"अनुचित": वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने COVID मामलों को हाईकोर्ट से हटाकर अपने पास मंगाने पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की
सुप्रीम कोर्ट ने COVID-19 संबंधित मुद्दों का स्वतः संज्ञान लिया है,जबकि हाईकोर्ट उन मुद्दों की सुनवाई कर रहे थे। कानूनी समुदाय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की व्यापक आलोचना हो रही है।
आज सुबह, CJI एसए बोबडे ने स्पष्ट संकेत दिया कि सुप्रीम कोर्ट COVID-19 से जुड़े उन मुद्दों की सुनवाई खुद करना चाहता है, जिन पर विभिन्न हाईकोर्ट सुनवाई कर रहे हैं। CJI ने कहा कि मामलों की सुनवाई कर रहे छह अलग-अलग हाईकोर्ट ने "भ्रम पैदा किया है और संसाधनों का विभाजन किया है", हालांकि इस संबंध में किसी ने भी सुप्रीम कोर्ट से शिकायत दर्ज नहीं की थी।
पीठ, जिसमें जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट शामिल थे, ने सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे को मामले में एमिकस क्यूरिया के रूप में नियुक्त किया। हरिश साल्वे संयोग से मामले में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हो रही सुनवाई में वेदांता के स्टरलाइट प्लांट को दोबारा खोलने की मांग को लेकर मौजूद थे।
सुप्रीम कोर्ट का यह कदम बॉम्बे और दिल्ली की हाईकोर्ट द्वारा बुधवार की रात को केंद्र सरकार के खिलाफ कठोर आलोचनात्मक टिप्पणियों के बाद उठाया गया है। दोनों हाईकोर्ट ने COVID-19 रोगियों को ऑक्सीजन और दवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तत्काल हस्तक्षेप किया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सोशल मीडिया और मैसेंजर्स पर सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कई आलोचनात्मक टिप्पणियां की गई हैं। LiveLaw ने मामले पर कानूनी बिरादरी के कुछ वरिष्ठ सदस्यों से संपर्क किया है और उनकी राय जानी है-
सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने प्रतिगामी कदम बताया
सीनियर एडवोकेट और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा, "मैं सुप्रीम कोर्ट के नजरिए से असहमत हूं। हाईकोर्ट इन मुद्दों को निस्तारि करने में सक्षम थे, क्योंकि यह संबंधित राज्यों में घटित हुआ मामला है। स्थानीय परिस्थितियों और स्थानीय समस्याओं और समाधानों को वे बखूबी संबोधित कर सकता हैं। यह एक प्रतिगामी कदम है। हाईकोर्ट अब बेमानी हो जाएंगे।"
रोहतगी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा COVID-19 का प्रसार रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के 5 शहरों में लॉकडाउन लगाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश भी गलत था।
सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने कहा, अनधिकृत और अनुचित
सीनियर एडवोकेट और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट का स्वतः संज्ञान हस्तक्षेप और हाईकोर्ट को संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकने का प्रयास पूर्णतया अनुचित है, इसलिए कि सुप्रीम कोर्ट पिछले कई दिनों से देश में होने वाली घटनाओं को मूक दर्शक के रूप में देखता रहा है।
उन्हें दीवार पर लिखी इबारत देखनी चाहिए थे। सुप्रीम कोर्ट, यदि नागरिकों के बारे में चिंतित था, तो यह सुनिश्चित करने के लिए पहले स्वतः संज्ञान हस्तक्षेप करना चाहिए था कि सरकार ठीक से काम करे और यह कि CIVID रोगियों को पर्याप्त अस्पताल, टीके, दवाएं , ऑक्सीजन की आपूर्ति उपलब्ध रहे। सरकार सो रही है और सुप्रीम कोर्ट भी इस दौर में दुर्भाग्य से सो रहा है। इसलिए, जब हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करने का फैसला किया, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप करना नैतिक रूप से अनुचित है।
दूसरी बात यह कि , स्थानीय परिस्थितियों को जानने के लिए हाईकोर्ट बेहतर स्थिति में हैं। इसलिए, दिल्ली में बैठे सुप्रीम कोर्ट को वास्तव में हाईकोर्ट के कामकाज में हस्तक्षेप करने से कोई मतलब नहीं है। हाईकोर्ट स्वतंत्र हैं, सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं।
दवे ने मामले में सीनियर एडवोकेट साल्वे की नियुक्ति की आलोचना भी की और इसे "अनुचित" करार दिया। दवे ने इस बात से निराशा व्यक्त कि जब CJi कुछ गलत कर रहे थे तो बेंच के अन्य जजों ने हस्तक्षेप नहीं किया।
उन्होंने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस रवींद्र भट्ट के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है। मुझे अभी भी कहना चाहिए, मैं बहुत निराश हूं चीफ जस्टिस के साथ बैठे जजों या जस्टिस अरुण मिश्रा जैसे जज से। ये सभी कभी भी अध्यक्षता कर रहे जज को गलत निर्णय लेने से रोक नहीं पाए। यह सुप्रीम कोर्ट पर एक बहुत ही दुखद टिप्पणी है। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के सभी जज, जज हैं, वह संवैधानिक शपथ से बंधे हैं। समान जजों के बीच मुख्य न्यायाधीश सिर्फ पहले हैं। वह उनके मालिक नहीं हैं। "
'दुर्भाग्यपूर्ण': सीनियर एडवोकेट अंजना प्रकाश
सीनियर एडवोकेट और पटना हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश अंजना प्रकाश ने कहा, "मुझे लगता है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हाईकोर्ट के आदेश में क्या अवैधता थी? जहां तक मुझे पता है, न्यायालयों की पदानुक्रमित प्रणाली के बावजूद, हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट का अधीनस्थ न्यायालय नहीं है, जिसे प्रत्येक आदेश के लिए सुप्रीम कोर्ट का अनुमोदन प्राप्त करना पड़े, जैसा कि नौकरशाही में आवश्यक होगा। इसलिए कानूनी हलकों में हस्तक्षेप को उस तरह से देखा जाता है्र जिस तरह से नौकरशाही में एक वरिष्ठ अधिकारी अधीनस्थ को आदेश देता है।"
'हैरान': सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह
सीनियर एडवोकेट चंदर उदय सिंह ने कहा, "मुझे आश्चर्य है कि सुप्रीम कोर्ट को देश भर में छह हाईकोर्ट द्वारा युद्ध स्तर पर सुने जा रहे छह अलग-अलग मामलों में कदम रखना चाहिए। यह ऐसे समय में आया है, जब यह माना जा रहा है कि निर्णय लेने के अति-केंद्रित तरीका COVID-19 के खिलाफ लड़ाई में विफल रहने में व्यापक रूप से जिम्मेदार रहा है।
सुप्रीम कोर्ट को स्वयं को विभिन्न राज्यों में जीवन और मृत्यु की स्थितियों की देखरेख करने में सक्षम समझना चाहिए, जैसा कि संबंधित हाईकोर्ट कर रहे हैं...."
सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा कि हाईकोर्ट के प्रयासों को कमजोर करने जैसा
सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से हाईकोर्ट द्वारा COVID प्रबंधन के संबंध में राज्य सरकारों को जवाबदेह रखने के लिए किए गए प्रयासों को कमजोर करने की संभावना है।
उन्होंने कहा, "राज्य सरकारें हाईकोर्ट का विरोध करने के मामले में अब ढीठ हो सकती हैं, जबकि वह सरकारों की COVID के खिलाफ प्रतिक्रियाओं को कड़े संवैधानिक कसौटी पर परखने के लिए दृढ़ संकल्पित है।"
उन्होंने कहा, "महामारी की घातक दूसरी लहर और वायरस के तेजी से बढ़ने के कारण, हजारों भारतीयों की जान चली गई, हमें चौकस होकर पूछना चाहिए, क्या सुप्रीम कोर्ट भी मानव जीवन के विनाश में शामिल है?"
हाईकोर्ट के आदेशों से जनता का विश्वास बढ़ता है: सीनियर एडवोकेट विवेक तन्खा
सीनियर एडवोकेट और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने ट्विटर पर टिप्पणी की कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर COVID मुद्दों पर केंद्र सरकार की जवाबदेही तय करने में बेहतर स्थिति में हो सकता है, जबकि हाईकोर्ट को मामलों की सूक्ष्म स्तर पर निगरानी के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित किया जाता है।
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पास राज्यों के सामने मौजूद चुनौतियों से निपटने के लिए समय और विवरण का अभाव है। उन्होंने कहा, "हाईकोर्ट के पास जनता का विश्वास है।"
हाईकोर्ट पर भरोसा किया जाना चाहिए, सीनियर एडवोकेट रवींद्र श्रीवास्तव
सीनियर एडवोकेट रवींद्र श्रीवास्तव ने कहा कि एक संघीय ढांचे में हाईकोर्ट उतने ही सक्षम हैं, जितना सुप्रीम कोर्ट और शायद उनसे व्यापक क्षेत्राधिकार रखते हैं।"
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, उन पर भरोसा किया जाना चाहिए।
श्रीवास्तव ने भारत के लिए अटॉर्नी जनरल की प्रतिक्रिया मांगने के बजाय मामले में एक एमिकस नियुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की।
उन्होंने कहा, "इसे अटॉर्नी जनरल के संवैधानिक कार्यालय का रुतबा करने के रूप में देखना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सहायता प्राप्त करने के लिए एजी के बजाय एक एमिकस चुना है। एजी को नोटिस जाना चाहिए था।"
सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने श्रीवास्तव के इस विचार का समर्थन किया।
कई युवा अधिवक्ता और कानून के छात्र भी सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के इस कदम पर निराशा व्यक्त करते देखे गए।