WB में वकीलों की हड़ताल : सुप्रीम कोर्ट में एक पीठ ने गिरफ्तारी से सरंक्षण दिया जबकि दूसरी पीठ ने ऐसी ही याचिका नकारी

"इस तरह की हड़ताल से पूरे न्यायिक कार्य को पंगु नहीं बनाया जा सकता और मुकदमेबाजों को पीड़ित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

Update: 2019-05-25 13:48 GMT

न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने भाजपा के एक नेता द्वारा दायर याचिका में नोटिस जारी किया जिसमें पश्चिम बंगाल में चल रही वकीलों की हड़ताल के चलते गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग की गई थी।

राजीव कुमार को इस आधार पर नहीं मिला था संरक्षण

दिलचस्प बात यह है कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की एक अन्य पीठ ने कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई नहीं की जिसमें उनके द्वारा भी गिरफ्तारी से सरंक्षण मांगा गया था।

वकीलों की हड़ताल के चलते अदालत का रुख संभव नहीं

भाजपा नेता प्रवीण अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में इस आधार पर याचिका दायर की कि वो वकीलों की हड़ताल के कारण ट्रायल कोर्ट या कलकत्ता हाईकोर्ट का रुख नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की अध्यक्षता वाली पीठ में 2 नए न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति अज्जीकुट्टी सोमैया बोपन्ना भी शामिल रहे। पीठ ने कहा :

"यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि पश्चिम बंगाल राज्य में सभी अदालतों में हड़ताल चल रही है और जिसके कारण अंतिम पीड़ित याचिकाकर्ता हैं। इस तरह की हड़ताल से पूरे न्यायिक कार्य को पंगु नहीं बनाया जा सकता और मुकदमेबाजों को पीड़ित होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसलिए इस तरह की अवैध हड़ताल को रोकने का दिन अब आ गया है। हमें उम्मीद और भरोसा है कि समझदार वकील इसमें प्रबल होंगे। बार काउंसिल/संबंधित बार एसोसिएशन इस मामले को पूरी गंभीरता के साथ देख सकते हैं। "

जांच अधिकारी के सामने पेश होने का निर्देश

रिट याचिका पर नोटिस जारी करते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को यह निर्देश दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत जारी नोटिस का पालन करते हुए 1 सप्ताह की अवधि के भीतर वह संबंधित जांच अधिकारी के सामने पेश हों और जांच में सहयोग करें। हालांकि अदालत ने उन्हें 'सुनवाई की अगली तारीख' ( जुलाई में) तक गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की।

दूसरी SC बेंच ने IPS राजीव कुमार को WB की कोर्ट जाने को कहा

'दिलचस्प बात यह है कि न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की एक अन्य पीठ ने कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त राजीव कुमार द्वारा दायर ऐसी ही एक रिट याचिका को नहीं सुना, जिन्होंने भी अदालत से गिरफ्तारी से सुरक्षा मांगी थी।

पीठ ने कहा था कि वह संबंधित अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं क्योंकि पश्चिम बंगाल राज्य में न्यायालय कार्य कर रहे हैं।

"वहां कोई छुट्टियां नहीं हैं। जिला और उच्च न्यायालय दोनों कार्य कर रहे हैं, केवल वकील हड़ताल पर हैं ," पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की थी।

राजीव कुमार ने सर्वोच्च न्यायालय से सीधे यह कहते हुए संपर्क किया था कि पश्चिम बंगाल में 25 अप्रैल के बाद से वकीलों द्वारा घोषित हड़ताल के कारण उनके लिए कोई कानूनी उपाय उपलब्ध नहीं हैं। उन्हें 'व्यक्तिगत रूप से पेश होने' के लिए कहा गया और संबंधित न्यायालय के समक्ष उपाय की मांग करने के निर्देश दिए गए। आदेश इस प्रकार है:

"भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक याचिका को बनाए रखने योग्य नहीं कहा जा सकता क्योंकि याचिकाकर्ता ने इस न्यायालय के समक्ष समय के विस्तार के लिए एक आवेदन भी दायर किया है। 17.05.2019 को भारत के मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और माननीय न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने एक आदेश पारित किया है जो याचिका के पृष्ठ 155-162 पर मौजूद है।"
आगे कहा गया, "उपरोक्त के मद्देनजर भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर नहीं की जानी चाहिए थी। जैसा कि यह हो सकता है, चूंकि यह याचिकाकर्ता के लिए संबंधित न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए खुला है, क्योंकि पश्चिम बंगाल राज्य में न्यायालय कार्य कर रहे हैं, वो व्यक्तिगत तौर पर पेश हो सकते हैं और संबंधित न्यायालय के समक्ष उपाय की तलाश कर सकते हैं। पश्चिम बंगाल राज्य में संबंधित न्यायालय से संपर्क करने का उपाय तलाशने की स्वतंत्रता के साथ इस रिट याचिका का निपटान किया जाता है।"

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