क्या अस्थायी विकलांगता प्रमाणपत्र दिव्यांगजनों को दिव्यांगजन आरक्षण से वंचित करता है? सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दृष्टिबाधित दो छात्रों द्वारा दायर एक याचिका पर प्रतिवादियों को MBBS कोर्स के प्रथम वर्ष के लिए दृष्टिबाधित कोटे के तहत दो सीटें रिक्त रखने का निर्देश दिया।
40% दृष्टिबाधित इन दोनों छात्रों को जिनकी आंखो में 40% दृष्टिबाधितता है, NEET-UG उत्तीर्ण करने के बावजूद जम्मू-कश्मीर के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन देने से इस आधार पर मना कर दिया गया था कि उनकी विकलांगता अस्थायी है और वे बेंचमार्क दिव्यांगजन (PwBD) कोटे के तहत आरक्षण के लिए योग्य नहीं हैं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस वी विश्वनाथन की खंडपीठ ने जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के उस आदेश के विरुद्ध एक विशेष अनुमति याचिका पर आदेश पारित किया, जिसमें दिव्यांगजन कोटे के तहत प्रवेश के लिए स्टूडेंट्स कोर्ट की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उनकी विकलांगता अस्थायी है।
दृष्टिबाधित दोनों छात्रों ने हाईकोर्ट के 17 दिसंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी थी।
एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड वृंदा भंडारी द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत मानक विकलांगता श्रेणी के तहत आरक्षण के लिए पात्रता हेतु विकलांगता का स्थायी होना आवश्यक नहीं है। केवल आवश्यक मानदंड यह है कि विकलांगता 2016 अधिनियम की धारा 2(x) के तहत केवल "दीर्घकालिक" होनी चाहिए।
यह भी तर्क दिया गया कि स्थायी और अस्थायी दिव्यांगता के बीच का अंतर केवल एक प्रमाण पत्र की वैधता तक सीमित है, जिसका उद्देश्य आवधिक पुनर्मूल्यांकन है। यह विकलांगता की स्थायित्व को नहीं दर्शाता है।
29 जुलाई के आदेश द्वारा पीठ ने याचिकाकर्ताओं को 1 अगस्त, सुबह 11 बजे विकलांगता मूल्यांकन बोर्ड के समक्ष मूल्यांकन के लिए उपस्थित होने और 8 अगस्त को मूल्यांकन रिपोर्ट रिकॉर्ड में रखने का भी निर्देश दिया है।
केस टाइटल: सज्जाद अहमद मीर और अन्य। v. केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर और अन्य