जब अपहरण के बाद हत्या होती है तो कोर्ट अपहरणकर्ता को हत्यारा मान सकता है: सुप्रीम कोर्ट

Update: 2020-06-04 06:21 GMT

सुप्रीम कोर्ट की तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने तमिलनाडु के नेता एम के बालन को 2001 में हुए अपहरण और हत्या का दोषी करार दिया है। दो-सदस्यीय खंडपीठ के खंडित फैसले के कारण इस मामले को तीन-सदस्यीय पीठ को सौंपा गया था।

न्यायमूर्ति (अब सेवानिवृत्त) वी. गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा ने 2016 में इस मामले में खंडित निर्णय दिया था। न्यायमूर्ति गौड़ा ने आरोपी को बरी कर दिया था, जबकि न्यायमूर्ति मिश्रा ने अभियुक्त को दोषी ठहराया था। (सोमासुन्दरम उर्फ सोमू बनाम पुलिस आयुक्त के माध्यम से राज्य सरकार, (2016) 16 एससीसी 355)

उसके बाद इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के. एक. जोसेफ और न्यायमूर्ति वी. रमासुब्रमण्यम की खंडपीठ ने की।

बेंच ने इस मामले के साक्ष्य का आकलन करते हुए व्यवस्था दी कि अपहरण के बाद हुई हत्या के मामले में अपहरणकर्ता को हत्यारा माना जा सकता है।

खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति के. एम. जोसेफ द्वारा लिखे गये फैसले में कहा गया है,

"यथोचित मामले में अपहरण के बाद हत्या की घटना कोर्ट को यह मानने में सक्षम बनाती है कि अपहरणकर्ता ही हत्यारा है। सिद्धांत यह है कि अपहरण के बाद अपहरणकर्ता ही यह बता पाने की स्थिति में होगा कि पीड़ित का अंतत: क्या हुआ और यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है तो यह स्वाभाविक है और तार्किक भी कि कोर्ट के लिए आवश्यक रूप से यह निष्कर्ष निकालना सहज हो सकता है कि उसने (अपहरणकर्ता ने) बदनसीब पीड़ित को खत्म कर दिया है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 भी अभियोजन के पक्ष में ही होगी।"

बेंच ने आगे लिखा,

"जहां अपहरण के बाद अपहृत व्यक्ति को गैर-कानूनी तरीके से कैद करके रखा जाता हो और बाद में उसकी मौत हो जाती है, तो यह अपरिहार्य रूप से निष्कर्ष निकलता है कि पीड़ित की मौत उनके हाथों ही हुई है, जिन्होंने उसका अपहरण करके कैद में रखा था।"

न्यायालय ने 'पश्चिम बंगाल सरकार बनाम मीर मोहम्मद उमर (2000) 8 एससीसी 382' एवं 'सुचा सिंह बनाम पंजाब सरकार (एआईआर 2001 एससी 1436)' मामले में दिये गये पूर्व के निर्णयों का भी हवाला दिया।

सुचा सिंह मामले में न्यायमूर्ति के टी थॉमस ने कहा था :

"जब एक से अधिक व्यक्तियों ने पीड़ित को अगवा किया हो, जिसकी बाद में हत्या हो जाती है, तो तथ्यात्मक स्थिति को ध्यान में रखकर यह मानना कोर्ट के लिए न्यायोचित है कि सभी अपहरणकर्ता हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 34 का इसमें सहयोग लिया जा सकता है, जब तक कि कोई विशेष अपहरणकर्ता अपने स्पष्टीकरण के साथ कोर्ट को यह संतुष्ट नहीं करता कि उसने बाद में पीड़ित के साथ क्या किया, अर्थात् क्या उसने अपने सहयोगियों को रास्ते में छोड़ दिया था या क्या उसने दूसरों इस जघन्य कृत्य को करने से रोका था आदि, आदि।"

इन मामलों में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अनुमान का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया गया था कि ऐसे मामलों में किसी अन्य प्रकार की परिस्थिति साबित करने का जिम्मा अभियुक्त का होता है।

मामलों के तथ्यों को लेकर कोर्ट ने व्यवस्था दी कि अभियुक्तों द्वारा हत्या को अंजाम दिये जाने का अनुमान सही लगाया गया था। 

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