मृतक ने 'वेश्या' कहकर पत्नी और बेटी को जानबूझकर उकसाया; सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी की सज़ा को संशोधित किया [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-01-26 15:54 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने पति की हत्या करने की आरोपी एक महिला को धारा 302 के तहत हत्या का दोषी नहीं मानने का फ़ैसला सुनाया और उसकी सज़ा को संशोधित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि उसने हत्या उस समय की जब उसे और उसकी बेटी को 'वेश्या' कहकर जानबूझकर ग़ुस्सा दिलाया गया।

न्यायमूर्ति एमएम शांतनागौदर और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने आईपीसी की धारा 302 के तहत उसको दोषी माने जाने के निर्णय को बदलकर उसे धारा 304 के तहत दोषी माना। कोर्ट ने कहा, "मृतक ने आरोपी को 'वेश्या' कहकर उसको उकसाया। हमारे समाज में कोई भी महिला अपने पति से इस तरह का शब्द नहीं सुनना चाहेगी। और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि वह अपने बेटी के ख़िलाफ़ इस तरह की बात नहीं सुनना पसंद करेगी। यह घटना मृतक द्वारा आरोपी को उकसाए जाने के कारण हुआ"।

अभियोजन पक्ष की दलील यह थी कि मृतक को यह संदेह था कि उसकी बेटी का नवाज़ नामक व्यक्ति से नाजायज़ संबंध है। एक सुबह उसने इस मामले को लेकर अपनी पत्नी से झगड़ा किया और उसको और अपनी बड़ी बेटी को वेश्या कहा। इस मौक़े पर नवाज़ ने हस्तक्षेप किया और मृतक को झगड़ा नहीं करने को कहा। जब वह चुप नहीं हुआ तो नवाज़ ने मृतक को थप्पड़ मारा। इसके बाद नवाज़ और पत्नी ने तौलिए से उसका गला घोंट दिया और अपराध छिपाने के लिए उसकी लाश जला दी। इसके बाद वे उसकी अधजली लाश उठाकर ले गए और उसे कहीं और जाकर फेंक दिया।

निचली अदालत ने दोनों ही आरोपियों को घटना के 40 दिन बाद एक स्कूल के शिक्षक के समक्ष 'पत्नी' द्वारा हत्या की बात को क़बूलने के आधार पर दोषी माना।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस बयान के बारे में कहा कि यह मामला आईपीसी की धारा 304 के भाग -1 के तहत आएगा।

पीठ ने कहा, "…मृतक के अचानक उकसाने के कारण ही यह हत्या हुई।"

इसके बाद पीठ ने इस मामले को आईपीसी की धारा 304 भाग-1 के तहत माना और दोनों ही आरोपियों को 10 साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई। पीठ ने उन्हें आईपीसी की धारा 201 के तहत भी दोषी माना।

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