सुरक्षा की दृष्टि से गहनों की कस्टडी लेना आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षा की दृष्टि से आभूषणों को अपने पास रखना भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता नहीं हो सकता।
इस मामले में, शिकायतकर्ता द्वारा उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 323, 34, 406, 420, 498A और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी। शिकायतकर्ता ने अपने पति के भाई (जो अमेरिका के टेक्सास में कार्यरत थे) को एक आरोपी के रूप में रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ एक अपील पर विचार कर रहा था, जिसने अमेरिका वापस जाने की अनुमति के लिए उनके (शिकायतकर्ता के देवर) द्वारा दायर अर्जी खारिज कर दी थी।
न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की पीठ ने शुरू में कहा,
"इस अपील में संक्षिप्त प्रश्न यह है कि क्या अपीलकर्ता को वैध पासपोर्ट, वीजा और अन्य आवश्यक यात्रा दस्तावेजों के अधीन विदेश यात्रा करने की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार से वंचित किया जा सकता है, वह भी सिर्फ इसलिए कि उसे उसके भाई की पत्नी द्वारा एक मामले में आरोपी बनाया गया है, जिसमें अपीलकर्ता के भाई, उसके माता-पिता, विशेष रूप से माँ के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है और वह भी तब जब शिकायत में अपीलकर्ता के खिलाफ किसी भी आपराधिक घटना का खुलासा नहीं किया गया है। पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर नकारात्मक होना चाहिए।''
कोर्ट ने शिकायत की जांच करते हुए कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ अस्पष्ट आरोप के अलावा कुछ भी खास नहीं है कि अपीलकर्ता और उसकी मां, यानी शिकायतकर्ता की सास ने उसके (शिकायतकर्ता के) गहने रखे।
कार्ट ने कहा,
"शिकायतकर्ता ने अपनी सास और देवर द्वारा कथित रूप से लिये गए गहनों का कोई विवरण नहीं दिया है। इस बारे में कोई चर्चा नहीं की गयी है कि क्या कोई आभूषण अपीलकर्ता के पास पड़ा है। यह आरोप भी नहीं लगाया गया है कि अपीलकर्ता ने शिकायतकर्ता के गहनों को जबरन ले लिया या उनका दुरुपयोग किया या अनुरोध के बावजूद उन्हें वापस करने से इनकार कर दिया। सुरक्षा के लिए आभूषणों को अपने पास रखना आईपीसी की धारा 498ए के अर्थ के तहत क्रूरता नहीं हो सकता है।''
कोर्ट ने कहा कि अलग रह रहे वयस्क भाई को नियंत्रित करने में विफलता, या शिकायतकर्ता को अपीलकर्ता के भाई यानी पति के साथ प्रतिशोधात्मक रवैये से बचने के लिए सामंजस्य बिठाने की सलाह देना, आईपीसी की धारा 498 ए के अर्थ में उसकी ओर से क्रूरता नहीं हो सकती है।
अपील की अनुमति देते हुए, कोर्ट ने सीजेएम द्वारा 'कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना देश न छोड़ने' की शर्त को हटा दिया।
कोर्ट ने आगे कहा,
"यह आशंका कि अमेरिका में कार्यरत शिकायतकर्ता का पति (आरोपी नंबर 1) देश छोड़ सकता है, इसलिए अपीलकर्ता की उस कंपनी में अपनी ड्यूटी फिर से शुरू करने के लिए अमेरिका वापस जाने की प्रार्थना को अस्वीकार करने का आधार नहीं हो सकता है, जिसमें वह लगभग 9/10 वर्षों से काम कर रहा है। हाईकोर्ट ने भी अपीलकर्ता के खिलाफ आरोपों पर विचार नहीं किया है। शिकायतकर्ता के लिए अपीलकर्ता की देयता, यदि कोई हो, के संबंध में कोई प्रथम दृष्टया निष्कर्ष भी नहीं है। अपीलकर्ता के खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं हैं।"
केस का नाम: दीपक शर्मा बनाम हरियाणा सरकार
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 52
केस नं./ दिनांक: सीआरए 83/2022 | 12 जनवरी 2022
कोरम: जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी
वकील: अपीलकर्ता के लिए अधिवक्ता मनु मृदुल, प्रतिवादी के लिए एओआर डॉ. मोनिका गुसाईं
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