समान नागरिक संहिता : भारत के विधि आयोग ने सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के विचार जानने का निर्णय लिया
भारत के 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में सार्वजनिक और धार्मिक संगठनों के विचारों को जानने का निर्णय लिया है। यह इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए है कि इस विषय पर पिछले विधि आयोग द्वारा जारी परामर्श पत्र तीन वर्ष से अधिक पुराना है।
2018 में भारत के विधि आयोग ने 'पारिवारिक कानून में सुधार' पर एक परामर्श पत्र जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि "इस स्तर पर एक समान नागरिक संहिता (UCC) का निर्माण न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है"।
चूंकि यह परामर्श पत्र अब तीन साल से अधिक पुराना हो चुका है, इसलिए कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाले वर्तमान विधि आयोग ने हितधारकों के विचारों और सुझावों को नए सिरे से आमंत्रित करने का निर्णय लिया है।
विधि आयोग ने एक सार्वजनिक नोटिस में कहा,
"शुरुआत में भारत के 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता पर विषय की जांच की थी और 07.10.2016 की एक प्रश्नावली और 19.03.2018, 27.03.2018 और 10.04.2018 की सार्वजनिक अपील/नोटिस के साथ अपनी अपील के माध्यम से सभी हितधारकों के विचारों का अनुरोध किया था। इसके अनुसरण में, आयोग को भारी प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। 21वें विधि आयोग ने 31.08.2018 को "पारिवारिक कानून में सुधार" पर परामर्श पत्र जारी किया है। चूंकि तीन साल से अधिक समय बीत चुका है। इस विषय की प्रासंगिकता और महत्व और साथ ही इस विषय पर विभिन्न न्यायालय के आदेशों को ध्यान में रखते हुए, उक्त परामर्श पत्र जारी करने के संबंध में, भारत के 22वें विधि आयोग ने इस विषय पर नए सिरे से विचार-विमर्श करना समीचीन समझा।
तदनुसार, भारत के 22वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के बारे में बड़े पैमाने पर और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों के विचारों और विचारों को जानने के लिए फिर से निर्णय लिया।"
जो रुचि रखते हैं और इच्छुक हैं, वे नोटिस की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर "यहां क्लिक करके" या भारत के विधि आयोग को Membersecretary-lci@gov.in पर ईमेल कर सकते हैं। संबंधित हितधारक समान नागरिक संहिता से संबंधित किसी भी मुद्दे पर परामर्श/चर्चा/वर्किंग पेपर आदि सदस्य सचिव, भारतीय विधि आयोग, चौथा तल, लोकनायक भवन, खान मार्केट, नई दिल्ली- 110 003 पर भी भेज सकते हैं।
जरूरत पड़ने पर आयोग व्यक्तिगत सुनवाई या चर्चा के लिए किसी व्यक्ति या संगठन को बुला सकता है