" आप सूरज के नीचे सब कुछ नहीं मांग सकते" : सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के कार्यान्वयन को लेकर दाखिल याचिका खारिज की

Update: 2021-09-27 08:40 GMT
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को भारत संघ द्वारा तैयार की गई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति-2017 के कार्यान्वयन के लिए प्रार्थना करने वाली एक रिट याचिका का निपटारा कर दिया।

हालांकि पीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की स्वतंत्रता देने की इच्छा जताई ताकि एक नई याचिका तैयार की जा सके जिसमें संतोषजनक दलीलों का बोझ विधिवत रूप से निर्वहन किया गया हो।

रिट याचिका में एक साथ पश्चिम बंगा खेत मजदूर समिति बनाम पश्चिम बंगाल राज्य [( 1996) 4 SCC 37], में अदालत द्वारा पारित निर्देशों को लागू करने की भी मांग की गई थी। इसमें कोविड-19 पीड़ितों के आश्रितों / चिकित्सा सहायता की कमी के कारण मरने वाले लोगों के लिए आजीविका के प्रावधान के लिए, और अंत में, बीमा अधिकारियों को आयुष्मान भारत-पीएमजेएवाई, आरोग्यश्री, जनधन योजना, रयतु भीमा आदि के तहत कोविड-19 रोगियों को निजी अस्पतालों में इलाज कराने और कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए धारक के बीमा दावों को संसाधित करने और पॉलिसी के लिए चिकित्सा खर्चों की प्रतिपूर्ति करने के लिए निर्देश दिए गए थे।

सुनवाई में न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा,

"इन याचिकाओं के साथ समस्या यह है कि यदि आप एक प्रार्थना चाहते हैं, तो हम इससे निपट सकते हैं। लेकिन आप सूरज के नीचे सब कुछ नहीं मांग सकते।"जब याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि डॉक्टरों और विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए, वह केवल राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति के कार्यान्वयन के संबंध में राहत के लिए दबाव डाल रहा है, न्यायाधीश ने टिप्पणी की, "आप सिर्फ एक रिपोर्ट संलग्न कर यह उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि कोर्ट को सिर्फ आगे बढ़ना है। आप सिर्फ यह नहीं कह सकते हैं कि '2021 का बजट लागू करें'! आपको कमी को निर्दिष्ट करना होगा, आपको यह बताना होगा कि अनुपालन में विफलता कैसे हुई है! आप सिर्फ इसलिए दलीलों के बोझ से मुक्त नहीं हैं क्योंकि यह एक जनहित याचिका है। आपको अपना गृहकार्य करना है और विवरण देना है, आपको डेटा एकत्र करना है और महत्वपूर्ण क्षेत्र को इंगित करना है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि हम जान सकें कि किस राज्य सरकार या किस प्राधिकरण को नोटिस जारी करना है! आपको ये बोझ उठाना है,

आप इसे अदालत या राज्य पर नहीं छोड़ सकते! अन्यथा याचिकाएं दाखिल ना करें यदि आप कोई बोझ नहीं उठाना चाहते हैं! आप आंध्र प्रदेश में एक व्यक्ति का सिर्फ एक उदाहरण नहीं दे सकते! क्या हम एक उदाहरण के आधार पर अखिल भारतीय आधार पर निर्देश दे सकते हैं ?"

जब याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस तरह के विशिष्ट डेटा को इकट्ठा करना "मुश्किल" होगा, तो न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, "अगर यह मुश्किल है, तो अपने मुवक्किल को शांति से रहने के लिए कहें! जाहिर है, यह मुश्किल है! ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए। जाहिर है ये मुश्किल है ? यह कोई कैदी नहीं है जो व्यक्तिगत शिकायतें उठा रहा है, जहां हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे, भले ही वह पोस्ट-कार्ड पर हो! लेकिन आप राष्ट्रव्यापी आवेदन के नीतिगत मुद्दों को उठा रहे हैं, इसलिए आपको बोझ उठाना चाहिए!"

केस: सी अंजी रेड्डी बनाम भारत संघ और अन्य।

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