असामान्य बीमारियों के बारे में राष्ट्रीय नीति का कोई अता-पता नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस भेजकर असामान्य बीमारी के इलाज की राष्ट्रीय नीति, 2017 (National Policy for Treatment of Rare Diseases, 2017) के तहत इस तरह की बीमारियों से ग्रस्त लोगों को वित्तीय मदद के लिए समिति गठित किए जाने और उनके लिए अस्पतालों की पहचान के मुद्दे पर उनका रूख क्या है, यह पूछा है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पीठ ने 'ऑर्गनायज़ेशन ऑफ़ रेयर डिजीज इंडिया (ORDI) नामक एनजीओ की जनहित याचिका पर यह नोटिस जारी किया है। इस याचिका में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन तकनीकी सह प्रशासनिक समिति की स्थापना इस बारे में नीतियों को लागू करने की माँग की गई है। ये समितियाँ राज्य और केंद्र दोनों ही स्तरों पर बनाई जानी हैं जो असामान्य बीमारियों के इलाज के लिए बनाए गए कोष का संचालन करेंगी।
अपनी जनहित याचिका में सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अग्रवाल जो कि गौचर जैसी असामान्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों को मुफ़्त इलाज के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं, ने इस बारे में सरकार की विफलताओं का ज़िक्र किया और कहा कि राज्य स्तर पर तकनीकी सह प्रशासनिक समिति की स्थापना में सरकारें विफल रही हैं। इन समितियों को अस्पतालों की पहचान करनी थी जहाँ राष्ट्रीय नीति के तहत इस तरह की बीमारियों से ग्रस्त लोगों का इलाज होना था।
अभी तक भारत में असामान्य क़िस्म की 450 बीमारियों की पहचान की गई है। विश्व भर में इस तरह की लगभग 6,000 से 8,000 बीमारियों की पहचान की गई है। इन असामान्य बीमारियों के इलाज पर भारी ख़र्च आता है और बीच बीच में इनकी थेरेपी की ज़रूरत होती है।
दिल्ली हाईकोर्ट में अग्रवाल की याचिका के बाद ही दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बारे में समाज के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगों की इस बीमारी से इलाज के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाए जाने का आदेश दिया था।
इसके बाद केंद्र ने असामान्य बीमारियों के इलाज के लिए राष्ट्रीय नीति को 25 मई 2017 को अपनी अनुमति दे दी।
मार्च 2018 में केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस तरह की समिति बनाने को कहा ताकि असामान्य बीमारियों के हर मामले की जाँच की जा सके और अगर उन्हें वित्तीय मदद की ज़रूरत है तो इसके लिए वे केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को इस बारे में लिखें।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को जुलाई 2018 में पत्र लिखकर इस बात की याद दिलाई और इसके बाद उन्हें क़ानूनी नोटिस भिजवाया।
झारखंड और सिक्किम को छोड़कर अन्य किसी राज्य सरकार और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस नोटिस का जवाब नहीं दिया।
झारखंड सरकार ने बताया कि उसने समिति गठित कर दी है और राँची को इस तरह की बीमारियों के इलाज के लिए चुना है। सिक्किम ने भी यही जानकारी दी। याचिकाकर्ता ने बताया कि उसे इस बात की निजी जानकारी है कि दिल्ली सरकार ने भी समिति का गठन कर दिया है और उसने लोकनायक जयप्रकाश नारायण जेपी अस्पताल को इन बीमारियों के इलाज के लिए चुना है।