ग़लत तथ्यों के आधार पर नियमितीकरण का लाभ उठाना क़ानूनसम्मत नहीं; सुप्रीम कोर्ट ने चौकीदार को नौकरी से निकालने को सही ठहराया [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-04-19 05:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एक चौकीदार की नौकरी को नियमित किए जाने को अवैध ठहराते हुए कहा कि अगर कोई अधिकारियों को ग़लत तथ्य पेश करके उसके आधार पर अपनी नौकरी को नियमित करवाने में सफल होता है तो इसे वैध नहीं ठहराया जा सकता।

करमजीत सिंह को पंजाब शहरी योजना और विकास प्राधिकरण में 1 दिसम्बर 1995 को दिहारी आधार पर चौकीदार के रूप में रखा गया। इस संस्थान के मस्टर रोल में 31.03.1997 तक उसका नाम था। पंजाब सरकार ने वर्क-चार्ज्ड/दिहारी और अन्य श्रेणी के ऐसे कर्मचारी जिन्होंने तीन साल की सेवा पूरी कर ली है, उनके लिए नीति में संशोधन किया। इसके बावजूद कि उसने सिर्फ़ कुछ महीने ही नौकरी की थी, सिंह का नाम सूची में शामिल हुआ और 06.11.2001 से उसकी नौकरी को नियमित कर दिया गया।

कुछ अन्य कर्मचारियों ने इस नियमितीकरण को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने विभाग को इस मामले की पड़ताल करने को कहा। जाँच के बाद पता चला कि सिंह ने 22.01.2001 को तीन साल की अनिवार्य सेवा अवधि पूरी नहीं की थी। इसलिए मुख्य प्रशासक ने उसके नियमितीकरण को समाप्त कर दिया।

सिंह ने इस निर्णय के ख़िलाफ़ औद्योगिक न्यायाधिकरण में अपील की। अधिकरण ने उसकी अपील ठुकरा दी जिसके बाद उसने हाईकोर्ट में अपील की जिसने कहा कि नियम के अनुसार उसको नौकरी से निकालने से पहले विभाग को उसे चार्जशीट जारी करना चाहिए और उसके ख़िलाफ़ जाँच करानी चाहिए थी। हाईकोर्ट ने कहा कि सही और ग़लत, सिंह की सेवा नियमित कर दी गई है।

हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए पीठ ने कहा कि सिंह को आवश्यक योग्यता के अभाव में नौकरी के नियमितीकरण के अधिकार से अथॉरिटी द्वारा वंचित किया गया है। पीठ ने कहा,

"प्रतिवादी को नियमित नियुक्ति देना अवैध है क्योंकि उसने 22.01.2001 तक तीन साल की अनिवार्य सतत सेवा पूरी नहीं की है। प्रतिवादी ने कर्मचारियों की अंतिम सूची में अंतर्वेशन के आधार पर नियमितीकरण की माँग की थी। इस तरह की नियुक्ति अवैध है और यह क़ानून के समक्ष टिक नहीं सकती।"


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