किसी खरीदार को कब्जे के लिए अनिश्चितकाल तक इंतजार की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने डवलपर को रिफंड के आदेश दिए [आर्डर पढ़े]
" किसी खरीदार से उचित अवधि के लिए कब्जे के लिए इंतजार करने की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन सात साल की अवधि उचित से परे है।"
एक खरीदार को कब्जे के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करने की आवश्यकता नहीं है, ये कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कंज्यूमर फोरम के उस फैसले पर मुहर लगा दी है, जिसमें डेवलपर को खरीदार को राशि वापस करने के निर्देश दिए गए थे।
वर्ष 2006 का है मामला, 2008 तक सौंपा जाना था रो-हाउस
इस मामले में (कोलकाता वेस्ट इंटरनेशनल सिटी प्राइवेट लिमिटेड बनाम देवाशीश रुद्र), खरीदार ने बिल्डर को वर्ष 2006 में 39, 29, 280 रुपये की राशि का भुगतान किया और उनके बीच समझौते हुआ कि उसे 31 दिसंबर 2008 तक रो-हाउस सौंप दिया जाएगा। इसके लिए 6 महीने की अनुग्रह अवधि भी रखी गई।
वर्ष 2011 में खरीदार ने उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया और रो-हाउस के कब्जे की मांग की। विकल्प के तौर पर डेवलपर से भुगतान की गई राशि और प्रतिवर्ष 12% की दर से ब्याज की प्रार्थना भी की गई। साथ ही 20 लाख रुपये के मुआवजे का भी दावा किया गया।
राज्य आयोग ने डेवलपर को निर्देश दिया कि वह प्रति वर्ष 12% की दर से ब्याज के साथ भुगतान की गई रकम वापस करे और शिकायतकर्ता को 5 लाख रुपये का मुआवजा भी प्रदान करे।
राष्ट्रीय आयोग ने इस आदेश को बाद में 5 लाख रुपये से घटाकर 2 लाख रुपये कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में हस्तक्षेप करने से किया इनकार
रिफंड के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए पीठ ने कहा: "समझौते के संदर्भ में, कब्जा सौंपने की तारीख 6 महीने की छूट अवधि के साथ 31 दिसंबर 2008 थी। वर्ष 2011 में भी जब खरीदार ने उपभोक्ता शिकायत दाखिल की थी तो भी वो कब्जे को स्वीकार करने के लिए तैयार था।"
कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि, "इसलिए यह स्पष्ट रूप से अनुचित होगा कि पक्षों के बीच अनुबंध होने के बावजूद खरीदार को कब्जे के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करने की आवश्यकता हो। वर्ष 2016 तक समझौते की तारीख से लगभग 7 साल बीत चुके थे। डेवलपर के मुताबिक उसे कंप्लीशन सर्टिफिकेट 29 मार्च 2016 को प्राप्त हुआ था। यह समझौते के तहत निर्धारित कब्जे को सौंपने की विस्तारित तिथि के लगभग 7 साल बाद हुआ।"
कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि, "किसी खरीदार से उचित अवधि के लिए कब्जे की प्रतीक्षा करने की उम्मीद की जा सकती है। लेकिन 7 साल की अवधि उचित से परे है। इसलिए, SCDRC के सामने मांगी गई राहत में पहली प्रार्थना के आधार पर खरीदार को वंचित रखना स्पष्ट रूप से अनुचित होगा। वैसे भी राशि की वापसी की एक प्रार्थना तो थी ही। "