एसएलपी में दिए गए निर्देशों को वापिस करने की मांग वाली रिट याचिका नहीं है सुनवाई योग्य-सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने जताई थी इस रिट याचिका पर आपत्ति

Update: 2019-04-02 08:48 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री की उस आपत्ति को सही ठहराया है,जिसमें कहा गया था कि स्पेशल लीव याचिका के तहत दिए गए निर्देशों को वापिस करने की मांग वाली रिट याचिका  सुनवाई योग्य नहीं है।

वैवाहिक विवाद के मामले में दायर एक एसएलपी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को निर्देश दिया था कि वह एक-दूसरे के खिलाफ दायर मामलों को वापिस ले ले।

बाद में पति ने एक रिट याचिका  दायर कर मांग की थी कि एसएलपी में दिए गए आदेश को वापिस ले लिया जाए।ं उसने दलील दी कि एसएलपी सिविल याचिका  के दौरान इस तरह की कोई मांग नहीं की गई थी। परंतु रजिस्ट्री ने इस रिट पैटिशन को सुनवाई पर भेजने से इंकार करते हुए कहा कि इसमें जो मांग की गई है वह सुनवाई योग्य नहीं है।

रजिस्ट्री की तरफ से की गई आपत्ति को सही ठहराते हुए जस्टिस आर.सुभाष रेड्डी ने कहा कि-''अगर किसी कारण से भी स्पेलशल लीव पैटिशन में दिए गए आदेश को वापिस करवाना है तो उसके लिए उसी पैटीशन के तहत अर्जी दायर करनी होगी। परंतु एसएलपी में दिए गए आदेश को वापिस लेने की मांग करने वाली कोई स्वतंत्र रिट पैटिशन सुनवाई योग्य नहीं है।''

किसी रिट पैटिशन,अपील या स्पेशल लीव याचिका में दिए गए किसी आदेश को वापिस लेने या उसमें संशोधन करवाने के लिए अमूमन उसी याचिका या अपील में मिसलेनियस अप्लीकेशन दायर की जाती है।

भारतीय संविधान के तहत मिले मूलभूत अधिकारों को लागू करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की जा सकती है। परंतु ऐसा तभी किया जा सकता है जब किसी भी सूरत में मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।

स्पेशल लीव याचिका किसी भी फैसले,डिक्री,सजा या आदेश,चाहे वह किसी कोर्ट ने किया हो या ट्रिब्यूनल ने,के खिलाफ विशेष छूट लेने के लिए दायर की जाती है। जब छूट दे दी जाती है तो इन याचिकाआं को सिविल अपील व आपराधिक अपील में तब्दील कर दिया जाता है।


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