मात्र शिकायतकर्ता व आरोपी के बीच लंबित सिविल केस,नहीं हो सकता है आपराधिक केस खत्म करने का कारण-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Update: 2019-05-23 07:33 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ इस कारण से कि शिकायतकर्ता व आरोपी के बीच सिविल केस लंबित है, कोई आपराधिक केसरद्द या खत्म नहीं किया जा सकता है ।

इस मामले में दो व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 323,379 (रेड विद 34) के तहत आरोपी थे। हाईकोर्ट ने उनके खिलाफलंबित आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया कि दोनों पक्षों के बीच सिविल कोर्ट में एक दुकान के मकानमालिक व किराएदार के तौर पर विवाद लंबित है और यह मामला वास्तव में दोनों पक्षों के बीच का एक सिविल विवाद है।

हाईकोर्ट के इस विचार को गलत करार देते हुए जस्टिस अभय मनोहर सपरे और जस्टिस दिनेश महेश्वरी की पीठ ने कहा कि-

"हाईकोर्ट यह नहीं देख पाई कि मात्र एक सिविल केस का लंबित होना,इस सवाल का जवाब नहीं है, कि क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 323,379 (रेड विद 34) के तहत प्रतिवादी नंबर दो तीन केखिलाफ केस बनता है या नहीं। जब अपीलकर्ता की विशेष शिकायत यह थी कि प्रतिवादी नंबर दो तीन ने भारतीय दंड संहिताकी धारा 323,379 (रेड विद 34) के तहत अपराध किया है तो हाईकोर्ट को इस सवाल को देखना चाहिए था कि क्या यह दोनोंआरोप शिकायत में बनते है या नहीं। दूसरे शब्दों में,यह देखने के लिए कि क्या संज्ञान लेने के लिए आरोपियों के खिलाफ प्रथमदृष्टया केस बनता है या नहीं,कोर्ट को सिर्फ शिकायत में लगाए गए आरोपों को देखने की जरूरत है। इस महत्वपूर्ण सवाल केसंबंध में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कोई टिप्पणी नहीं की,इसलिए वह आदेश कानूनी रूप अरक्षणीय है.''

आपराधिक कार्यवाही को खत्म करने के लिए हाईकोर्ट ने दूसरा कारण यह बताया था कि घटना के समय उपस्थिति गवाहों केबयानों में विरोधाभास है। इस संबंध में पीठ ने कहा कि-
"हाईकोर्ट का यह अधिकार नहीं है कि वह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत कार्यवाही या केस के सबूतों का आकलन करे क्योंकि'क्या गवाहों के बयानों में विरोधाभास या/और विसंगतियां है'-अनिवार्य रूप से साक्ष्यों की सराहना से संबंधित एक मुद्दा है औरइस पर विचार न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उस समय किया जाना चाहिए जब मामले की सुनवाई चल रही हो और जब पक्षकारोंद्वारा पूरे साक्ष्य पेश किए जाए। इस मामले में यह स्टेज आना अभी बाकी है।''

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