर संज्ञान ले लिए जाने के बाद वह ऐसा नहीं कर सकता विशेषकर तब जब आरोपी को उसने बरी कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट को कोई अधिकार नहीं है कि वह आरोपी को बरी करने के बाद स्वतः संज्ञान लेते हुए आगे की जाँच का आदेश दे।

बिकश रंजन राउत और अन्य पर आईपीसी की धारा 420, 468 और 471 के तहत मुक़दमा चलाया गया। जाँच के बाद जाँच अधिकारी ने चार्ज शीट दायर किया पर इस पर ग़ौर करने के बाद मजिस्ट्रेट ने आरोपियों को बरी कर दिया। पर उसी आदेश में उसने यह कहा कि इस मामले की आगे जाँच की ज़रूरत है ताकि इसके बारे में किसी निर्णय पर पहुँचा जा सके। हाईकोर्ट ने भी मजिस्ट्रेट के इस क़दम को सही ठहराया। आरोपी ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

शीर्ष अदालत को यह निर्णय करना था कि आरोपी को बरी करने के बाद मजिस्ट्रे इस मामले की आगे जाँच का आदेश दे सकता है कि नहीं।

कोर्ट ने कहा कि जाँच रिपोर्ट पर संज्ञान लेने के बाद मजिस्ट्रे को अगर लगता है तो वह इसको ख़ारिज कर सकता है और दुबारा जाँच का आदेश दे सकता है पर एक बार जब वह इस पर कार्रवाई करते हुए आरोपी को बरी कर देता है तो फिर इसके बाद वह ऐसा नहीं कर सकता।

पुलिस को आगे की जाँच करने के आदेश को ख़ारिज करते हुए पीठ ने कहा,

"…इस मामले में जाँच अधिकारी ने आगे जाँच की बात नहीं कही है यह आदेश मजिस्ट्रेट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए दिया है और जाँच अधिकारी को यह रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इस बात की इजाज़त क़ानून के तहत नहीं है।इस तरह का आदेश देना मजिस्ट्रेट के अधिकार के बाहर है। वह आरोपी को बरी करने के बाद मामले की आगेल जाँच का आदेश नहीं दे सकता और इसलिए मजिस्ट्रेट ने जो आदेश दिया वह वैध नहीं है और इसलिए इसे निरस्त किया जाता है।"


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