यूक्रेन से लौटे छात्रों की लोकसभा समिति की सिफारिशों के आधार पर भारत में मेडिकल शिक्षा पूरी करने की मांग : सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया
भारत में अपनी मेडिकल शिक्षा जारी रखने की अनुमति मांगने वाले यूक्रेन से लौटे छात्रों द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद को नोटिस जारी किया है।
याचिका में केंद्र, स्वास्थ्य मंत्रालय और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है कि युद्धग्रस्त यूक्रेन से लौटे करीब 20,000 भारतीय छात्रों को भारत में मेडिकल कॉलेजों में अपनी मेडिकल शिक्षा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए।
युद्धग्रस्त यूक्रेन में हजारों भारतीय मेडिकल छात्रों का भाग्य अधर में लटकने के साथ, विभिन्न डॉक्टर संघ भी राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के तहत एक विशेष प्रावधान की मांग कर रहे हैं ताकि ऐसे छात्रों को देश में अन्य मेडिकल कॉलेजों में स्थानांतरित करने पर विचार किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को याचिकाओं के उस समूह पर नोटिस जारी किया जिसमें रूसी हमले के कारण यूक्रेन से लौटने वाले लगभग 20,000 भारतीय छात्रों को भारत में अपनी मेडिकल शिक्षा पूरी करने की अनुमति देने की राहत की मांग की गई थी।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने सात रिट याचिकाओं पर 5 सितंबर तक जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया।
याचिकाकर्ताओं ने 3 अगस्त को विदेश मामलों की लोकसभा समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर भरोसा किया जिसमें उसने स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को एक बार के उपाय के रूप में भारतीय निजी मेडिकल कॉलेजों में यूक्रेन से लौटे छात्रों को समायोजित करने पर विचार करने की सिफारिश की थी।
उक्त सिफारिश के मद्देनज़र याचिकाकर्ताओं ने यूक्रेन के छात्रों के संबंध में भारत सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से उचित निर्णय की मांग की।
जब मामले की सुनवाई शुरू हुई तो जस्टिस गुप्ता ने टिप्पणी की,
"20,000 छात्र हैं। क्या भारत में इन छात्रों को समायोजित करने की क्षमता है? आप भारत में मेधावी छात्र नहीं हैं।"
एक याचिका में उपस्थित सीनियर एडवोकेट रवि सीकरी ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता "कम मेधावी" नहीं हैं और वे यूक्रेन जाने के लिए विवश हैं क्योंकि वे भारत में निजी मेडिकल कॉलेजों की फीस नहीं दे सकते। यह बताया गया कि जो छात्र यूक्रेन गए थे, उन्होंने भी नीट परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन सीमित संख्या में सरकारी सीटों में प्रवेश सुरक्षित नहीं कर सके।
सीनियर एडवोकेट रवि सीकरी ने प्रस्तुत किया कि हम यूक्रेन पढ़ने इसलिए गए क्योंकि हमें भारत में सरकारी सीटों पर एडमिशन नहीं मिल सका।
जस्टिस गुप्ता ने कहा,
"हम छात्रों की योग्यता में नहीं जा रहे हैं। तथ्य यह है कि आपने यूक्रेन को चुना, भारत में नहीं रहने का विकल्प चुना। यह एक स्वैच्छिक कार्य था।"
केरल के छात्रों के एक समूह की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने कहा कि उन्हें भी नीट पात्रता मानदंडों को पूरा करना होगा और "यह कहना पूरी तरह से गलत है कि वे मेधावी नहीं हैं।"
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि यूक्रेन में युद्ध की स्थिति को देखते हुए छात्र अपने विश्वविद्यालयों में नहीं लौट सकते।
बसंत ने प्रस्तुत किया कि यह एक असाधारण स्थिति है, क्योंकि जिन छात्रों ने मेडिकल शिक्षा के लिए अपना जीवन और पैसा लगाया है, उन्हें अप्रत्याशित घटनाओं के कारण अपना पाठ्यक्रम बीच में ही छोड़ना पड़ा।
इस मोड़ पर, पीठ ने भारत सरकार द्वारा पहले के अदालती निर्देशों के अनुसार बनाई गई नीति के बारे में पूछताछ की, जिसमें महामारी के कारण विदेशी मेडिकल शिक्षा पूरी नहीं कर सकने वाले छात्रों के लिए एक योजना तैयार करने के लिए कहा गया था। पीठ को बताया गया कि जिन छात्रों ने अपना पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है, लेकिन चीन जैसे विदेशों में इंटर्नशिप पूरा नहीं कर पाए हैं, उन्हें यहां ऐसा करने की अनुमति दी गई है। हालांकि, यूक्रेन के छात्रों के मामले में, वे सभी अंतिम वर्ष में नहीं हैं।
बसंत ने प्रस्तुत किया कि केंद्र सरकार के पास राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम 2019 की धारा 45 के तहत एनएमसी को निर्देश जारी करने की शक्ति है, और यूक्रेन से लौटे छात्रों के लिए छूट देने के लिए ऐसी शक्तियों का उपयोग किया जाना चाहिए।
बसंत ने कहा,
"ऐसा नहीं है कि हम योग्य नहीं हैं। अगर हमारे पास पैसा होता तो हम यहां एक निजी कॉलेज में जा सकते थे।"
सीनियर एडवोकेट मनोज स्वरूप ने पीठ का ध्यान लोकसभा पैनल द्वारा की गई सिफारिशों की ओर आकर्षित किया और केंद्र को इस पर कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की।
सीनियर एडवोकेट ने कहा,
"केंद्र सरकार के पास इस तरह की स्थिति में करने के लिए असाधारण शक्तियां हैं। उन्होंने ऐसा नहीं किया है और हम सरकार को निर्देश देने का अनुरोध करने के लिए अदालत आए हैं।"
इसके बाद पीठ ने सुनवाई पूरी की और 5 सितंबर तक जवाब देने के लिए याचिका पर नोटिस जारी किया।
मामले: अर्चिता और अन्य बनाम राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग और अन्य, डब्ल्यूपी (सी) 607/2022 और 6 जुड़े मामले।