'टीवी चैनल ने कोर्ट में विचाराधीन मुद्दे पर डिबेट क्यों की? केवल एजेंडा को बढ़ावा देने के लिए': नूपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा
पैगंबर मोहम्मद पर कथित टिप्पणी के मामले में नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) ने कई राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज दर्जनों एफआईआर (FIR) की जांच के लिए दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पूछा कि टीवी चैनल ने कोर्ट में विचाराधीन (Sub Judice) मुद्दे पर डिबेट क्यों की।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने पूछा,
"टीवी चैनल को इस मामले पर डिबेट करने की क्या जरूरत थी? केवल एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए।"
शर्मा ने टाइम्स नाउ चैनल में ज्ञानवापी मस्जिद मुद्दे पर एक पैनल चर्चा के दौरान विवादास्पद टिप्पणी की, जो कोर्ट के समक्ष लंबित है।
टाइम्स नाउ की एंकर नविका कुमार द्वारा होस्ट किए गए शो में पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा द्वारा की गई टिप्पणियों ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया।
टिप्पणियों ने अंतर्राष्ट्रीय निंदा को भी आमंत्रित किया और 16 इस्लामी देशों ने अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। हंगामे के बाद शर्मा को प्रवक्ता पद से हटा दिया गया और भाजपा की सदस्यता से निलंबित कर दिया गया।
शर्मा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट मनिंदर सिंह ने आज सुनवाई में कहा कि सिंह ने तर्क दिया कि बयान उकसाने की स्थिति में दिए गए थे। उन्होंने आगे कहा कि इस मुद्दे पर एक ही समुदाय के भीतर गंभीर बहस चल रही है, और शर्मा की टिप्पणी इससे हटकर नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चैनल के पास इस मामले पर चर्चा करने का कोई अधिकार नहीं है, जब मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
आगे कहा कि अगर शर्मा बहस के कथित दुरुपयोग से व्यथित हैं, तो उन्हें एंकर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करानी चाहिए थी।
पीठ ने शर्मा की टिप्पणियों को खारिज कर दिया और कहा कि उनकी "ढीली जीभ" ने देश में आग लगा दी और उदयपुर हत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं।
कोर्ट ने कहा,
"उसने देश भर में भावनाओं को भड़काया है। देश में जो हो रहा है उसके लिए यह महिला अकेले जिम्मेदार है।"
जैसे शर्मा की ओर से पेश एडवोकेट मनिंदर सिंह ने उनके द्वारा जारी लिखित माफी की ओर इशारा किया, अदालत ने कहा,
"उन्हें टीवी चैनल में जाकर देश से माफ़ी मांगनी चाहिए थी। उन्होंने माफी मांगने में भी देरी की है और वह भी सशर्त रूप से कहती है कि अगर भावनाओं को ठेस पहुंची है।"
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल की प्रवक्ता होने से किसी के खिलाफ अपमानजनक बातें करने का लाइसेंस नहीं मिलता है।
आगे कहा,
"ये बिल्कुल भी धार्मिक लोग नहीं हैं, ये भड़काऊ बयान देते हैं।"
सुप्रीम कोर्ट ने शर्मा पर निचली अदालतों को दरकिनार कर सीधे शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने पर भी आपत्ति जताई।
कोर्ट ने कहा
"याचिका में उसके अहंकार की बू आती है कि देश के मजिस्ट्रेट उसके लिए बहुत छोटे हैं।"
सिंह ने अर्नब गोस्वामी के मामले पर यह तर्क देने के लिए भरोसा किया कि एफआईआर को क्लब करने की राहत दी जा सकती है।
जस्टिस कांत ने टिप्पणी की,
"किसी विशेष मुद्दे पर अधिकार व्यक्त करने पर एक पत्रकार का मामला एक प्रवक्ता से अलग आधार पर है जो परिणामों के बारे में सोचे बिना गैर-जिम्मेदाराना बयानों दे रही हैं।"
कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और शर्मा को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को कहा।
कोर्ट ने कहा,
"अदालत की अंतरात्मा संतुष्ट नहीं है। आप अन्य उपायों का लाभ उठाएं।"
तद्नुसार, याचिका को वापस लेने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।