मंदिर प्रबंधन - सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक संबद्धता के आधार पर की जाने वाली नियुक्तियों पर चिंता जताई

Update: 2022-09-27 05:49 GMT

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने देश भर में मंदिरों और मंदिरों प्रबंधन में राजनीतिक हस्तक्षेप के बारे में चिंता जताते हुए सोमवार को मौखिक रूप से ट्रस्टियों या प्रशासनिक समितियों के सदस्यों की नियुक्ति में पारदर्शी मानदंडों और मानकों के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता व्यक्त की।

जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद बेंच) के हालिया फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने उस पक्ष को देखने के बाद साईं बाबा शिरडी ट्रस्ट की प्रबंध समिति की नियुक्ति को रद्द कर दिया। कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को समिति में अवैध रूप से शामिल किया गया। विशेष अनुमति याचिका विधायक आशुतोष काले ने दायर की, जिन्होंने समिति की अध्यक्षता की है, जिसे हाईकोर्ट ने भंग कर दिया।

हालांकि याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए दबाव डाला, लेकिन पीठ ने इनकार कर दिया। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले में उन पैराग्राफों की ओर इशारा किया, जिनमें दिखाया गया कि कैसे प्रबंधन समिति के सभी सदस्य राजनीतिक रूप से संबद्ध है। वे या तो राज्य विधानमंडल के सदस्य है या नगर परिषदों के अध्यक्ष हैं या स्थानीय निकायों के चुनाव में पराजित उम्मीदवार हैं।

जस्टिस रस्तोगी ने सुनवाई के दौरान श्री साईबाबा संस्थान की प्रबंधन समिति में राजनेताओं की नियुक्ति को लेकर चिंता व्यक्त की।

जस्टिस रस्तोगी ने कहा,

"चुनाव के बाद सरकारें आती हैं और जाती हैं..लेकिन जो सर्वोपरि है वह भक्तों का हित है।"

न्यायाधीश ने जोर देकर कहा कि राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने की जरूरत है और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों, जो अपने चरित्र और अखंडता के लिए जाने जाते हैं, को नियुक्त किया जाना चाहिए ताकि भक्तों के हितों की रक्षा हो सके।

जस्टिस अजय रस्तोगी ने आगे भारत में सभी मंदिरों और मंदिरों के संबंध में ऐसे ट्रस्टियों या प्रबंधन समिति के सदस्यों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता व्यक्त की।

जस्टिस रस्तोगी ने कहा

"पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए।"

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एडवोतेट सोमिरन शर्मा ने प्रस्तुत किया कि भले ही हाईकोर्ट ने विचार लिया कि याचिकाकर्ता प्रबंध समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त होने के योग्य नहीं है, क्योंकि वह राजनेता है, श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट (शिरडी) अधिनियम, 2004 और उसके तहत बनाए गए नियम राजनेताओं को बाहर नहीं करते हैं। वास्तव में राजनेताओं की नियुक्ति की अनुमति देते हैं।

पीठ ने जवाब दिया कि हालांकि यह सच है कि अधिनियम और नियमों के प्रावधान विशेष रूप से राजनेताओं के बहिष्कार का उल्लेख नहीं करते हैं, लेकिन हर बार सत्ताधारी दल बदलते हैं, वे अपने स्वयं के व्यक्तियों को नियुक्त करना चाहते हैं।

भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता महाराष्ट्र राज्य की ओर से पेश हुए। उन्होंने पीठ की चिंता साझा की और व्यक्त किया कि भारत में मंदिरों और मंदिरों को सत्ता में राजनीतिक दलों के बंधनों से मुक्त करने की आवश्यकता है।

एस.बी. तालेकर हाईकोर्ट के समक्ष मूल जनहित याचिका की ओर से पेश एडवोकेट उत्तमराव शेल्के ने कहा कि बंबई हाईकोर्ट द्वारा प्रबंधन समिति के सदस्यों की नियुक्ति के तरीके निर्धारित करने के नियम बनाने के निर्देश के बावजूद, अब तक समिति के सदस्यों की नियुक्ति के लिए कोई मानदंड या पैरामीटर या तरीका निर्धारित नहीं किया गया।

नागपुर के एक अन्य जनहित याचिका याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट शेखर नफड़े पेश हुए। यह भी बताया कि सिद्धिविनायक मंदिर सहित महाराष्ट्र के अन्य सभी मंदिरों में समान प्रावधान हैं और सरकार द्वारा नियुक्ति के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं किया गया।

काले की याचिका के साथ पीठ ने अब भंग समिति के पांच अन्य सदस्यों द्वारा दायर अन्य याचिका पर भी विचार किया।

पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने याचिकाओं पर नोटिस जारी किया, यह देखते हुए कि मंदिरों और तीर्थस्थलों के प्रबंधन के संबंध में सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए निर्देशों की आवश्यकता है।

याचिकाओं को अगले नवंबर के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाएगा।

केस टाइटल: आशुतोष अशोकराव काले बनाम महाराष्ट्र राज्य | एसएलपी (सी) नंबर 16460-16461/2022 और जुड़ा मामला

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